tag:blogger.com,1999:blog-72328303645886673702024-03-14T03:06:19.995+05:30मन के दरवाजे खोल जो बोलना है बोलAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.comBlogger56125tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-10026292999768637672013-05-04T13:36:00.003+05:302013-05-04T13:36:49.466+05:30सस्ते पेट्रोल से शिकायतनामा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQ8WzrWdKougRs5NITA1w7RXLwADsIAvP9XiOjAxjlxHz1_QP2LmoI-Lv_yqL7HkhxJ0eKMJBlRanpWzniY-dwquAiBvgxvAiQGOT-JKo0YtjiFyGL1RUpwL51ShochjX_o4WgavutweA/s1600/petrol.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQ8WzrWdKougRs5NITA1w7RXLwADsIAvP9XiOjAxjlxHz1_QP2LmoI-Lv_yqL7HkhxJ0eKMJBlRanpWzniY-dwquAiBvgxvAiQGOT-JKo0YtjiFyGL1RUpwL51ShochjX_o4WgavutweA/s320/petrol.jpg" width="306" /></a></div>
प्रिय-अप्रिय पेट्रोल,<br />
<br />
उपरोक्त संबोधन के लिए क्षमा चाहूंगा लेकिन तुम्हारा व्यवहार प्रिय व अप्रिय दोनों रहा है इसलिए मेरे लिए तय कर पाना मुश्किल हो रहा था कि कौन सा शब्द तुम्हारे लिए उपयुक्त रहेगा। तुम्हारे 3 रुपए सस्ते होने की घोषणा सुनते ही मेरे हाथ पांव फूल गए हैं। पिछले दो महीनों से तुम अप्रत्याशित रूप से सस्ते हो रहे हो। पहले दो रूपए, फिर एक रुपए और अब तुम तीन रुपए और सस्ते हो गए हो। तुम्हारी गिरती राशि ने मेरा राशिफल बिगाड़ दिया है। तुम हमेशा एक खूंखार गेंदबाज रहे हो जो बल्लेबाजों के स्टंप उखाड़ते रहा है, लेकिन तुम्हारे द्वारा फेंकी गईं तीन फुलटॉस गेंदों ने मेरे माथे पर चिंता की पिच बना दी है। मुझे डर है कि इन फुलटास गेंदों के बाद कहीं तुम 10-15 रुपए की यार्कर गेंद डालकर मेरी पारी समाप्त न कर दो। तुम्हारी प्रवृत्ति 5 रुपए महंगा होने के बाद 1 रुपए सस्ती होने की रही है, फिर अचानक अपने व्यवहार में ऐसा बदलाव क्यों?<br />
<br />
तुम्हारा और मेरा नाता काफी पुराना रहा है, तुुम मेरे सुख-दुख के सच्चे साथी रहे हो। जब तुम्हारे दाम बढ़ते हुए 75 रुपए हुए तब मैंने अपने मित्रों से जन्मदिन के उपहार के रूप में पेट्रोल की मांग की। मेरी प्रेमिका तक ने मुझे बर्थडे गिफ्ट में पेट्रोल से भरा डिब्बा दिया लेकिन उसने उसके बाद मुझे कभी लिफ्ट नहीं दिया और अपनी जिंदगी से मेरा रोल कट कर दिया। ऐसे तन्हाई के आलम में तुम ही मेरे साथ थे, वो तुम ही थे जो मेरे हृदयविदारक शायरियां इत्मिनान से सुना करते थे। अगर तुम उस वजह से मेरे लिए सस्ते हुए जा रहे हो तो मित्र थम जाओ। तुम मेरे मित्र ही नहीं बल्कि मेरे गुरू भी रहे हो।<br />
<br />
तुम्हारे दाम हमेशा बढ़ते रहे हैं। जिंदगी में आगे बढऩे का पाठ तुमने ही मुझे पढ़ाया। उस घटना के बाद मैं भी जिंदगी में आगे बढ़ गया हूं। तुम जिस तरह तरल हो और किसी भी आकार में ढल जाते है मैंने भी इससे प्रेरणा लेकर अपने अंदर वो तरलता विकसित कर ली कि अब मैं कहीं भी फिट हो जाता हूं, क्योंकि जो फिट है वही हिट है। महंगे होने का गुुण भी मैंने तुमसे सीखा है, पेट्र्रोल के बढ़ते दामों की दुहाई देकर मैंने अपनी तनख्वाह अच्छी खासी बढ़वा ली थी और मैं अब आफिस के महंगे कर्मचारियों में शुमार हूं, क्योंकि जो महंगा है वही चंगा है। कुल मिलाकर अपनी जिंदगी बिलकुल सेट थी, लेकिन जैसे ही तुम्हारे दाम दो रुपए घटे बॉस की वक्रदृष्टि मेरी तन्ख्वाह पर पड़ गई और मेरा सालाना वेतनवृद्घि रोक दिया गया। और अब तीन रुपए सस्ते होकर तो तुमने मुझ पर कहर ही ढा दिया, अब तो तनख्वाह कम होने की चिंता सताने लगी है।<br />
<br />
तुम्हारे महंगे दाम को देखते हुए मैंने खुद को ढाल लिया था, दाम घटने के बावजूद मैं अब भी पुराने दर पर ही भुगतान कर रहा हूं, ताकि महंगे पेट्रोल की आदत बनी रहे। इसके अतिरिक्त दूरदर्शी सोच दिखाते हुए मैंने तो भविष्य में तुम्हारे शतकीय अभिवादन की तैयारी भी कर ली है। इसलिए तुम रुको नहीं, अविरल नदी की तरह बहते रहो, दाम बढ़ाते रहो। लेकिन यदि तुम्हारे मन में प्रायश्चित की भावना आ गई है और तुम आगे भी इसी तरह सस्ते होते रहना चाहते हो तो मुझे अभी से बता दो, मेरे जीवन में अब भी फेरबदल की काफी गुंजाइश है। लेकिन अंत में तुमसे वादा चाहता हूं कि तुम 10-15 रुपए का अकस्मात् आघात मुझ पर नहीं करोगे। उत्तर की प्रतीक्षा में।<br />
<br />
तुम्हारा मित्र<br />
-सुमित<br />
<div>
<br /></div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-19786603694608168972013-05-02T14:33:00.000+05:302013-05-02T14:33:27.447+05:30इंडियन परेशान लीग <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhjcS8kiJm3u-zT6hFFilZl31f1QHpRWqIaHQdLh4YXbhXR0cJj7xtuftH1xUabm0ub3cXQXdR-r0cupGBUih59AZDQ9W06v6z3lpDrPsFtZScW2I6RGH0xqN-CbqPok1wyFS5IBw5wTk/s1600/ipl.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhjcS8kiJm3u-zT6hFFilZl31f1QHpRWqIaHQdLh4YXbhXR0cJj7xtuftH1xUabm0ub3cXQXdR-r0cupGBUih59AZDQ9W06v6z3lpDrPsFtZScW2I6RGH0xqN-CbqPok1wyFS5IBw5wTk/s320/ipl.jpg" width="320" /></a></div>
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}">भारत
में बांटने का बहुत ही समृद्घ इतिहास रहा है। सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक
मोर्चों पर हम बंटे हुए ही पाए जाते हैं। कुछ आधुनिक चिंतकों ने भारत और
इंडिया को भी बांट दिया है। एक तरफ नेता-अधिकारी पैसों की बंदरबांट में लगे
रहते हैं तो दूसरी तरफ जरूरतमंद जनता सुविधाओं की बाट ही जोहते रहती है।
इस बंटने-बंटाने में देश का बंटाधार हो रहा है। खैर यहां मैं जिस बंटवारे
का जिक्र कर<span class="text_exposed_show"> रहा हूं उसका इससे कोई
ताल्लुक नहीं है, लेकिन क्या करें हम चिंतक प्रवृत्ति के मारे हैं और देश
की समस्याओं के बुलबुले हमारे मन में समय-समय पर फूटते रहते हैं।<br /> <br />
मुद्दे की ओर वापस लौटते हुए मैं बताना चाहूंगा कि हमारे शहर रायपुर में
आईपीएल के दो मैच हुए आईपीएल का खुमार कह लें या बुखार, फिलहाल सब इसकी
चपेट में हैं। इस मर्ज के मरीज और डॉक्टर हम खुद ही हैं। इस आईपीएल ने शहर
को दो वर्गों में बांट दिया - आईपीएल एंड आईपीएल यानी कि इंडियन प्रसन्न
लीग व इंडियन परेशान लीग। इंडिनय प्रसन्न लीग के लोगों की पहचान है होठों
पर चस्पी उनकी मुस्कान। जिसकी मुस्कान जितनी लंबी समझो उसने उतनी ही ज्यादा
व महंगी टिकट ले रखी थीं। खुशी से दमकते इन चेहरों को आप शहर के किसी भी
कोने में देख सकते हैं, मुस्कुराने का यह रोग कंजक्टीवायटिस की तरह फैल
चुका है। खैर इन चलते-फिरते प्रकाशपुंजों को देखकर निगम भी रात में स्ट्रीट
लाइट बंद करने पर विचार कर सकती है।<br /> <br /> इंडियन प्रसन्न लीग के बारे
में बात करने के बाद इंडियन परेशान लीग की बात करना जरूरी हो जाता है
क्योंकि इनकी संख्या बहुतायत में है। ये येन-केन कारणों से मैच के टिकट
पाने से वंचित रह गए और इनके लिए अंगूर खट्टे ही रह गए। इन निस्तेज व
मुरझाए हुए चेहरों को देख सरप्लस बिजली वाले छत्तीसगढ़ राज्य को भी
अतिरिक्त बिजली आयात करना पड़ सकता है। मेरे आलोचनात्मक व ईष्र्यालु रवैये
से आप समझ ही गए होंगे कि मैं भी इंडियन परेशान लीग का ही खिलाड़ी हूं।
दरअसल भारतीय समय प्रणाली पर अंधा विश्वास मुझे दगा दे गया। जब टिकट बंटने
शुरु हुए तो हम इंडियन टाइम का लिहाज कर देर से पहुंचे लेकिन हमें इस बात
का अंदाजा नहीं था कि पाश्चात्य संस्कृति में ढल रहे प्रदेशवासी इतने
अंग्रेजीदां हो जाएंगे कि समय पर पहुंचकर टिकट हथिया लेंगे। इंडियन परेशान
लीग के बाकी सदस्यों के लिए तो फिर भी अंगूर खट्टे थे लेकिन हमें तो अंगूर
के पेड़ तक देखना नसीब नहीं हुआ। <br /> <br /> टिकट लेने से कोई मिनटों से
चूका तो कोई दिनों से, पर किसी को कभी भी चूूका हुआ नहीं मानना चाहिए।
राजनीति में सत्ता पक्ष व विपक्ष के साथ होती हैं कुछ उछलती-कूदती
पार्टियां जो किसी तरह सत्ता पक्ष में घुसने की जुगत में रहती हैं। एक साल
इन्हें जुगत बनाने में बीत जाता है और बाकी के चार साल ये अंदर-बाहर होते
रहते हैं। इन जीवट प्राणियों से दुष्प्रेरणा लेते हुए हम भी दलबदल में जुट
गए हैंं। बस किसी तरह टिकट लेकर हम भी इंडियन परेशान लीग से इंडियन
प्रसन्नता लीग में घुस ही जाएंगे। दल बदलने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़ते
हैं और मुझे विश्वास है अगले साल तक मैं इतने तो पापड़ बेल ही लूंगा कि
इंडियन प्रसन्नता लीग में एंट्री कर सकूं, तब तक यही मुहावरा मेरा सहारा
है- देर आयद दुरुस्त आयद, पर कैसे भी टिकट आयद।</span></span></div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-91919084067371048972013-04-17T13:32:00.000+05:302013-04-18T13:31:52.848+05:30उपवास प्रायश्चित का (व्यंग्य)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgv4zI440X9uNDtl_Ew1aCZBIGM6CiBAsBLuzPh3xDbYS6GS_lfTEVax88z7n54XKcdQtkXFI90JNlN_FPh5jFsQildSnF5PMvsJYLT4u52WFlSQ2uPBBoGb5HJ__CvKxGeyAUKyVI2o_k/s1600/cartoon12.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="157" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgv4zI440X9uNDtl_Ew1aCZBIGM6CiBAsBLuzPh3xDbYS6GS_lfTEVax88z7n54XKcdQtkXFI90JNlN_FPh5jFsQildSnF5PMvsJYLT4u52WFlSQ2uPBBoGb5HJ__CvKxGeyAUKyVI2o_k/s320/cartoon12.jpg" width="320" /></a></div>
अलसुबह गनगगुनी धूप में चाय और बिस्कुट मिल जाए तो समझो कि दिन की शुरुआत अच्छी हो गई और अगर वे आपके पड़ोसी के यहां के हुए तो समझिए दिन सुपरहिट। हमारे पड़ोसी पांडेजी के यहां से चाय-बिस्कुट का निमंत्रण भी आया, ऐसा लगा जैसे विपक्ष में होते हुए किसी ने मंत्रीपद का ऑफर दे दिया हो, मगर हमें उसे ठुकराना पड़ा। दरअसल हमारा उपवास था, पांडेजी का विकेट मिला भी तो नो बॉल पर। पांडेजी को जैसे ही हमने बताया कि हम बिस्कुट नहीं खा सकते, उन्होंने सवाल दागा- ये क्या अनर्थ हो रहा है? एक मंत्री प्रायश्चित का उपवास कर रहा है, आप बिस्कुट नहीं खा रहे हैं, सोना टूट रहा है, और लूटने वाला पेट्रोल वाले छूट पर छूट दे रहे है। ऐसे अजीबोगरीब चीजों के हम आदी नहीं, हमारा देश कहां जा रहा है?<br />
<br />
<br />
उनके सवालों के रॉकेट को जैसे-तैसे संभालते हुए हमने कहा- चिंतित न हों, देश कहीं नहीं जा रहा। शक भरी निगाहों से घूरते पांडेजी ने फिर पूछा- लगता है आप रईस हो गए हैं। मैंने अचरज से पूछा- उपवास और रईसी में ये क्या कनेक्शन जोड़ रहे हैं आप? पांडेजी बोले- आजकल दो लोग ही उपवास कर रहे हैं- एक गरीब और दूसरा रईस। <span style="background-color: white;">गरीबों को तो खाने नहीं मिल रहा है इसलिए उसका वैसे भी उपवास हो जाता है और आपकी तरह सार्वजनिक घोषणा कर रईस लोग ही उपवास करते हैं।</span><span style="background-color: white;"> </span>मैंने सफाई दी- नहीं पांडेजी, रईसी से तो हमारा छत्तीस का आंकड़ा है वह ऐसी प्रेमिका है, जो जो हमारी हो नहीं सकती ।<br />
<br />
<br />
अच्छा अब मैं समझ गया, आप भी जरूर प्रायश्चित का उपवास कर रहे हैं। आपने क्या बयान दे दिया। इसलिए कहता हूं जुबान पे लगाम लगाकर रखा कीजिए। दुनिया का सबसे मुश्किल <span style="background-color: white;">यान</span> है ब'यानÓ। जिसने ढंग से उड़ा लिया, उड़ा लिया, जिसने गलती कि समझो उसकी क्रैश लैंडिंग हुई। पांडेजी के सारे सवालों पर हमने पूर्णविराम लगाते हुए कहा- हमारा नवरात्रि का उपवास है। इतना सुनते ही पांडेजी की प्रश्नात्मक एक्सप्रेस पर ब्रेक लग गया। कुछ देर बाद उनकी गाड़ी फिर शुरु हो गई, वे पूछने लगे- अजीत पवार के उपवास पर आप क्या कहना चाहेंगे। मैंने कहा- उनसे तो उनका पद ही छीन लेना चाहिए था। पांडेजी टोकते हुए बोले- ये तो ज्यादती है, सिर्फ एक बयान के बदले मंत्री पद ना..ना..ना..। ये तो वही बात हो गई कि किश्त आपने मोटरसायकिल का नहीं भरा, और रिकवरी वाले आपका घर सीज़ कर जाएं। वैसे मंत्रीजी का प्रायश्चित और सोने का टूटने में क्या कनेक्शन लगता है आपको। पांडेजी को रोकते हुए मैं बोला- बस पांडेजी, अब ये कनेक्शन मत जोडि़ए। पवारजी में इतना पावर नहीं कि सोने के दाम गिरा दें।<br />
<br />
<br />
दरअसल अभी प्रायश्चित का मौसम चल रहा है। सोने को अहसास हो चुका था कि उसने लोगों का सोना मुहाल कर रखा है। लोग तो सोने के सपने देखने से भी डरने लगे हैं। इसलिए प्रायश्चित की भावना से सोना टूटकर नीचे आ गया और सोना अब फिर से 'सोणाÓ बनने चला है। वहीं पेट्रोल को भी इस बात का बड़ा दुख था कि उसके दामों ने जनता के बटुवे से पैसों का 'रोलÓ ही खत्म कर दिया है। वह भी अपराधबोध से ग्रसित था। इसलिए इस प्रायश्चित सीजन में वह भी कभी 2 तो कभी 1 रुपए दाम गिराकर करके पापों का प्रायश्चित कर रहा है। उधर आईपीएल में भी प्रायश्चित जारी है, पोंटिंग-हरभजन पिछली बातें भूल गले मिल रहे हैं, जैसे आईपीएल न हुआ इंडियन प्रायश्चित लीग हो गया। देखिए पांडेजी, फंडा साफ है बांध में पानी हो या ना हो, प्रायश्चित की गंगा बहते रहनी चाहिए।<br />
<br />
<br />
इतना सुनते ही पांडेजी के चेहरे पर एक अद्भुत तेज आ गया, जैसे कि ब्रह्मज्ञान मिल गया हो। उन्होंने झट से कहा- प्रायश्चित की बहती गंगा में मैं हाथ धोऊंगा ही नहीं, बल्कि नहाऊंगा। मैं भी पाप और प्रायश्चित का बैलेंस शीट मेंटेन करूंगा। अब तक किए हुए घपलों के प्रायश्चित के लिए आज मैं उपवास करूंगा। बल्कि मैं तो आगे किए जाने वाले घपलों के लिए एडवांस में उपवास करूंगा, ताकि घपले करने पर दिखा सकूं- देखिए मैंने एडवांस टैक्स की तरह एडवांस प्रायश्चित कर रखा है। प्रायश्चित के इस अलौकिक वातावरण में भाभीजी के आंखों से आंसू छलक पड़े। दरअसल दो उपवासवालों के समक्ष कुरकुरे और स्वादिष्ट बिस्किट रखकर उन्होंने भी पाप कर दिया था, इसका अहसास होते ही वे प्रायश्चितवश बिस्किट लेकर वापस सरपट किचन में लौट गई। प्लेट में उछलती-कूदतीं बिस्किट हमें और हम उसे निहार रहे थे, मानों कह रहे हैं हों अच्छा तो हम चलते हैं..... फिर कल मिलेगें।<br />
<div>
<br /></div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-50275551350343950662013-03-26T17:40:00.000+05:302013-03-26T17:41:44.499+05:30होली व्यंगिकाएं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>घोटालों की होली</b><br />
<b><img alt="manmohan-singh-and-sonia-gandhi-cartoon" class="alignleft size-thumbnail wp-image-419" height="150" src="http://sumityadav.jagranjunction.com/files/2013/03/manmohan-singh-and-sonia-gandhi-cartoon-150x150.jpg" title="manmohan-singh-and-sonia-gandhi-cartoon" width="150" /></b><br />
<br />
<br />
<br />
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<br />
<br />
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<br />
<br />
<br />
यूपीए तोड़ रही है, <br />
भ्रष्टाचार के रिकार्ड सारे,
<br />
क्या अफसर, क्या नेता, भष्ट यहां हैं सारे,<br />
सरकार के मंत्रियों पर चढ़ा घोटाले का रंग है,<br />
देख के घोटाले की होली, सारी दुनिया दंग है,<br />
किसी ने बनाया कॉमन से वेल्थ,
<br />
तो कोई हुआ 2जी से मालामाल,
<br />
जिसने चुना था इनको, वही जनता रही बेहाल,
<br />
बहुत हुआ सब घोटाला, अब जनता सबक सिखाएगी,
<br />
अगले साल चुनावी होली में अपना रंग दिखलाएगी,
<br />
<br />
<br />
<b>अन्ना-अरविंद की होली</b><br />
<b><img alt="Cartoon-Anna-Arvind" class="alignleft size-thumbnail wp-image-420" height="150" src="http://sumityadav.jagranjunction.com/files/2013/03/Cartoon-Anna-Arvind-150x150.jpg" title="Cartoon-Anna-Arvind" width="150" /></b><br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
सुन सरकार के घोटालों की किलकारी,
<br />
अन्ना-अरविंद तैयार हुए ले लोकपाल की पिचकारी।
<br />
लोकपाल का रंग भर दोनों कूदे मैदान में,<br />
मांगे मनवाने अपनी किया अनशन मैदान में।
<br />
अनशन सफल नहीं हुआ, हो गई दोनों में अनबन<br />
राजनीति करें या नहीं इस पर दोनों में गई ठन।<br />
अरविंद को करनी थी राजनीति, बनाई आप पार्टी,
<br />
पोल खोलूंगा सबकी, नहीं चूकूंगा जरा भी।<br />
अन्ना ने नहीं किया समर्थन, बस किया दूरदर्शन
<br />
मैं और मेरी टोली भली, इंडिया अगेंस्ट करप्शन।</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-43958553281923390202013-03-26T17:36:00.001+05:302013-03-26T17:36:43.910+05:30बुरा मानेंगे, होली है!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="MsoNormal">
''<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">होली है</span>, <span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">भई होली है। बुरा न मानो होली है।</span>’ ’ <span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">होली के दिन ये जुमला
हर दूसरे शख्स के मुंह से सुनने मिल जाता है। ये सुन ऐसा लगने लगता है कि होली<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>रंगों का नहीं बल्कि रुठने-मनाने का त्यौहार है।
जहां तक मेरा आंकलन है होली पर बुरा मानने वाला पहला शख्स हिरण्यकश्यप रहा होगा। एक
तो वह प्रह्लाद की विष्णुभक्ति के कारण वैसे ही बुरा मानकर बैठा रहता था</span>, <span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">उस पर होलिका प्रहलाद
को जलाने के चक्कर में खुद जल गई। करेले पर नीम चढ़े वाली इस हालत ने उसे और बुरा मानने
पर मजबूर कर दिया। उसी समय शायद किसी अतिउत्साहित महाशय ने पहली होली की खुशी में हिरण्कश्यप
के चेहरे पर गुलाल लगाते हुए कहा होगा - बुरा न मानो होली है। इसके बाद उन महाशय का
क्या हुआ होगा यह इतिहासकार पता लगाते रहें</span>, <span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">किसी के पेट पर लात
मारना हमारी फितरत नहीं।</span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">खैर यहां पेचीदा मामला यह है कि जब </span>''<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">बुरा न मानो होली</span>’
<span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">कहा जाता है- तब यह आदेशात्मक होता है या आग्रहात्मक</span>,
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">समझ नहीं आता</span>?
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">बस यही समझने हम चले
गए एक होली मिलन समारोह में जिसमें उत्तम श्रेणी के बुरा मानने वाले शख्सियत शामिल
थे। सबसे पहले एक रंग-बिरंगे शख्स से मुलाकात हुई जो </span>''<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">बुरा न मानो होली</span>’
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">कहते हुए सब पर रंग
उड़ेले जा रहे थे। उनके आग्रहात्मक अलाप से समझ आ गया कि ये हमारे पीएम हैं। वे डीएमके
सांसदों के पीछे दौड़े चले जा रहे थे कि अब तो बुरा मत मानो होली है। मान भी जाओ होली
है। पर वे भी ढीठ थे</span>, <span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">बचते-बचाते निकल ही जाते थे- और कहते कि </span>''<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">बुरा मानेंगे</span>,
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">होली है</span>’<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">। हमें अपने रंग में
रंगने की कोशिश न करो अब</span>, <span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">हमें बेरंग करने वाले भी तुम ही थे</span>, <span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">न तो हमारी मांगें
मानी उल्टा समर्थन क्या वापस लिया सीबीआई की रेड पड़वा दी।</span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">मनमोहनजी ने टाइम वेस्ट करना उचित नहीं समझा और चले रूठने में
पीएचडी कर चुकी ममता बेनर्जी की तरफ। ये पिछले </span>8-10<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> महीने से रूठी ही
हुई थीं। इन्हें उम्मीद थी कि रुठने के कुछ ही दिनों बाद उन्हें मनाया जाएगा</span>,
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">लेकिन ऐसा हो न सका।
होली के समय रूठने-मनाने के ट्रेंड को देख लगता है कि सब इसी उम्मीद से रूठे रहते हैं
कि होली के समय इन्हें मनाया जाएगा। जैसे मार्च के आखिर में सालभर का बैलेंस शीट रफा-दफा
कर दिया जाता है उसी तरह ये भी अपने रूठने-मनाने का अकाउंट मार्च में ही क्लोज कराना
पसंद करते हैं। मनमोहनजी को अपने समक्ष पाकर ममताजी मुंह फेरने लगी मानो ठान के बैठी
हों</span>, ''<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">बुरा मानेंगे होली है</span>, <span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">नहीं मानेंगे होली है</span>’<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">। मनमोहनजी भी कभी
गुलाल उड़ाते तो कभी पिचकारी मारते लेकिन ममताजी बिना कोई ममता दिखाए भाग चलीं। इतने
में लेफ्ट वाले सामने आ गए</span>, <span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">इनको देखते ही मनमोहनजी राइट हो लिए</span>, 8<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> साल पहले भी ये लोग
लेफ्ट-राइट करते थे और अब भी। वहीं एक बॉस जिसने इंक्रीमेंट के स्वप्निल गुब्बारे फोड़
दिए अपने कर्मचारियों को रंग लगाते हुए कहता है- </span>''<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">बुरा न मानो होली है</span>’<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">। बॉस का आदेश है</span>,
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">इसलिए कर्मचारी बुरा
न मानते हुए रंग लगवाते हैं</span>, <span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">इस उम्मीद से कि इंक्रीमेंट के गुब्बारे फूटे तो क्या शायद दीवाली
में बोनस की मिठाई मिल जाए। ऐसी आदेशात्मक होली से बचने का कोई चांस नहीं।</span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">आग्रहात्मक और आदेशात्मक होली के बाद हमने सद्भाव वाली होली
भी देखी। एक गुब्बारा मारता तो दूसरा भी मारता। एक गुलाल उड़ाता तो दूसरा भी उड़ाता।
ऐसा होलीमय तालमेल दिखा नरेन्द्र मोदी व नीतिश कुमार के बीच। चूंकि दोनों ही एक दूसरे
से बुरा मानकर बैठे रहते हैं इसलिए ये तो होना था। नेगेटिव-नेगेटिव पॉजिटिव जो होता
है। पीएम पद के लिए दोनों लड़ रहे हैं लेकिन अभी से ये पीएम इन वेटिंग वाला हश्र नहीं
चाहते। इसलिए दुर्घटना से देर भली फिलहाल हम दोनों ही महाबली। वैसे बुरा मानने के मामले
में हम भी कम नहीं। लेकिन हम होली के घंटे भर पहले ही रूठते हैं तभी तो होली के दिन
भी एक घंटे से व्यंग्य लिख रहे हैं। हमें मनाने वाले भी आ गए</span>, <span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">अब हम चलते हैं। मनाने
वालों की टोली है</span>, <span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">बुरा न मानो होली है।</span></div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-4015728456619755782013-03-26T12:33:00.002+05:302013-03-26T12:33:51.796+05:30बिका हुआ माल, चुना हुआ नेता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdSmjeG_m8b310CCWNTbSmpg2HbPCxGczXpYpy8JDIUzN3tIPu7caff-R6IFwu359lqFd7X4nJD2TZa967cmY8G91g44Y_Cs6lkwOM7DDvv3vCFC2M9JCWnFYudcuIyLQ725xIUs3RQ38/s1600/cartoon-sale-2.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdSmjeG_m8b310CCWNTbSmpg2HbPCxGczXpYpy8JDIUzN3tIPu7caff-R6IFwu359lqFd7X4nJD2TZa967cmY8G91g44Y_Cs6lkwOM7DDvv3vCFC2M9JCWnFYudcuIyLQ725xIUs3RQ38/s1600/cartoon-sale-2.jpg" /></a></div>
<div>
हिन्दीभाषी राष्ट्र में कमजोर अंग्रेजी का खामियाजा किस तरह भुगतना
पड़ता है इसका पता हमें कुछ दिनों पूर्व चला। हम टकटकी लगाए रोड के किनारे
बनी बड़ी-बड़ी दुकानों को निहारते हुए जा रहे थे। चूंकि महंगाई डायन के
शिकंजे में जकड़े हुए हैं इसलिए आजकल दूरदर्शन से ही संतोष करना पड़ता है।
ऐसे में हमारी नजर एक दुकान पर ठहर गई। उस पर लिखा था "sale" 50 प्रतिशत
की छूट। यह पढ़ते ही हमारी आंखों में चमक आ गई। हमारे निखट्टू (sale) साले
ने कपड़े की दुकान खोल ली और अपने जीजा को 50 प्रतिशत की छूट दे रहा है।
अपने साले के इस अविश्वसनीय व अकस्मात् प्रेम से अभिभूत मैं दुकान की ओर चल
पड़ा।</div>
<div>
<br /></div>
<div>
काउंटर पर 100 वॉट की मुस्कान बिखेरती एक खूबसूरत
अप्सरा बैठी थी। जिस तरह स्ट्रीट लाइट की रोशनी सैंकड़ों कीट-पतंगों को
आकर्षित करती है उसी तरह वह मुस्काती अप्सरा अपनी चमकदार मुस्कान से कईयों
को आकर्षित कर रही थी। उस प्रकाशपुंज से नजर हटाते ही हमारी नजर एक
सेल्समेन पर पड़ी। हमने उससे अपने साले निखट्टू का नाम पूछा। उसने उस नाम
से अनभिज्ञता जताई लेकिन कहा इसे आप अपनी ही दुकान समझिए और कपड़े खरीदिए।
तभी दो और सेल्समेन खड़े हो गए एक पानी लिए और दूसरा रास्ता दिखाने। अब तक
हम अपने ससुरालवालों खासकर अपने साले से काफी खफा रहा करते थे, लेकिन उसकी
दुकान में ऐसा घरेलू माहौल व आतिथ्य देखकर हमारे आंसू निकल आए।</div>
<div>
<br /></div>
<div>
हमने अपने घडिय़ाली आंसू पोंछे और लगे कपड़े छांटने।
चूंकि वहां कपड़े बदलने का कक्ष भी था हम एक के बाद एक कपड़े बदलते रहे। एक
घंटे में हमने इतने कपड़े बदल लिए जितने अभी तक के जीवनकाल में नहीं पहने।
इसके बावजूद दोनों सेल्समेन के सपाट चेहरों पर मुस्कान चस्पी हुई थी। हमने
काउंटर पर बैठी उस मुस्कुराती अप्सरा को देखा, वह अब भी मुस्कुरा रही थी।
पूरी दुकान में मुस्कान की सप्लाई वही कर रही थी। जो उन्हें देख ले
मुस्काने लगता, मुस्कुराने का यह रोग कंजक्टीवाइटिस की तरह फैल रहा था। 50
कपड़े पहनने के बाद भी हमें कपड़े कुछ खास पसंद नहीं आ रहे थे, वहीं
जय-विजय की तरह खड़े दोनों सेल्समेन हम पर कपड़े थोपे जा रहे थे। </div>
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<br /></div>
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आखिर मैंने दो जोड़ी कपड़े ले ही लिए वह भी 50 प्रतिशत
की छूट पर। महंगाई के जमाने में आपको छूट मिल जाए तो ऐसा लगता है भरी
गर्मी में किसी ने ठंडा पानी पिला दिया। मगर ऐसे में लू लगने का खतरा भी
रहता है। हम खुशी के मारे तुरंत घर लौटे लेकिन घर पहुंचते ही हमारी खुशी को
लू लग गई। जो कपड़े हम खरीदकर लाए वह डिफेक्टिव थे, पेंट फटा था, शर्ट की
सिलाई निकली थी। गुस्से से भरा मैं वापस दुकान गया। वहां का माहौल ही बदला
हुआ था। मुस्कारती हुई अप्सरा अब फुफकारती हुई नागिन बन चुकी थी। हममें भी
उबाल कम न था, हमने उससे कहा- ये डिफेक्टिव कपड़े तुम लोगों ने दिया इसे
वापस करो। वह फुफकारती हुई बोली- नहीं होगा और हमें एक नोट दिखाया जिस पर
लिखा था बिका हुआ माल वापस नहीं होगा। मेरा गुस्सा 100 डिग्री से 50 डिग्री
पर आ गया। मगर दिल में गर्मी अब भी थी, मैंने कहा- मेरे साले (sale) को
बुलाओ जिसकी दुकान है और जिसका नाम बाहर बड़े अक्षरों में लिखा हुआ है। वह
कुटिल हंसी हंसते हुए बोली- वह साले नहीं सेल लिखा है। कपड़ों का पता नहीं
तुम्हारी अंग्रेजी जरूर डिफेक्टिव है। तुमने 50 कपड़े पहने फिर भी एक ढंग
का कपड़ा नहीं छांट पाए, गलती तुम्हारी है। मेरा तापमान अब 50 डिग्री से 0
डिग्री हो चुका था, मैं बोला- लेकिन मेरे पास विकल्प ही नहीं थे, जो थे सब
बेकार थे। युवती बोली- आपको समझाती ह, जब चुनाव में आपके सामने डिफेक्टिव
प्रत्याशी खड़े किए जाते हैं तब तो कुछ नहीं बोलते, आखिर चुनते हो ना उनमें
से कोई। जब इतने बड़े डिफेक्ट के साथ नेताओं को 5 साल चला लेते हो, वापस
थोड़ी भेजते हो। तो इन कपड़ों में तो छोटा-मोटा डिफेक्ट है, घर में सीलकर
चला लो। हार मानते हुए मैंने उनसे सुई-धागा की गुजारिश की जो उन्होंने
मुस्कुराते हुए दिया। उनकी मुस्कान का 100 वॉट का बल्ब फिर जल चुका था। </div>
<div>
<br /></div>
<div>
मैं भी डीप फ्रीजर से निकले आइसक्रीम की तरह ठंडा होकर
वहां से निकला। सीढ़ी पर ही एक गुस्से से खौलते व्यक्ति से मुलाकात हो गई।
शायद वह भी कपड़े वापस करवाने आया था। मैंने उसके कंधों पर हाथ रखा और
कहा- ठंडे हो जाओ मित्र! बिका हुआ माल और चुना हुआ नेता वापस नहीं होते। </div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-53298775801317788832012-09-14T15:51:00.001+05:302012-09-14T15:56:57.273+05:30कोलगेट करो, दातून से डरो (व्यंग्य)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="clear: left; color: black; float: left; font-family: Arial; font-size: 17px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em; orphans: 2; text-align: start; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_PVfctCeCb8br6oeC3D_vtyOs8ERKiszH2l3mVRjPFrTU_36w_mlSuNPtZV0wpvLhJsxjAsvxLBpGFyp_lkHIsPk2kL1xQsPMOPgIFmtSowaaETnvoC528QhALNek-OvRt9gv9xY14MQ/s1600/coal.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_PVfctCeCb8br6oeC3D_vtyOs8ERKiszH2l3mVRjPFrTU_36w_mlSuNPtZV0wpvLhJsxjAsvxLBpGFyp_lkHIsPk2kL1xQsPMOPgIFmtSowaaETnvoC528QhALNek-OvRt9gv9xY14MQ/s320/coal.jpg" width="214" /></a></div>
चाचा, आज फिर दातून कर रहे हो कभी कोलगेट भी कर लिया करो, दातून करते नत्थू चाचा से जैसे ही मैंने कहा वे अपना दातून थूकते हुए बोले- कर दी ना दिल तोडऩे वाली बात। कोलगेट का नाम सुनते ही लगता है जैसे मेरे किस्मत के सारे गेट बंद हो गए हों। जीवन में सब कुछ किया बस कोलगेट नहीं कर पाया। मैं बोला- चाचा इतनी सी बात, लो अभी दुकान से कोलगेट ले आता हूं। चाचा खिसियाते हुए बोले- अरे आधुनिक युग के पुरातन प्राणी मैं किस कोलगेट की बात कर रहा हूं और तू किस पर अटका है। अरे ये वो कोलगेट नहीं जो पैकेट में समा जाए बल्कि ये वो कोलगेट है जिसमें पूरा देश डूबा पड़ा है। एक कोलगेट दांत चमका रहा है और दूसरा नेताओं की किस्मत।</div>
<br />
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: Arial; font-size: 17px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: start; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;">
<br />
वैसे कोलगेट न कर पाने के लिए मैं खुद को ही दोषी मानता हूं। मैं सारी उम्र आम के अचार में ही मग्न रहा, कभी भ्रष्टाचार का स्वाद नहीं चख पाया। जिंदगीभर कष्ट सहता रहा पर भ्रष्ट नहीं बन पाया। और अब जिंदगी के आखिरी पड़ाव में खिसियानी बिल्ली बन खंबा नोच रहा हूं और नेता कोयला खोद रहे हैं। नेता कोलगेट कर रहे हैं मैं दातून करता रह गया, वे हीरो बन गए मैं कार्टून बनकर रह गया। गुस्साए चाचा ने अपनी दातून तोड़ी और मुझे समझाते हुए बोले- भ्रष्टाचार न कर मैंने तो खुद अपनी कब्र खोदी है पर बेटा, तुम ऐसा मत करना जब भी मौका मिले तुम भ्रष्टाचार की बड़ी-बड़ी सुरंगें खोदना। वैसे सुरंग खोदने के बहुत फायदे हैं, कभी अंडरग्राउंड होना पड़ा तो ये सुरंग बहुत काम आएंगी।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: Arial; font-size: 17px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: start; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;">
<br />
नत्थू चाचा से मिल रहे ज्ञान को मैं बड़े ध्यान से सुन रहा था। मैंने आगे पूछा- चाचा, कोल ब्लॉक पर आपका क्या कहना है? चाचा बोले- कोल ब्लॉक के तो क्या कहने। इस कोल ब्लॉक ने तो कईयों के किस्मत को अनलॉक कर दिया पर देश की गाड़ी को ब्लॉक कर दिया है। देखो पूरा सत्र निकल गया पर संसद चली ही नहीं। एक जोरदार ठहाका मारते हुए मैं बोला- अरे चाचा, माना संसद का आकार गाड़ी के चक्के की तरह है, पर वो चलती थोड़ी है। खिसियाए चाचा बोले- अरे आधुनिक युग के पुरातन प्राणी मेरा मतलब है संसद चलेगी कैसे, कांग्रेस एक्सीलेटर बढ़ा रही है पर भाजपा ब्रेक दबाए बैठी है, कुछ पार्टियां चक्के पंक्चर करने में भिड़ी है। वहीं मुलायम सिंह कभी स्टेफनी लिए हाथ में दिखते हैं, तो कभी कील। उन्होंने दोनों विकल्प खुले रखे हैं, जरुरत पड़ी तो स्टेफनी बन जाएंगे नहीं तो सरकार की गाड़ी पंक्चर कर देंगे। इस एक्सीलेटर-ब्रेक के घमासान में देखो देश का इंजन जल रहा है।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: Arial; font-size: 17px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: start; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;">
<br />
मैंने आगे पूछा- कांग्रेस बहस चाहती है, भाजपा इस्तीफा। न बहस हो रही है न इस्तीफा मिल रहा है, बस कोल के झटके से पूरा देश हिल रहा है। चाचा बोले- बेटा पत्थर तो दोनों बरसाना चाहते हैं पर अपने कांच के घर देख हाथ खींच लेते हैं। तो कोल ब्लाक के इस बंदरबांट पर आप क्या कहेंगे चाचा, मैंने फिर सवाल दागा। अब तक पूरी तरह रिचार्ज हो चुके चाचा बोले- इसे बंदरबांट कहना जाय•ा नहीं होगा। इंसानों के फसाद में बेचारे बंदरों को इन्वाल्व करना ठीक नहीं, चाचा ने अपने अंग्रेजी ज्ञान का परिचय दिया। मैं बोला- फिर इसे हम अंधा बांटे रेवड़ी कह सकते हैं। चाचा बोले- नहीं नहीं, तुम गलत मुहावरों का प्रयोग कर रहे हो। अंधा तो जो हाथ में आए बांट देता है न कम देखता है न ज्यादा, न अपना देखता है न पराया। यहां जो आबंटन हुआ है वो गिद्घदृष्टि से हुआ है। गिद्घों के द्वारा, गिद्घों के लिए। गिद्घ की तरह कोयला खदानों पर नजर गड़ाए लोगों को आबंटन हुआ है। मैं चाचा को टोकते हुए बोला- आप ही मना कर रहे थे जानवरों को इंसानों के फसाद में इन्वाल्व करने से, और अब खुद ही गिद्घों को इसमें घुसा दिया। चाचा मामला संभालते हुए बोले- मैंने तो इस उम्मीद से नेताओं की गिद्घों से तुलना की कि जिस प्रकार गिद्घ दिनोंदिन लुप्तप्राय हो रहे हैं, तो शायद ये नेता भी....। मगर ये तो असंभव लगता है क्योंकि अब तो बंदरों की मानिंद नेता उछल-उछलकर आ रहे हैं।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: Arial; font-size: 17px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: start; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;">
<br />
पूरे पिक्चर की बात बहुत हो चुकी थी, हीरो तो छूट ही गया था। मैंने तुरंत पूछा चाचा कोयला घोटाले के हीरो मनमोहन सिंह के बारे में कुछ नहीं कहेंगे क्या? मुझे यकीन नहीं होता कि उनके कोयला मंत्रालय संभालते ये सब हो गया। चाचा ठहाका मारते हुए बोले- तू सचमुच एंटीक पीस है। अरे जब टाइम ने मनमोहन सिंह को अंडरअचीवर कहा तभी मैं समझ गया था कि अंदर का माल बाहर आने को है। मैं रोकते हुए बोला- पर अंडरअचीवर तो वो होता है जिसने अपेक्षा से कम हासिल किया हो। चाचा समझाते हुए बोला-तुझे तो अंग्रेजी आती ही नहीं। मैं समझाता हूं, अंडर मतलब होता है अंदर, तो जो अंदर से अचीव करे वो अंडरअचीवर। वैसे भी सब कुछ अंदर ही अंदर हुआ है, प्लानिंग भी, आबंटन भी और कोयले की खुदाई तो अंदर ही अंदर होती है। मेरे हिसाब से तो सभी अंडरअचीवर हैं। और अब जब मामला सामने आया तो लोगों के पैरों तले कोयला म..म..मतलब जमीन खिसक गई। खैर मनमोहन जब बेदाग निकलेंगे तब निकलेंगे, अभी तो कोयले की कालिख में सब पुते हैं।</div>
<div style="-webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: Arial; font-size: 17px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-align: start; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;">
<br />
मैं सोचते हुए बोला- चाचा, अब मैं सब समझ गया। पर जब कोलगेट खुले तब क्या करना चाहिये? चाचा बोले- बेटा जब कोलगेट खुले तो आम आदमी की तरह गेट के इस पार नहीं बल्कि उस पार रहना। दाग लगेंगे, पर आज के जमाने में दाग अच्छे हैं। दागी बनो बैरागी नहीं। दागी बने तो कोलगेट करोगे और बैरागी बने तो मेरी तरह दातून। इसलिए बेटा कोलगेट करबे दातून ले डरबे। कुछ देर बाद बड़बड़ाते और दातून चबाते हुए चाचा घर चल पड़े... कोयले सी तपती गुस्साई चाची हंगामा जो कर रही थी। और अब मैं बैठा इंतजार कर रहा हूं अगला कोलगेट खुलने का..।</div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-12862003242439692422012-07-10T22:14:00.002+05:302012-07-10T22:39:18.936+05:30चांद पे जा रे, चांद के प्यारे (व्यंग्य)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjtdwv6T9YKWEu-K9MxT8QrsCMwNU5BrtyatD9X68Fh3dSV8q9EXa-I7q070EJxkl9ih6iJnA4wPK-bnQhzc66g372sFWLrsSD38wTEZcnBct8uulgbWrQYf-1ZTVdLryYrDOiRffrzvd4/s1600/space+tourism.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="198" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjtdwv6T9YKWEu-K9MxT8QrsCMwNU5BrtyatD9X68Fh3dSV8q9EXa-I7q070EJxkl9ih6iJnA4wPK-bnQhzc66g372sFWLrsSD38wTEZcnBct8uulgbWrQYf-1ZTVdLryYrDOiRffrzvd4/s320/space+tourism.jpg" width="320" /></a></div>
लोग कहते हैं टेक्नॉलाजी ने इंसान के जीवन को सुगम बना दिया है, लेकिन इसने तो मेरी जिंदगी को दुर्गम बना दिया है। खबरें आ रही हैं कि करोड़ों रुपए देकर अब चांद की यात्रा की जा सकती है। बस इसी खबर ने मेरी नींद उड़ा दी है। पहले तो हम अपनी प्रियतमा को बोल बचन दे दिया करते थे कि तूझे चांद पर ले जाऊंगा, मगर ये सिरफिरे वैज्ञानिक तो सचमुच सेंटी हो गए और अब चांद की सैर कराने उतारु हो गए हैं। पिछली बार जब चांद पर जमीन खरीदने की बात आई तो मैंने अपनी प्रियतमा से कह दिया कि सब फर्जी है पर इस बार तो वो चांद पर जाने की अर्जी लेकर बैठ गई है। वैसे ये उसकी अर्जी नहीं असल में मर्जी है और मेरी जीवन का मर्ज। खैर मैंने इस बार फिर से उसे नेताजी की तरह बोल बचन देते हुए कह दिया है कि मंगल पर जाएंगे। आशा है कम से कम १५-२० साल तक मंगल पर जाने का कोई पैकेज नहीं आएगा। वैज्ञानिक शांत रहेंगे और मेरे जीवन में भी शांति कायम रहेगी।<br />
<br />
मेरी चिंता तो खत्म हो गई लेकिन जैसा कि आप जानते हैं मैं चिंतक किस्म का हूं। अपनी चिंता खत्म हुई तो क्या पूरे जमाने की चिंता करने का अघोषित ठेका तो मैंने भगवान से लिया हुआ है वो भी बिना टेंडर भरे। सेटिंग है अपनी। बस अब जमाने की चिंता करने में जुटा हूं। वैसे चिंतक गुण के मामले में खुद को अमेरिका की टक्कर का मानता हूं। दूसरे के फटे में टांग घुसाना मेरी प्रमुख खूबियों में एक है। और अगर फटा न तो हम पहले फाड़ते हैं, फिर अपनी टांग घुसाते हैं। चांद पर जाने की खबर क्या निकली चांद के प्यारे चांद पर पहुंचने बेताब हो गए। <br />
<br />
इन्हीं चांद के प्यारों में से एक थे हमारे कवि मित्र उन्माद कुमार 'बेताब'। बेताबजी हमें सड़क पर मिले। उनके उन्मादी चेहरे पर चांद पर जाने की बेताबी साफ दिख रही थी। मैंने तपाक से कहा- चांद पर मत जाना चांद के प्यारे। वो बोले- क्यों। मैंने कहा- पहले तो चांद पर पहुंच पाओगे नहीं आप। वो बोले मैं धन का गरीब हूं मगर कलम का अमीर हूं। मेरे अप्रकाशित कविताओं के इतने पन्ने हैं कि अगर क्रमबद्ध तरीके से जमाऊं तो यूं ही चांद तक हाईवे बना दूंगा। आप लोगों ने तो हमें और हमारी कविताओं को हमेशा हल्के में लिया है, इसलिए जा रहे हैं चांद पर पूरी तरह हलके होने। वहां तो वैसे भी हर चीज ८ गुना हल्की हो जाती है। मैंने कहा- बेताबजी, आपने जुगाड़ तो अच्छा बिठाया है लेकिन भूलकर भी चांद पर न जाना, आप क्या मैं तो कहता हूं कोई कवि चांद पर न जाए। गलती से पहुंच भी गये तो चांद आपको वहीं गड्ढे में पाट देगा।<br />
<br />
बेताबजी ने अचरज से पूछा- ऐसा क्यों? मैंने कहा- चांद बहुत खफा है आप लोगों से, कोई उसे अप्सरा बता देता है, कोई सुंदरता की मूरत, तो कोई चंदा मामा, तो कोई दागदार बदसूरती। जिसके मन में जो आता चांद को वही बना देता है, बिना पूछे उसका लिंग परिवर्तन कर दिया जाता है। खुद को सुंदरता की मूरत कहलाए जाने पर चांद शरमा ही रहा होता है कि कोई दूसरा कवि उसे मामा पुकारने लगता है। उस पर जो थोप दिया गया, वो उसे भारतीय जनता की तरह चुपचाप सहता गया। लेकिन अब नहीं, अब आंदोलनों की बयार छाई हुई है। इंडिया अगेंस्ट करप्शन और चांद अगेंस्ट इमेजिनेशन। चांद पर इतनी गड्ढे यूं ही नहीं पड़े। ये जो आप कवि महाशय चांद पर अपनी कल्पना के हवाईजहाज छोड़ते हैं, ये क्रैश लैंडिंग होकर वहीं गिरते हैं और गड्ढे बनाते हैं। चांद को तो बेसब्री से इंतजार है कि कोई कवि वहां आए और उसे गड्ढे में गाड़कर वो अपनी गड्ढे पाटे। इतना सुनता था और बेताबजी बेताब होकर अपने घर को भागे।<br />
<br />
इधर मुझे बेचारेलाल जी दिखाई दिए दुखी मुद्रा में। मैंने जाते ही पूछा क्या हुआ बेचारेलालजी। अपनी दुखित मुद्रा बरकरार रखते हुए बेचारेलाल जी बोले- महंगाई सातवें आसमान पर हैं, सब चीजें सातवें आसमान पर है चाहे खाने के दाम हो या सोने के। समझ नहीं आता कैसे इनकी हासिल करूं, ये तो मेरी पहुंच से बहुत दूर हो गए हैं। मुझे मौका बिलकुल उपयुक्त लगा अपना वैज्ञानिक ज्ञान दिखाने का, मैंने तुरंत मोटा चश्मा चढ़ाया और कहा- देखिए यहां भौतिकी का नियम लागू होता है- गुरुत्वाकर्षण बल का। पहले आप भी जमीन पर थे और सामानों के दाम भी, सब लेवल में था। आप जमीन पर ही रहे... मगर दाम थोड़ा ऊपर उठी। दाम थोड़ा और उपर उठी.... मगर आप तब भी जमीन पर रहे। अब दाम सातवें आसमान पर है और आप वही के वही जमीन पर। तो बस अब आप कुछ जुगाड़ बिठाइए, गुरुत्वाकर्षण बल के खिलाफ जाइए और पहुंच जाइए चांद पर.... पृथ्वी में आसमान की पांच परतें हैं... ये हो गए पांच आसमान.... दो आसमान और आगे जाइए आ गया सातवां आसमान। यहां आपको महंगाई डायन व आपकी मूलभूत चीजें दिख जाएंगी। मगर आप यहां रुकना मत.. यहां से १० किलोमीटर और आगे जाना और चांद पर उतर जाना। चांद पर आप रहेंगे तो ये सातवें आसमान की चीजें आपके नीचे ही रहेंगी और १५-२० साल बाद अगर महंगाई बढ़ते-बढ़ते चांद तक पहुंच भी गई तो भी ये आपकी पहुंच से बाहर नहीं होंगी। इतना सुनते ही पिछले आधे घंटे से दुखित मुद्रा में दिख रहे बेचारेलाल प्रसन्न हो आगे बढ़ लिए। लोग कहते हैं निंदक नियरे राखिए, मैं तो कहूंगा चिंतक नियरे राखिए... वो भी मुझ जैसा।
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खैर अब आगे बढ़ा तो नेताजी दिख गए उदासी में। नेताजी को उदास देखना हमें बिलकुल गवारा न हुआ। भारत में एक इनकी ही तो प्रजाति प्रसन्न मु्द्रा में रहती है, इनको भी किसी ने नजर लगा दी। मैंने पूछा- क्या हुआ नेताजी। नेताजी बिलखते हुए बोले- जिंदगी नीरस हो गई है....। इतने घोटाले किए, इतने भ्रष्टाचार किए...किसी को नहीं छोड़ा। अब तो धरती पर कुछ रहा ही नहीं जिसमें घोटाला कर सकूं, जिंदगी नीरस हो गई है। घोटाला भी करता हूं तो लोग ध्यान नहीं देते.... जैसे घोटाला न हुआ कोई सब्जी-भाजी हो गया। हमारे मेहनत की तो कोई वैल्यू ही नहीं रह गई है। इतना सुनते ही मेरी आंखें भर आई.... मैंने कहा- बस बहुत हो गया... आप सच्चे चांद के प्यारे हैं। आप चांद पर जाइए... वहां जाकर इंधन घोटाला कीजिए। जो भी चांद घूमने आए.. उसकी वापसी का इंधन पी जाइए। चांद के १००-१५० गड्ढों पर अवैध कब्जा कर लीजिए। नेताजी ने मेरी सुझाव लपका और चांद जाने वाली अंतरिक्ष यान लपकने चल दिए।
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<span style="background-color: white;">इतने लोगों को चांद पर लेक्चर देकर हम खुश बहुत थे। पर अब भी दो लोग खुश नहीं थे। एक तो चिंतक गुण में हमारी टक्कर वाला विदेशी 'अमेरिका' व दूसरी हमारी देसी गर्ल.. हमारी प्रियतमा। इतने लोगों को हमने चांद पर जाने के लिए उत्प्रेरित कर दिया तो अमेरिका घबरा गया कि अब तक तो बस ३ अमेरिकी ही चांद पर पहुंच पाए थे... इसके बस चला तो ये तो १० प्रतिशत भारतीयों को वहीं बसा देगा, फिर अमरीकियों का नामलेवा कौन होगा। इसलिए अब अमेरिका हमारे पीछे लग गया है। और दूसरी हमारी प्रियतमा, जो वैसे ही हमारे पीछे लगी रहती है...अब और पीछे पड़ गई है। क्योंकि किसी ने उसको बता दिया कि मंगल पर १५-२० साल तक जाने का कोई चांस नहीं है। और अब वो फिर पीछे पड़ गई है अपनी चांद पर जाने की अपनी अर्जी लेकर... मतलब मर्जी लेकर... मतलब हुक्म लेकर...। अब मुझे जरुरत है एक चिंतक की, एक शुभचिंतक की, एक महाचिंतक की.....कोई है।</span><br />
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<br /></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-18721872296695893432012-04-26T13:33:00.004+05:302012-04-26T13:34:36.736+05:30मध्यम कुमार 'मध्यस्थ'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjroKp6vU09Xb_OmPs-jRO8ZVz65HrOr9Hq-YLCjw10TTR1UrUADoTpE_hMCNPl6ZSusuTP77AdvtEfVbeONas04y9JH9E3RKUiYp7gp-9xttupLrxfat-ZQIafZ1orqchQNunaj7H1wgo/s1600/mediation.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="148" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjroKp6vU09Xb_OmPs-jRO8ZVz65HrOr9Hq-YLCjw10TTR1UrUADoTpE_hMCNPl6ZSusuTP77AdvtEfVbeONas04y9JH9E3RKUiYp7gp-9xttupLrxfat-ZQIafZ1orqchQNunaj7H1wgo/s200/mediation.jpg" width="200" /></a></div>
मध्यम कुमार बेतहाशा दौड़े जा रहे थे, उन्हें इस तरह भागता देख लग रहा था मानो वे फर्राटा धावक का 100 मीटर का रिकार्ड तोड़ देंगे। वैसे तो इस देश में सब भाग ही रहे हैं- नेता अपने वादों से, अधिकारी अपने काम से, जनता अपने कर्तव्यों से, परिवारवाले बेटियों से भाग रहे हैं, कोई घोटाला करके भाग रहा है, तो कोई घोटाला करने के लिए भाग रहा है। इतने भागदौड़ वाला देश भी जब ओलम्पिक दौड़ में मेडल नहीं ला पाता है, तो बड़ा अचरज होता है। खैर यह सब तो चिंतनीय बातें है, लेकिन अभी हम चिंतक नहीं ईष्र्यालु मूड में हैं और मध्यम कुमार हमारी आंखों के सामने दौडऩे का रिकार्ड बना दे, ऐसा कतई नहीं हो सकता। उनके इस दौड़ में व्यवधान उपस्थित करने हम भी उनके पीछे-पीछे दौडऩे लगे। हमने उन्हें आवाज दी। हमारी आवाज सुनकर उन्होंने अपनी स्पीड धीमी की, हमें थोड़ी खुशी मिली। हमने पूछा- कहां भागे जा रहे हो मध्यम कुमार। पर वे हमारी बात को अनसुना कर फिर भागने लगे। पर अपनी ढीठ प्रवृत्ति के अनुरूप हमने भागते हुए फिर पूछा- कहा जा रहे हो। इस बार मध्यम कुमार रुके और बोले- आज हमें मत रोकिए। आज हम अपना कौशल दिखाकर रहेंगे। आज हमारे मोहल्ले में दो पक्षों का विवाद हो गया है। और जब-जब भी ऐसे विवाद होते हैं, तब-तब जरुरत पड़ती है एक मध्यस्थ की, और वो हैं हम।<br />
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मैंने आश्चर्य से पूछा- आप और मध्यस्थ? मध्यमकुमार जी मामला साफ करते हुए बोले- आप तो हमेशा हमें नजरअंदाज ही कर देते हैं। अजी, हम तो पैदाइशी मध्सस्थ हैं, एकदम खालिस। एक तो हम मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। तीन भाईयों में हम मंझले हैं। हमारी शादी के समय जब हम लड़की देखने गए तब तीन बहनों में हमें छोटी लड़की पसंद थी. पर परिवार वाले हमारी शादी बड़ी लड़की से कराना चाहते थे। बड़ी विकट घड़ी थी, विवाद की स्थिति भी बन रही थी, लगा जैसे जुड़ता हुआ रिश्ता टूट जाएगा । ऐसा लग रहा था जैसे मारा तो बल्ले से छक्का था, लेकिन बाउंड्री लाइन पर लपक लिए जाएंगे। ऐसे संकटपूर्ण स्थिति में अवतरित हुए मध्यम कुमार यानी कि हम। हमने तय किया कि हम मंझली लड़की से विवाह करें। सब मान गए और हो गया हैप्पी एंडिंग। बस तब से हमने अपने कौशल को भांपते हुए और जनता की मांग पर अपने नाम के आगे मध्यस्थ उपनाम जोड़ लिया और हम हो गए मध्यम कुमार 'मध्यस्थ'। तो ये थी मध्यम कुमार 'मध्यस्थ' के अवतरण की छोटी सी कथा।<br />
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हम मध्यम कुमार को टोकते हुए बोले कि जनता ने कब आपसे मांग की कि आप 'मध्यस्थ' उपनाम जोडि़ए। वे समझाते हुए बोले- देखिए सुमितजी, ये सब भावनाओं का खेल है। जनता साफ-साफ कुछ नहीं कहती, बस आपको उसका मन पढऩा आना चाहिए। मौका देख चौका मारिए और खुद को उन पर थोप दीजिए, जनता झेल लेगी। जैसे नेता चुनने का हक हमको नहीं है., बस जो चुनके सामने रख दिए गए हैं उनको वोट देकर जीता दो, यही काम है। देखिए अब कहीं भी झगड़ा होगा तो हम भी अपनी मध्यस्थता थोप देंगे। हम उनकी मध्यस्थता एक्सप्रेस को रोकते हुए बोले- मतलब मध्यस्थ वह होता है जो दूसरे के फटे में जबरन टांग अड़ाए। ध्यमकुमार खीझते हुए बोले- नहीं, नहीं। मध्यस्थ वह होता है जो उस फटे की सिलाई करे, बिलकुल दर्जी की तरह।<br />
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मध्यम कुमार आगे बोले- मध्यस्थों का माखौल उड़ाने से पहले सुमितजी, इतिहास उठा कर देख लीजिए। जितनी भी बड़ी लड़ाईयां हुई हैं, वे सब नहीं हुई होती, अगर उस समय हमारी श्रेणी व हमारी क्षमता का कोई मध्यस्थ वहां होता। पर यह तो नसीब का खेल है। ये तो इस युग की खुशकिस्मती है कि हम जैसे आला दर्जे के मध्यस्थ ने इस युग में जन्म लिया है। हमने आगे मध्यम कुमार से पूछा-, हम आपका माखौल नहीं उड़ा रहे लेकिन पिछली बार आप दो लोगों के विवाद में बिना बुलाए पहुंच गए थे मध्यस्थता करने। उस समय दोनों ही पक्षों ने आपको मध्यस्थ बनाने से इंकार कर दिया था, तब क्या आपके आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंच थी। मध्यम कुमार बोले- देखिए, हमें ठेस नहीं पहुंची, बल्कि हमने इसे एक और मौके के रूप में लिया है। क्योंकि अभी इनका विवाद अस्थायी तौर पर निपटा है, अगली बार जब इनका विवाद होगा तब इन्हें हम ही याद आएंगे, और तब हम दिखाएंगे अपना जलवा। हम तो परमानेंट मामला सुलझाने वालों में से है।<br />
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मध्यमकुमार आगे बोले- हमें न लडऩा-झगडऩा पसंद है, न हम आपकी तरह तटस्थ रह सकते हैं, हमें तो बस मध्यस्थता करना पसंद है, और इसमे तो हम उस्ताद हैं। ये बीत दीगर है कि हमें कभी अपनी उस्तादी दिखाने का कोई बड़ा मौका नहीं मिला। पर आज मोहल्ले में बड़ा विवाद हुआ है। और इस विवाद को सुलझाने के बाद हमें मध्यस्थ शिरोमणि की उपाधि जरुर मिल जाएगी। धत्त तेरी की, आप जैसे तटस्थ से बात करने के चक्कर में कहीं हम मध्यस्थता करने का मौका न गंवा दें। जल्दी दौडि़ए इससे पहले कि कोई और मध्यस्थ बीच ममें कूदकर मामला सुलझा दे। मध्यम कुमार जी फिर फर्राटा गति से दौड़ लगाकर कर चल दिए। हम भी मजबूर देश के मजबूर नागरिक की तरह उनके पीछे-पीछे चल दिए। विवाद वाली जगह पर पहुंचकर जो नजारा मध्यम कुमार ने देखा, उसके बाद उनको काटो तो खून नहीं। किसी दूसरे मध्यस्थ ने आकर मामला पहले ही सुलझा दिया था। विवादित पक्षों में मिलने-मिलने का कार्यक्रम चल रहा था। मध्यम कुमार की हालत ऐसी हो गई थी, जैसे शादी उनकी हो और दुल्हन से फेरे कोई और ले बैठा।<br />
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मध्यम कुमार का चेहरा हताश, निराश और देवदास सरीखा हो गया था। मौके की गमगीनी को देख मैंने तुरंत एक शायरी दे मारी कि-<br />
<i>मोहब्बत का अंजाम देख्र डर रहे हो, </i><br />
<i>निगाहों में अपनी लहू भर रहे हो, </i><br />
<i>तेरी प्रेमिका ले उड़ा और कोई</i><br />
<i>इक तुम हो कि मातम मना रहे हैं</i><br />
इतना सुनते ही मध्यम कुमार अब दीर्घ होते हुए मेरे पास आए। उनके अंदर का गुस्सा खौल रहा था और वे उबलते हुए बोले- सब तुम्हारे कारण हैं। तुमने हमारा समय खराब किया और हमने मध्यस्थता करने का एक अदद मौका खो दिया। इतना सुन मैंने भी अपने पैने-पैने शब्दबाण उन पर छोड़े। अब हम दोनों में विवाद हो रहा है और हमें जरुरत है एक मध्यस्थ की। हे 'मध्यस्थ' प्रकट भव:।</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-73127367187834999732012-04-21T16:42:00.000+05:302012-04-21T16:42:23.822+05:30ग्राम सुर+आज अभियान लाईव (व्यंग्य)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjbfKz-rzJefEY39LK-yUP4dPa_16fBzURe2I7NZoUPxmJBRjOeFpMjy2enk5Vm8gJCGEMKdpdaj4Sn1EIX8m-Tw_sp2b4LPWpjIs0MKzbWIVf-WLH01z6GdYyOCf-a2IJP0Zrxj9dKhp4/s1600/gram+suraj.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjbfKz-rzJefEY39LK-yUP4dPa_16fBzURe2I7NZoUPxmJBRjOeFpMjy2enk5Vm8gJCGEMKdpdaj4Sn1EIX8m-Tw_sp2b4LPWpjIs0MKzbWIVf-WLH01z6GdYyOCf-a2IJP0Zrxj9dKhp4/s200/gram+suraj.jpg" width="200" /></a></div>
छत्तीसगढ़ में ग्राम सुराज अभियान शुरु हो चुका है और मुझे इस दौरान गांव जाने की बेहद इच्छा थी। यूं तो ग्राम सुराज की खबरें टीवी, अखबारों में आती ही रहती हैं और मैं उनके जरिए भी गांवों की विकासगाथा सुन सकता था, मगर हम थोड़े अलग किस्म के बंदे हैं। हमें हर चीज लाइव देखना पसंद है, जैसे क्रिकेट मैच का मजा तो टीवी पर भी लिया जा सकता है, लेकिन स्टेडियम पर अपनी आंखों के सामने चौके-छक्के बरसते देखने का आनंद ही कुछ और ही है। रसखान ने कहा था कि- ''रसखान कबहु इन आंखिन सो, ब्रज के बन-बाग, तड़ाग निहारौ''। रसखान अपनी आंखों से ब्रज को निहारने लालायित थे। उसी तरह हम भी अपने गांव के खेत-खलिहान, विकास और सुराज को देखने लालायित थे। अपनी इसी पिपासा को शांत करने और ग्राम सुराज लाइव देखने हम अपने गांव धमक पड़े।<br />
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गांव में कदम रखते ही मित्र से मुलाकात हो जाए, इससे अच्छी कोई बात हो ही नहीं सकती। अपने मित्र समारू से मिलते ही हमने कहा- मित्र समारू बधाई हो, ग्राम सुराज अभियान शुरु हो चुका है, आज तो सुराज दल तुम्हारे यहां आने वाला है। हमारे मित्र ने पूछा- ग्राम सुराज? ये क्या होता है भई। मैने कहा- वही ग्राम सुराज अभियान, जो सरकार चलाती है और ऑन द स्पॉट सभी समस्याओं का निराकरण करती है। और जो समस्याएं बच जाती हैं उनको भी निपटाने का वो कमिटमेंट करती है। और एक बार जो सरकार ने कमिटमेंट कर दी फिर वो अपने आप की भी नहीं सुनती। समारू कुछ सोचते हुए बोला- अच्छा, सुराज मतलब होता क्या है? मैंने कहा- गांव में रहने का यही प्राब्लम है, हर चीज समझाना पड़ता है। हिंदी की कक्षा में संधि-विच्छेद पड़े हो ना। समारू सिर हिलाते हुए हां, बोला। मैंने कहा- बस, अब देखो सु+राज= सुराज। सुराज का मतलब होता है- अच्छा राज। जहां विकास ही विकास हो।<br />
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समारू फिर सकुचाते हुए बोला- ये तो ठीक है, पर विकास का मतलब क्या है। मैंने झुंझलाते हुए उत्तर दिया- विकास मतलब इंग्लिश में डेव्हलपमेंट। इतना सुनते ही समारू जोर से बोला- ऐसे बोलो ना डेव्हलपमेंट, क्या कबसे हिन्दी में विकास-विकास की रट लगा रहे थे। तो तुम्हारा मतलब कि सुराज मतलब, अच्छा राज, जहां विकास हो, समस्याओं का निराकरण हो, खुशहाली आदि। मैं खुश होते हुए बोला- सही समझे समारू। समारू फिर बोला- अच्छा किया भाई, बता दिए। वरना मैं तो इतने समय से सुराज का कुछ और ही मतलब निकाल कर बैठा था। मैंने आश्चर्य से पूछा- ऐसा क्या मतलब निकाला था तुमने। समारू बोला- मैं तो अब तक सोच रहा था कि सुराज = सुर+आज। मतलब आओ आज सुर लगाते हैं। और ग्राम सुराज का मतलब समझ रहा था कि आओ आज गांव पहुंचकर विकास का सुर अलापते हैं। मेरी तो मत मारी गई थी, अच्छा हुआ मित्र जो आज तुमने मुझे इसका मतलब समझाया। पिछली बार तो आम के पेड़ की घनी छांव में चौपाल लगाकर जब विकास का सुर अलापा जा रहा था तो सुराज दल वालों ने मुझे भी कुछ कहने के लिए बोला। मैं समझा मुझे भी गाने के लिए बोल रहे हैं, तो मैंने मना कर दिया। क्योंकि गाने के मामले में तो मैं कौवों को भी फेल कर देता हूं। धत्ते तेरी की, वो मुझसे मेरी समस्याएं पूछ रहे थे, और मैं अभागा क्या समझ बैठा।<br />
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मौके की नजाकत को भांप मैंने तुरंत श्री मैथीलीशरण जी की कविता दे मारी- ''नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो''। निराश समारू बोला- क्या काम करूं। मैंने कहा- पिछली बार चूक गए, कोई बात नहीं। इस दफे जब सुराज वाले तुम्हारे गांव आएंगे तो उन्हें अपनी समस्याओं की टोकरी पकड़ा देना। समारू आश्चर्य से पूछा- उससे क्या होगा। मैंने सरकारी मशीनरी, गजब की मशीनरी है। सरकारी मशीनरी में एक सिरे से समस्याओं की टोकरी जाती है और दूसरे सिरे से निराकरित होकर निकलती है। जैसे हम धोबी को गंदे कपड़े धोने देते हैं, तो वो उसी कपड़े को धोकर, चकाचक करके हमें वापस करता है। समारू बोला- लेकिन हमारे यहां का धोबी तो कपड़े के दाग तक नहीं निकाल पाता और कई बार तो कपड़े का गठरी ही गुमा देता है। तो क्या सरकारी मशीनरी भी धोबी की तरह काम करती है। मैं मामला साफ करते हुए बोला- नहीं बंधु, धोबी सरकारी मशीनरी की तरह काम करता है। अब देखो थोड़ी बहुत भूल-चूक तो चलती रहती है न। ये तो आपस की बात है।<br />
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समारू आगे बोला- लेकिन हमारे यहां तो सबकी समस्याएं पिछले साल से जस की तस है। मैं अवाक होकर बोला- क्या बात करते हो मित्र। कुछ दिन पहले ही मैंने खबर पढ़ी है कि पिछले साल जितनी शिकायतें मिली थीं उनसे ज्यादा का तो निराकरण हो गया। इससे साफ साबित होता है कि हमारी सरकार दूरदर्शी होने के साथ-साथ हमारी मित्र भी है। क्योकि मित्र वो नहीं होता जो समस्या आने के बाद मदद के लिए आए, बल्कि मित्र वो होता है जो समस्या के पैदा होने के पहले ही उसे हल कर दे। इस तरह सरकार का यह मित्रवत व्यवहार अति उत्तम है। इस मित्रवत व्यवहार के बाद तो मुझे लगता है कि एक ग्राम मित्रता अभियान भी बस शुरू होने को है। समारू मंद-मंद मुस्काते हुए बोला- मित्र पर तुम एक बात भूल गए कि जहां-जहां भी अब तक समस्याओं का हल नहीं हो पाया है, वहां पर सुराज दल के पहुंचते ही पूरे दल को बंधक बना रहे हैं। ऐसा तो कई बार हो चुका है। और जिस तरह इतने देर से तुम विकास का सुर अलाप रहे हो, मुझे शक है तुम भी सुराज दल के लग रहे हो, बल्कि तुम तो उस दल के प्रमुख लग रहे हो। पकड़ लो इसे, समारू चिल्लाया। इतने में तनी हुए भौहों के साथ कुछ लोग वहां उपस्थित हुए और मुझे रस्सी से बांध कर स्कूल में ले गए। स्कूल तो बहुत गया हूं पर ऐसे कभी नहीं। ग्राम सुराज लाइव देखने आया था और बंधक बनके बैठा हूं। बोर भी हो रहा हूं, लेकिन चिंता की बात नहीं ओरिजिनल सुराज दल वाले भी बंधक बनकर आते ही होंगे, फिर होगा अपना एंटरटेनमेंट, वो भी लाइव।<br />
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</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-31377547747880675532012-04-01T15:24:00.001+05:302012-04-01T15:50:21.510+05:30आवश्यकता है मूर्खों की.... (व्यंग्य)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEio-bNJ4EACK6oAqZBr5_ws4VqbrtGOfWNXvBkK_K-o7awK3UDTjqn8YixXuUKPckUevf5VFdNxudfgfzA10q9iH7LlhiEc8x6ZZnRkplp9pVznFnZRzEh0pKCX0ZvzADnlAt4onEuI1wo/s1600/French-April-Fools-Day.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="193" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEio-bNJ4EACK6oAqZBr5_ws4VqbrtGOfWNXvBkK_K-o7awK3UDTjqn8YixXuUKPckUevf5VFdNxudfgfzA10q9iH7LlhiEc8x6ZZnRkplp9pVznFnZRzEh0pKCX0ZvzADnlAt4onEuI1wo/s200/French-April-Fools-Day.jpg" width="200" /></a></div>
आवश्यकता है मूर्खों की, इच्छुक व्यक्ति कृपया आवेदन करें। एक बार मूर्ख बनने पर 500 रुपये दिया जाएगा। मैं अखबार में इश्तेहार देने के लिए कागज पर यह सब लिख ही रहा था कि गलत टाइमिंग पर टपकने में उस्ताद मेरे मित्र साहूजी आ गए। आते ही मेरे हाथ से वह कागज छीना और चौंकते हुए पूछने लगे- यह भी कोई इश्तहार हुआ अखबार में देने लायक। इश्तहार देना ही है तो शादी का दो, शादी की उम्र भी हो गई है। मैंने कहा- मित्र, बहुत जरुरी है यह इश्तहार देना, शादी तो होती रहेगी पर पहले जरुरी है मूर्ख दिवस पर किसी को मूर्ख बनाना। साहूजी बोले- वही तो मैं कह रहा हूं, शादी कर लो मूर्ख अपने आप बन जाओगे।<br />
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मैंने कहा- आप समझे नहीं मुझे मूर्ख बनना नहीं मूर्ख बनाना है। मैं बहुत चिंतित हूं दिन ब दिन मूर्खों की घटती संख्या से। मुझे डर है कि अगर इसी तरह मूर्खों की संख्या घटती रही तो मूर्ख दिवस विलुप्त हो जाएगा। जिस गति से लोग मूर्ख से समझदार बनते जा रहे हैं वह खतरे की घंटी है। बांघों के लिए जैसे संरक्षण कार्यक्रम चल रहे हैं वैसे ही हमें मूर्ख संरक्षण कार्यक्रम चलाना चाहिए।
खैर, यह तो हुई भविष्य की बात फिलहाल मुझे मूर्खों की अर्जेंट आवश्यकता है। काश.... डोमिनोज में मूर्ख भी मिलते, 30 मिनट में उन्होंने एकाध की होम डिलिवरी मेरे घर करा दी होती। साहूजी तपाक से बोले- इतना चिंतित न हो, जब तक तुम इस धरती पर हो, मूर्खों की पताका लहराती रहेगी। मैंने कहा- माना मैं मूर्ख हूं पर खुद को मूर्ख बनाने में क्या मजा। पिछले कई सालों से मैं मूर्ख दिवस पर किसी को मूर्ख नहीं बना पाया हूं। इसका मुझे बड़ा दुख है। कुछ इसी तरह का दुख मुझे तब हुआ था जब मैं सायकिल को छो़ड़कर मोटरसायकिल पर आया था। मैंने सोचा मेरी तरक्की हो गई पर पेट्रोल ने हमपे ऐसा जुल्म ढाया है कि तरक्की की राह कच्ची हो गई।<br />
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साहूजी मुझे सांत्वना देते हुए बोले- पहले तो आप १ अप्रैल का मोह त्यागिए। भई ये मूर्ख दिवस अब १ अप्रैल को नहीं, सालभर बनाया जाता है। अब देखिए कुछ दिनों पहले सरकार बोल रही थी पेट्रोल के दाम नहीं बढ़ेंगे, फिर अचानक बढ़ा दिए और हमको इंस्टेंट (क्षणिक) मूर्ख बनाया गया। अब अपने प्रधानमंत्रीजी को ही लीजिए। पहले कार्यकाल में उनको गठबंधन सरकार की ऐसी गाड़ी चलाने मिली जिसके टायर पंक्चर थे, इंजन खराब था, पेट्रोल भरवाने वाली सहयोगी पार्टियां अकड़ दिखाती थी। वह कार्यकाल तो जैसे-तैसे चला, यह कार्यकाल तो उससे भी बढ़कर है। इस बार तो बड़े-बड़े घोटाले हुए। घोटाला कोई और करता है इस्तीफे की मांग इनकी उठने लगती है। घोटाला करने वाले खुश पर माथे पर शिकन इनके। मनमोहनजी को तो 8 सालों से अप्रैल फूल बनाया जा रहा है। पर मनमोहनजी भी कम नहीं। इधर जब अन्ना लोकपाल का टोल प्लाजा बनाकर सड़क पर खड़े हो गए और टोल के रूप में लोकपाल बिल मांगने लगे तो मनमोहन जी अन्ना को जोकपाल पकड़ाकर गच्चा देकर भाग गए और अन्ना को फूल बना गए। दूसरी ओर बाबा रामदेव के अनशन के दौरान पुलिस ने पहले कहा लाठीचार्ज नहीं करेंगे और फिर जनता को मूर्ख बनाते हुए रात को लाठीचार्ज कर दिया। इधर रामदेव भी अपने लंबे बालों का फायदा उठाकर झट लड़की का रूप धरकर पुलिस को मूर्ख बनाकर भाग निकले।<br />
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साहूजी आगे बोले- दरअसल बंधु ये पूरा मूर्ख चक्र है। सब एक-दूसरे को मूर्ख बना रहे है। आप चाहे आम जनता रहें या नेता मूर्ख बनने से बच नहीं पाएंगे। मूर्खता एक धर्मनिरपेक्ष भावना है जो सब में बराबरी से समाई हुई है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, हम सब मूरख भाई-भाई। पहला दूसरे को मूर्ख बनाता है, दूसरे तीसरे को, तीसरा चौथे को और चौथा पहले को। आप और हम भी इसी चक्र के स्टॉपेज प्वाइंट हैं। हमारे आफके बिना ये चक्र पूरा नहीं होता। पिछले दिनों ही मैं मूर्ख बना था। दूध में पानी मिलाना तो अब अनिवार्य हो गया है, पर मेरे दूधवाले ने मुझे शुद्ध दूध पिलाकर मूर्ख बना दिया और बदहजमी करा गया। तब से ऐसी हालत हो गई है कि दूध का जला हूं, चाय भी पानी डाल-डालकर पी रहा हूं।<br />
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कभी नेता जनता को मूर्ख बनाते हैं, कभी जनता नेता को। नेताजी जितनी गति से वादे करते हैं और उतनी ही गति से भूलते भी जाते हैं। जनता भी चपल हो गई है, शराब इससे लेती है, कंबल उससे और वोट किसी तीसरे को दे देती है। नेता नेता को भी मूर्ख बना रहे हैं, सांप के डसने से सांप भी मर रहे हैं। गठबंधन का वादा किसी के साथ करते हैं, और जाकर किसी दूसरे से मिल जाते हैं। एक बार मैंने भी अपने यहां के दागी नेता को मूर्ख बनाने की कोशिश की, पर सफल न हो पाया। चुनाव में खड़े दोनों उम्मीदवार सांपनाथ और नागनाथ थे। मैंने दोनों को ही वोट नहीं दिया। लेकिन बाकी लोगों ने सांपनाथ को जीता दिया, करते भी क्या ऑप्शन ही नहीं था जनता बेचारी मूर्ख बन गई। खैर ये सब छोड़िए, आप क्या बोल रहे थे सुमितजी कि आपने कभी किसी को मूर्ख नहीं बनाया। कल ही मुझे अपनी बिना पेट्रोल वाली मोटरसायकिल पकड़ाकर मूर्ख बनाया। साहूजी के इतना कहते ही मैं मुस्कुराया। उन्होंने आगे मेरे द्वारा मूर्ख बनाने के किस्से जारी रखें जिससे मेरी मुस्कान और बढ़ती गई। मुस्कुराते मुस्कूराते होठों का फैलाव इतना हो गया कि वे दुखने लगे। पर होठों के दर्द पर तारीफों का मरहम काम कर रहा ता। इधर होठों के बीच से झांकते दातों के बीच मच्छरों को घुसपैठ का रास्ता दिखाई दे रहा था.....।<br />
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साहूजी आगे बोले- सबसे बड़ा मूर्ख तो मैं हूं जो आज आफिस जाने के बजाए 1 घंटा आपके साथ खराब कर बैठा। इतनी तारीफ सुनने के बाद मेरा फर्ज बनता था कि मैं उनको आफिस छोडूं। मैंने साहूजी को आफिस छो़ड़ने की पेशकश की और उनके साथ बाहर आ गया। तभी साहूजी- जोर से चिल्लाए। अप्रैल फूल बनाया, हमको मजा आया। आज तो संडे है, संडे को कोई आफिस जाता है भला। मेरे चेहरे पर चस्पी लंबी सी मुस्कान तुरंत उतर गई। घुसपैठ की उम्मीद में आगे बढ़ रहे मच्छऱ निराश होकर लौट गए। मैं भी वापस अपने कमरे में लौट आया और फिर लिखने लगा...... "आवश्यकता है मूर्खों की....."।</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-90526125989501619032012-03-24T20:43:00.000+05:302012-04-01T15:23:13.427+05:30कुर्सी लत मोहे ऐसी लागी.....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjO_L49pOUPePmAao6aICKqiw1A-xfcbi6dCAr4XfH059twmwIbNY5fxN2XsuZTrcesYGib2tUOvdAW_09xTbA8BBBBsRfht0uo5f0w7iRry-TQeimHo3OBNfi9mKOc47WdQp_i_9rXjVw/s1600/kalmadi.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="165" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjO_L49pOUPePmAao6aICKqiw1A-xfcbi6dCAr4XfH059twmwIbNY5fxN2XsuZTrcesYGib2tUOvdAW_09xTbA8BBBBsRfht0uo5f0w7iRry-TQeimHo3OBNfi9mKOc47WdQp_i_9rXjVw/s200/kalmadi.jpg" width="200" /></a></div>
मार्निंग वॉक करना स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी है। इस लाभ में तब और वृद्धि हो जाती है जब वॉक के दौरान किसी सुंदर युवती से आपकी टॉक हो जाए। लेकिन यह लाभ तब घाटे का सौदा साबित होता है जब कोई अनचाहा आदमी आपसे टकरा जाए। ऐसे ही आज सुबह वॉक के दौरान हमारे मोहल्ले के शर्माजी हमसे टकरा गए। कुछ बुदबुदाते हुए वे बड़े गुस्से से मेरी तरफ ही आ रहे थे। मैंने लाख प्रयास किया पर बच न पाया। मेरी किस्मत ही खराब है- न मैं महंगाई की मार से बच पाता हूं, न पेट्रोल की वार से। स्कूल में टीचर से बच नहीं पाता था, और अब आफिस में बॉस से। लोग कहते हैं मैं बचने के प्रयास के दौरान अपना १०० प्रतिशत नहीं देता, इसलिए बच नहीं पाता। कोई बात नहीं अगली बार जरूर बचूंगा। खैर अब तो मैं शर्माजी के हत्थे चढ़ ही गया था। मेरे पास आकर वे फिर बुदबुदाने लगे। मैंने कहा शर्माजी- वाइब्रेशन मोड से नार्मल मोड में तो आइए। शर्माजी हांफते हुए बोले- क्या बताउं इतना गुस्सा आ रहा है कि बीपी हाई हो गया है, दिमाग फ्राई हो गया है और गला सूखकर ड्राई हो गया है। मैंने कहा- आराम से बैठिए, पानी पीजिए फिर बताइए क्या हुआ। दो मिनट शांत रहने के बाद शर्माजी फिर रुद्र अवतार में आ गए और बोले- हद हो गई, कलमाड़ी कहता है मैं कुर्सी नहीं छोड़ूंगा, भारतीय ओलंपिक संघ का पद नहीं त्यागूंगा। मैंने कहा- बस इतनी सी बात और आप अपना खून जला रहे हैं। यही तो दिक्कत है आप जैसे आम आदमियों की, कॉमन मैन कहीं के। आप तो ऐसे उतावले हो रहे हैं जैसे कि उनके हटते ही आपको उस कुर्सी पर बिठाने वाले हैं।<br />
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चलिए चाय पीते-पीते इस मामले पर चिंतन करते हैं, मैंने शर्माजी को चाय के लिए पूछा और कहा- शर्माजी आप ठहरे आम आदमी, नौकरीपेशा टाईप, जिंदगी भर बस सैलरी उठाई और घर चलाया है। आपको क्या पता कुर्सी की लत क्या होती है। मुझे मालूम है आपका कभी मन नहीं हुआ होगा कि आप अपने आफिस की कुर्सी से चिपके रहें। आप तो बस इसी जुगत में रहते हैं कि कब आफिस बंद हो और आप घर में पैर पसारकर सोएं, कॉमन मैन कहीं के। लेकिन जो कर्मठ लोग होते हैं वो लोग हमेशा कुर्सी से चिपके रहते हैं चाहे दिन हो रात। हमारे कलमाड़ी जी भी इसी श्रेणी के हैं। अपितु मैं क्षमा चाहूंगा कि मैंने इसे कुर्सी की लत कहा, दरअसल ये तो कुर्सी का प्रेम है।<br />
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शर्माजी को मेरी बातें समझ नहीं आ रही थीं। मैंने कहा- देखिए शर्माजी मैं इसे विस्तार से समझाता हूं। नेताजी का कुर्सी पर बैठना बिलकुल अरेंज मैरिज जैसा है। अरेंज मैरिज में दो अजनबियों की शादी हो जाती है फिर बड़े आहिस्ता-आहिस्ता उन दोनों में प्रेम पनपता है और कुछ सालों बाद ऐसी हालत हो जाती है कि दोनों एक जिस्म दो जान हो जाते हैं<b><i> (नोटः ऐसा मामला १०० में से सिर्फ १० खुशनसीबों में पाया जाता है)</i></b>। उसी तरह जब कोई नेता-अफसर किसी कुर्सी पर बैठता है तो शुरु में उतना मोह नहीं रहता, लेकिन धीरे-धीरे उसे अपनी कुर्सी से प्यार हो जाता है। कलमाड़ी जी के साथ भी ऐसा ही केस है। अरे कलमाड़ी तो १५ सालों से उस कुर्सी पर काबिज हैं, प्यार होना तो लाजिमी था। आप ये क्यों नहीं देखते कि उनके इस व्यवहार से उनका प्रेमपूर्ण व्यक्तित्व की झलक मिलती है। पर शर्माजी आप को क्या पता प्यार का बंधन क्या होता है, आप तो खुद अपनी श्रीमतीजी से भागते फिरते रहते हैं, कॉमन मैन कहीं के।<br />
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अबकी बार शर्माजी मुझे टोकते हुए बोले- चलिए मान लिया कलमाड़ी बहुत कर्मठ हैं, प्रेम पुजारी टाईप हैं। पर घोटालों का क्या? अच्छे खासे कॉमनवेल्थ गेम्स को उन्होंने कम ऑन वेल्थ गेम्स बना दिया। वेल्थ की इतनी हेरा-फेरी हुई कि जनता की हेल्थ खराब हो गई। मैं शर्माजी को रोकते हुए बोला- बस फिर कर दी न, आम आदमी वाली बात। अरे जनता को आप बहुत अंडरएस्टीमेट करते हैं। जनता की पाचन क्षमता बहुत जबर्दस्त है वो तो ऐसे घोटाले यूं ही पचा जाती है। और घोटाले करने से एक बात स्पष्ट होती है कि कलमाड़ीजी मेहनती होने के साथ-साथ दिमाग के धनी भी हैं। घोटाला करने बिलकुल दूध में से मक्खन निकालने जैसा मेहनत का काम है। इसमें अतिरिक्त मेहनत भी लगती है, और दिमाग भी। घोटाला यूं ही नहीं हो जाता। कुर्सी से प्रेम सिर्फ वही कर सकता है जो तन, मन और धन से कुर्सी से जुड़ा हो। कुर्सी पर बैठते ही पहले कलमाड़ीजी का तन जुड़ा कुर्सी से, १५ साल में मन तो जुड़ना ही था और कितना धन जुड़ गया ये तो पूरे देश ने देख ही लिया। मेरे भैय्या यही तो है कुर्सीप्रेम। कोई सालों से कुर्सी पर काबिज है, तो कोई कुर्सी छूट जाने के बाद भी कुर्सी के पीछे दीवाना है। इधर येद्दियुरप्पा का सीएम की कुर्सी के लिए लड़ना, उधर उत्तराखंड में बहुगुणा का अपनी कुर्सी बचाने के लिए जुगत लगाना सब कुर्सीप्रेम का ही परिचायक हैं।<br />
<br />
इसलिए इन कुर्सीप्रेमियों को मस्त रहने दीजिए। मैं तो कहता हूं शर्माजी इस कुर्सीप्रेम वाले युग में आप भी प्रेम करने के लिए एक कुर्सी ढूंढ लीजिए, वरना आप सिंगल के सिंगल रह जाएंगे। आज जो कुर्सी पर बैठे वो स्पेशल है, जो कुर्सी के सामने खड़े रहे वो कॉमन। शर्माजी मेरी बात बड़ी ध्यान से सुन रहे थे। वे बोले- आपने तो मेरी आंखें खोल दीं, लेकिन एक बात मुझे अच्छी नहीं लगी। आप बार-बार मुझे कॉमन मैन कहीं के क्यों कह रहे थे, आप कौन सा स्पेशल हो गए। मैंने आश्चर्य से उन्हें देखा और बोला- कमाल कर दिया आपने शर्माजी, पूरे मोहल्ले में हल्ला है और आपको पता ही नहीं। मुझे मोहल्ला समिति का अध्य्क्ष बनाया गया और अब कोई कुछ भी करे मैं सालों तक इस कुर्सी को नहीं छोड़ूंगा.....। शर्माजी मुझे अवाक् देखते रह गए और चल दिए...... शायद अब किसी और के पास जाकर मेरे द्वारा कुर्सी न छोड़ने का मामला उठाएंगे।<br />
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<br /></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-74217916789951551832012-03-07T17:58:00.004+05:302012-04-01T15:23:17.212+05:30होली ठिठोली (व्यंग्य कविताएं)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<span style="color: red; font-size: large;">घोटालों की होली</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjjOLWVaajdAVDeiAazYniJn7KYh9IWZsC5sS36hTpXNB2SXo-Tm82TM84mEd1Cf04RW9H_I_AVoh1SfQepIXOmZoaUPgAM8mdgTRsYRHU79mSbFX9my4hzaf7rc5s9qXnJQD4x26c6FxI/s1600/manmohan-singh-and-sonia-gandhi-cartoon.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="220" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjjOLWVaajdAVDeiAazYniJn7KYh9IWZsC5sS36hTpXNB2SXo-Tm82TM84mEd1Cf04RW9H_I_AVoh1SfQepIXOmZoaUPgAM8mdgTRsYRHU79mSbFX9my4hzaf7rc5s9qXnJQD4x26c6FxI/s320/manmohan-singh-and-sonia-gandhi-cartoon.jpg" width="320" /></a></div>
<span style="color: red; font-size: large;"><br /></span><br />
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यूपीए तोड़ रही है, भ्रष्टाचार के रिकार्ड सारे,<br />
क्या अफसर, क्या नेता, भष्ट यहां हैं सारे,<br />
सरकार के मंत्रियों पर चढ़ा घोटाले का रंग है,<br />
देख के घोटाले की होली, सारी दुनिया दंग है,<br />
किसी ने बनाया कॉमन से वेल्थ,<br />
तो कोई हुआ 2जी से मालामाल,<br />
जिसने चुना था इनको, वही जनता रही बेहाल,<br />
बहुत हुआ सब घोटाला, अब जनता सबक सिखाएगी,<br />
अगले साल चुनावी होली में अपना रंग दिखलाएगी,<br />
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<span style="color: red; font-size: large;">बाबा-अन्ना की होली</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgelhT3R952i7FlKwCCqKsKskQHCgKMjMTnSSf_kWQkBHfmUx9rtXqk2hnq6tSWqIVA_vuwMYFmtbkjxZyu3RHtrgXVxmw2aqa-vvR1Iujwf8yqtWY_G4olDMOLAVnquR5V9qApBEUFjzQ/s1600/ramdev.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="219" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgelhT3R952i7FlKwCCqKsKskQHCgKMjMTnSSf_kWQkBHfmUx9rtXqk2hnq6tSWqIVA_vuwMYFmtbkjxZyu3RHtrgXVxmw2aqa-vvR1Iujwf8yqtWY_G4olDMOLAVnquR5V9qApBEUFjzQ/s320/ramdev.jpg" width="320" /></a></div>
<span style="color: red; font-size: large;"><br /></span><br />
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सुन सरकार के घोटालों की किलकारी,<br />
बाबा-अन्ना तैयार हुए ले लोकपाल की पिचकारी,<br />
काले धन का राग अलाप बाबा कूदे मैदान में,<br />
आंदोलन का रंग भर बैठे रामलीला मैदान में,<br />
कालाधन तो नहीं आया, पर पुलिस दौड़ाने आई,<br />
इस आपाधापी में बाबा की जुल्फें काम आई,<br />
झट रूप धर के महिला का बाबा बच के निकले,<br />
प्रेस कान्फ्रेंस दे सलवार सूट में, बाबा आश्रम को निकले,<br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjGkJ3iDB2scI3Xx9JXZooeiNktMlSmRccFvfJCuVk2az4g1Gen_am_S0QJcqqXFlGx-xJt36yYZ0cYzetDbum7PdNDdnLY_ymuctDEeVud_SD1shNv6hztdp6xHFMWpeGVi74H2jHeXUI/s1600/anna1.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="222" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjGkJ3iDB2scI3Xx9JXZooeiNktMlSmRccFvfJCuVk2az4g1Gen_am_S0QJcqqXFlGx-xJt36yYZ0cYzetDbum7PdNDdnLY_ymuctDEeVud_SD1shNv6hztdp6xHFMWpeGVi74H2jHeXUI/s320/anna1.jpg" width="320" /></a></div>
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इसके बाद आए अन्ना खेलने लोकपाल की होली,<br />
सर पर चढ़ा अन्ना टोपी आई टीम अन्ना की टोली,<br />
लोकपाल की पिचकारी से देश हुआ सराबोर,<br />
लोकपाल लोकपाल का जप सुनाई दिया चहुंओर,<br />
देख अन्ना का ऐसा क्रेज, भ्रष्टों की टोली बिचकाई,<br />
अन्ना को उसने सरकारी लोकपाल की गुलाल लगाई,<br />
सरकार लोकपाल का फीका रंग, देख अन्ना बौराए,<br />
चले अन्ना आगे-आगे, पूरा देश उनके पीछा आए,<br />
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<span style="color: red; font-size: large;">जनता होए कन्फ्यूज</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9xx85Ng0gJ4agCVkd6zy3msW9-tthZFNNOEjQaZZn9Litq9o517FSu1Hz_4mi4Oq4RfrbqixkPnjNhedmPjluqT1ORWS4RcbIiQvrydWsLIIPxRLRMykeOBHjiYLU1xCQT_TGcV-mUTc/s1600/vilagger.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="193" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9xx85Ng0gJ4agCVkd6zy3msW9-tthZFNNOEjQaZZn9Litq9o517FSu1Hz_4mi4Oq4RfrbqixkPnjNhedmPjluqT1ORWS4RcbIiQvrydWsLIIPxRLRMykeOBHjiYLU1xCQT_TGcV-mUTc/s200/vilagger.jpg" width="200" /></a></div>
<span style="color: red; font-size: large;"><br /></span><br />
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नागनाथ-सांपनाथ को देख, जनता के उड़े फ्यूज,<br />
किसे वोट दे, किसे न दें, जनता होए कन्फ्यूज,<br />
जनता होए कन्फूज कि चुना पहले मुलायमराज,<br />
मुलायम तो निकले कठोर, और आया गुंडाराज,<br />
देखके गुंडाराज, जनता का मन पछताया,<br />
अगली बार लिया बदला, माया को ताज पहनाया,<br />
पर माया निकली जादूगर, अपना मायाजाल फैलाया,<br />
मूर्तियां लगवाती रहीं माया, यह देख जनता फिर पछताया,<br />
जनता फिर होए कन्फ्यूज, किसी को न चुनते काश,<br />
राईट टू रिजेक्ट होता, तो करते सबको रिजेक्ट आज,<br />
कन्फ्यूज जनता मजबूर भी है, फिर चुना मुलायमराज,<br />
मायाजाल खत्म हुआ, अब क्या फिर शुरु होगा गुंडाराज?<br />
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(बुरा न मानो होली है............)<br />
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<br /></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-73545580074578598782012-02-26T22:36:00.003+05:302012-02-26T22:39:11.483+05:30विश्व विजेता का इतिहास हम फिर दोहराएंगे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjEEAlkQDf0lYhk0jIpgBY8-a3OPHyEJ8CbS9TnrKsP0CQQ80vAzTBgSCwTGqv384WuOfCsWBRQNFNqbJc1MTcwzqI4lv3rPwmCrWdPEaSWvgK_E05bCcAPt8aYIJkxezAPWJdbkzZnaWs/s1600/india+hockey2.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="238" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjEEAlkQDf0lYhk0jIpgBY8-a3OPHyEJ8CbS9TnrKsP0CQQ80vAzTBgSCwTGqv384WuOfCsWBRQNFNqbJc1MTcwzqI4lv3rPwmCrWdPEaSWvgK_E05bCcAPt8aYIJkxezAPWJdbkzZnaWs/s320/india+hockey2.JPG" width="320" /></a></div>
<div style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;">
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<div style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;">
८ साल बाद ओलंपिक में हम फिर दहाड़ेंगे</div>
<div style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;">
विश्व विजेता का इतिहास हम फिर दोहराएंगे,</div>
<div style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;">
हाकी का स्वर्णिम दौर जो छूट गया था पीछे</div>
<div style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;">
नए जोश से, नए उमंग से वापस लाएंगे,</div>
<div style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;">
अभी बस दी है ओलंपिक में दस्तक,</div>
<div style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;">
मंजिल तो बहुत दूर है</div>
<div style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;">
फ्रांस तो हार गया, अब तोड़ना</div>
<div style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;">
बाकियों का गुरूर है,</div>
<div style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;">
८ साल से टीस थी जो दिल में, मिलकर मिटाएंगे</div>
<div style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;">
हाकी के मैदान पर तिरंगा फहराएंगे</div>
<div style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;">
विश्व विजेता का इतिहास हम फिर दोहराएंगे,</div>
<div style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; font-family: Mangal; font-size: 14px;">
जय हिंद</div>
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-79456955714219568942012-02-24T21:55:00.001+05:302012-02-25T20:31:10.959+05:30तारीफ कंस्ट्रक्शन्स (हम तारीफों के पुल बनाते हैं)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj06xtzIVZR1MEiAL1Jr39-bBy_6CWfVPYOCNpr45uVgzsNOST1yjUKokXlLtK7zRcXv-IrYgP1mqz-mrfiRdmWzxMlBvEkLaa5bxEN82_3WAhIjO0ttleV63sTjDsiBg-Ow4bAycni1b0/s1600/to-give-a-pat-on-the-back-t13471.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj06xtzIVZR1MEiAL1Jr39-bBy_6CWfVPYOCNpr45uVgzsNOST1yjUKokXlLtK7zRcXv-IrYgP1mqz-mrfiRdmWzxMlBvEkLaa5bxEN82_3WAhIjO0ttleV63sTjDsiBg-Ow4bAycni1b0/s200/to-give-a-pat-on-the-back-t13471.jpg" width="200" /></a></div>
तारीफ सुनना सब पसंद करते हैं। सबकी ख्वाहिश होती है कि वे जहां जाएं उनकी तारीफ हो। मगर ये कमबख्त इंसानी फितरत..... हम तारीफ तो थोक में सुनना चाहते हैं लेकिन दूसरे की तारीफ चिल्हरों में करते हैं। जैसे खुद चंदा मांगने जाएं तो १०० से कम में नहीं मानेंगे लेकिन किसी भिखारी को १ रुपये से ज्यादा दान देने पर जान निकल जाती है। वैसे तारीफपसंद लोगों की भी काफी वैरायटी होती है। कुछ अपने मुंह मिट्ठू मियां बनते हैं, ऐसे लोग खुद ही अपना गुणगान कर अपना काम चला लेते हैं..। ये लोग बड़े खुद्दार किस्म के होते हैं, तारीफ के मामले में ये किसी का एहसान लेने में यकीन नहीं करते थे। पर पिछले दशक के आखिर तक ये खुद्दाम किस्म के मिट्ठु लुप्तप्राय हो गए। फिर जमाना आया दूसरों के मुंह मिट्ठू मियां बनने वालों का। ये कुछेक लोगों के मुंह से अपने तारीफ सुन सातवें आसमान पर पहुंच जाया करते थे। कुछ समय बाद ये ज्यादा तारीफें झेल नहीं पाए और आठवें आसमान पर पहुंचकर ये मिट्ठू भी लुप्तप्राय हो गए।<br />
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बंधुवर आज का जमाना है सबके मुंह मिट्ठू मियां बनने वालों का। ऐसे लोग तारीफ करने वालों का जत्था लिए ही साथ में चलते हैं। जब तक ५-६ लोग थोक में इनकी तारीफ न करें, इनका खाना नहीं पचता। इसी बिरादरी में हमारे एक मित्र भी आते हैं। वे बड़े ही सभ्य व सज्जन टाईप हैं और जब भी उन्हें अपनी तारीफ करवानी होती है, वे साथ खड़े चार-पांच लोगों को आगे कर देते हैं। एक बार इनके पिताजी ने इनसे पूछा कि परीक्षा कैसी गई। हमारे मित्र ने कहा- बहुत अच्छी गई, लेकिन हमने कैसे लिखा यह आपको हमारे मित्र बताएंगे। इतना कहते ही उन्होंने हम चार दोस्तों को आगे कर दिया। हम उनके शेर सदृश्य पिताजी के सामने निरीह बकरियों की तरह खड़े थे। एक बार यही मित्र इंटरव्यू देने गए जहां इनसे पूछा गया कि आप अपनी तारीफ में क्या कहना चाहेंगे। इतना सुनते ही हमारे मित्र ने हम सात-आठ दोस्तों को फोन किया और हमें वहां बुलाकर तारीफों का ऐसा टेप बजवाया कि उनकी तो नौकरी लग गई लेकिन हमारी लगी-लगाई नौकरी छूट गई। पर क्या करें हर एक फ्रेंड जरुरी होता है...। <br />
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आजकल जमाना आउटसोर्सिंग का है। अपना काम किसी दूसरे से करवाना। बेचारे सरकारी मुलाजिम आउटसोर्सिंग नहीं कर पाते इसलिए आपस में ही फाइल को आगे बढ़ा-बढाकर, तो कभी भी गोल-गोल घुमाकर आउटसोर्सिंग का लुत्फ उठाने की कोशिश करते रहते हैं.। इसलिए हमारे मित्र की तरह बहुत से लोग तारीफों की आउटसोर्सिंग भी करवाने लगे हैं। जब शादियां से लेकर तलाक तक ठेके पर करवाई जा सकती है, तो तारीफें क्यो नहीं। तारीफों के पुल बांधना कोई बच्चा का खेल तो है नहीं ना..। दूसरों के मुंह से तारीफ करवाने का एक फायदा यह है कि तारीफों ज्यादा ऑथेंटिक यानी विश्वसनीय लगती हैं। पर जैसे की मैंने उपर बताया कि इंसानी फितरत...। किसी दूसरे के लिए तारीफों के दो शब्द बड़े जतन से निकलते हैं। तारीफों की डिमांड ज्यादा है पर सप्लाई कम। तारीफ पाना हर इंसान का मौलिक अधिकार है, और किसी के मौलिक अधिकारों का हनन मुझे कतई मंजूर नहीं। भले ही मैं स्कूल में नागरिक शास्त्र की कक्षाओं में नदारद रहा हूं, लेकिन तारीफ का अधिकार तो मैं सबको दिलाकर रहूंगा।<br />
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बस इसी तारीफों की कमी को पूरा करने के लिए ही तो भगवान ने मुझे धरती पर भेजा है। छोटे-मोटे काम करके मैं वैसे भी ऊब चुका था, उपर से घरवाले मुझ पर बरस पड़ते कि- पता नहीं ये लड़का क्या करेगा। वैसे भी कहते हैं खाली दिमाग शैतान का घर.....। मेरे दिमाग में भी कई बार यह ख्याल आया कि आखिर मैं दुनिया में करने क्या आया हूं। पर, अब मुझे पता चल चुका है कि मैं जनकल्याण के लिए आया हूं। बस इसी जनकल्याण के विचार को मन में लिए मैंने अपनी कंपनी तारीफ कंस्ट्रक्शन्स खोली है। न हींग न फिटकरी और रंग बिलकुल चोखा। बिलकुल मस्त धंधा है। नो इन्वेस्टमेंट फुल प्राफिट। जब लोग दूसरों की शादी (बर्बादी) कराकर पैसा कमा सकते हैं तो मैं तारीफ करके पैसा क्यों नहीं कमा सकता। तारीफ सुनकर चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। और वैसे भी किसी बहुत ज्ञानी आदमी ने कहा है कि किसी के चेहरे पर मुस्कान लाने से बड़ा कोई पुण्य नहीं। उस ज्ञानी आदमी का नाम मैं आपको बताता..... पर वो आदमी अभी लिखने में व्यस्त है।<br />
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वैसे मेरी कंपनी तारीफों के सिर्फ पुल ही नही बनाती। जब बंदे का काम तारीफों की दो सीढ़ियों में ही निपट सकता है तो फिजूल ही तारीफों का पुल बनाकर तारीफें बर्बाद क्यों करना। मटेरियल बच गया तो दूसरे के काम आ जाएंगी। ग्राहक भगवान होता है और और ग्राहक के डिमांड के हिसाब से तारीफों की सीढ़ी, तारीफों के कदम, जरुरत पड़ने पर कई बार तारीफों के अंडरब्रिज, फ्लाईओवर, ४ लेन, ८ लेन रोड भी बनवा देते हैं।<br />
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एक कर्मचारी हमारे पास आए जो साल दर साल अपने बॉस की तारीफ कर प्रमोशन पाए जा रहे थे, लेकिन इस बार उनका डिमोशन हो गया, कारण कि बॉस हर बार वही पुरानी तारीफें सुनकर उब चुका था। हमने तुरंत अपनी रेस्क्यू टीम को उनके आफिस भेजा जिन्होंने ऐसी तारीफें की कि उसकी नौकरी तो बची ही, साथ ही प्रमोशन भी हो गया। कुछ समय बाद एक दुखी लेखक हमारे पास आए। लेखन उनका ठीक-ठाक था, मगर ताउम्र तारीफों का अकाल रहा। लेखक क्या चाहे, बस दो तारीफ। हमारी टीम ने उनके कवि सम्मेलन में तारीफों की जो शुरूआत की, उसके बाद तो भेड़चाल की आदि भीड़ १५ मिनट तक ताली बजाती रही। हालांकि, सच कहें तो उनकी लिखी कविता सच में सिरदर्द थी। पर सिर के दर्द को सिर का सेहरा बनाना ही तो तारीफ कंस्ट्रक्शंस का काम है।<br />
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कुछ समय पहले एक महिला हमारे पास आई जिन्हें लगता था कि उनके पति उनसे प्यार नहीं करते क्योंकि वे आजकल उनकी तारीफ में कसीदे नहीं पढ़ते। वो तो तलाक लेने पर उतारु थीं, तभी हमने उनके पति को हमारी तारीफ पब्लीशर्स की लेटेस्ट किताब तारीफ के काबिल पकड़ाई, साथ ही गारंटी दी कि १० साल तक तो तारीफें खत्म नहीं होंगी। इस तरह हमने उनकी शादीशुदा लाइफ में १० साल का टॉप अप डाल दिया। इस केस के बाद मुझे लगा मुझे मेट्रीमोनी में भी हाथ आजमाना चाहिए। वैसे तारीफ कंस्ट्रक्शंस ने जितनी जल्दी तरक्की की है उसके बाद भविष्य में बहुत कुछ शुरु करने का इरादा है। फिलहाल के लिए आपसे एक दरख्वास्त। अगर आपकी कहीं थोक के भाव तारीफ हो रही हो, तो समझ लीजिएगा इसमें थोड़ा हाथ तारीफ कंस्ट्रक्शंस का भी होगा। अगर आप मुझे धन्यवाद देना चाहें, तो बेशक दीजिएगा। क्योंकि भले ही तारीफों का कुआं खोद कर रखा है हमने, पर तारीफों के प्यासे तो हम भी हैं।</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-35452251876431562492012-02-15T23:27:00.000+05:302012-02-15T23:27:07.417+05:30रोमांचक नहीं, रोमांटिक धोनी....(व्यंग्य)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVXCFAx5JUJZLL17Ttv2T83P6gNIUkHrYPHh_8Jc8LuQpeMTsn-4QJhZmnsrqh5_gTzogqD6EguymppOMgabLEPzCEmoXLZmP_RdKdgh74h3cf8YYaJxY-gfJOLuLiXjL1z4fy6KGREhs/s1600/dhoni.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVXCFAx5JUJZLL17Ttv2T83P6gNIUkHrYPHh_8Jc8LuQpeMTsn-4QJhZmnsrqh5_gTzogqD6EguymppOMgabLEPzCEmoXLZmP_RdKdgh74h3cf8YYaJxY-gfJOLuLiXjL1z4fy6KGREhs/s200/dhoni.jpg" width="132" /></a></div>
वेलेंटाइन डे पर हुआ भारत-श्रीलंका का वनडे मैच बड़ा ही रोमांटिक था... म..म..माफ कीजिएगा रोमांचक था। वो क्या है, कभी-कभी मेरी जुबान जरा फिसल जाती है। पर कुछ भी कहें ये मैच वाकई था बहुत रोमांटिक... इतना रोमांटिक कि प्रेमकथाओं के प्रख्यात निर्देशक यश चोपड़ा भी इसे देख जल-भुनकर खाक हो गए। प्यार नाम है त्याग का, औरों को खुश रखने का। प्यार में कोई ऊंच-नीच नहीं होती, सब बराबर होते हैं। और इस मैच में भी यह सब देखना मिला। बड़ा ही रोमांटिक मैच था। रोमांटिक तो होना ही था, अब जब खिलाड़ियों को प्रेम दिवस के दिन भी मैच खिलाया गया तो बेबस खिलाड़ी करते ही क्या। वे तो प्यार का खुमार लिए मैदान पर ही उतर गए, इस वादे के साथ कि मैदान पर ही सारा प्यार उढेल देंगे। क्या खिलाड़ी, क्या अंपायर सब मानो मैदान पर ही अपना प्यार दिखाने उतारु थे। लेकिन इन सब रोमांटिक खिलाड़ियों के बीच सबसे रोमांटिक निकले अपने कैप्टन कूल धोनी। <div>
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श्रीलंका के तीन विकेट जल्दी आउट हो गए। धोनी को डर लगने लगा कि कहीं श्रीलंकाई पारी जल्दी न निपट जाए। इधर अंपायरों ने भी जल्दी मैच खत्म होने की उम्मीद में अपनी धर्मपत्नियों को फोन घुमाया और डेट पर जाने के लिए तैयार रहने कहा। धोनी को अंपायरों का यह स्वार्थीपन पसंद नहीं आया। इसलिए उन्होंने विकेटों का मोह त्यागा और अपने गेंदबाजों को प्यार का पाठ पढ़ाया और प्रेम से गेंदबाजी करने कहा। गेदंबाजों ने इतने प्यार से गेंदबाजी की कि श्रीलंका ने जैसे-तैसे ९ विकेट पर २३६ रन बना ही लिए। उन्होंने वेलेंटाइन गिफ्ट के तौर पर ८ रन अतिरिक्त भी दिए। गेंदबाज चाहते तो आखिरी विकेट भी उखाड़ सकते थे लेकिन जैसे मैने पहले कहा था कि त्याग ही तो प्रेम का दूसरा स्वरूप है। </div>
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इसके बाद भारत की बल्लेबाजी आई। सचिन, कोहली व रोहित एक के बाद एक १५ रन बनाकर आउट हो गए। उन्हें डर था कि कहीं मैच के चक्कर में १४ फरवरी १५ फरवरी में न तब्दील हो जाए। दूसरी तरफ श्रीलंकाई गेंदबाजों ने गंभीर के प्रति भरपूर प्यार दिखाया और उन्हें बतौर गिफ्ट रन बांटते चले गए। रैना को तो मैदान पर रहने का मन ही नहीं था और वे ८ रन बनाकर चलते बने। मैच को लंबा खिंचते देख और क्रोधी धर्मपत्नी का फोन आता देख अंपायर ने ओवर में एक गेंद कम गिनकर मैच जल्दी निपटाने की जुगत भिड़ाई। पर रोमांटिक धोनी ने एक के बाद एक गेंद सड़ाना शुरु किया और इस प्रेममय मैच को लंबी खिंचते गए। वे चाहते तो मैच ४० ओवर में ही निपटा देते पर प्यार का मज़ा तो आहिस्ता-आहिस्ता ही आता है। </div>
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इस बीच गंभीर के मन में श्रीलंकाई गेंदबाजों के प्यार को देखकर लालच आ गया और वे शतक लगाने के सपने बुनने लगे। लेकिन लवगुरु धोनी को मालूम है कि प्यार में लालच का कोई स्थान नहीं होता और उन्होंने गंभीर को रन आउट करा वापस पैवेलियन भेज दिया। भारत के क्रिकेटप्रेमी तो धोनी-धोनी चिल्ला ही रहे थे पर इसके बाद तो श्रीलंकाई क्रिकेटप्रेमी भी धोनी नाम का जप करने लगे। इधर धोनी धीमे-धीमे अपनी पारी को आगे बढ़ा रहे थे और डेट पर जाने की उम्मीद में खड़े अंपायरों को खून के आंसू रुला रहे थे। उधर जडेजा आज कुछ जड़ने के मूड में नहीं थे। अश्विन को भी विन-लॉस में कोई रुचि नहीं थी। तभी धोनी ने ध्यान दिया कि हमारे तो बस ७ विकेट गिरे ही है वहीं श्रीलंका के तो ९ विकेट गिरे थे। प्यार में ऊंच-नीच मंजूर नहीं। लवगुरु धोनी ने ठान लिया कि दो और विकेट गिराने ही होंगे। </div>
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वहीं श्रीलंकाई कप्तान भी कम रोमांटिक नहीं थे। उनको भी अहसास हुआ कि धोनी ने कुछ ज्यादा ही त्याग कर दिया है। अब त्याग करने की बारी उनकी है। २ ओवर में धोनी भला २४ रन कैसे बनाएंगे। इसलिए उन्होंने अपने उपकप्तान को गेंद सौंपी और वेलेंटाइन गिफ्ट के तौर पर फुलटॉस गेंदें फेंकने कहा। पठान ने छक्का जड़ा इसके बाद धोनी ने उन्हें रनआउट करा ८वां विकेट गिरा दिया। अंतिम ओवर में ९ रन चाहिए थे। जयवर्द्धने धोनी के पास और बोले- ये मैच तुम जीतो, धोनी ने कहा- नहीं, तुम जीतो। इधर धोनी को दोनी टीमों के क्रिकेटप्रेमियों की आंखों में जीत की उम्मीद दिख रही थी। पर आज किसी एक की उम्मीद तो टूटनी ही थी, वह भी बहुत बुरे तरह से। बड़ा ही इमोशनल सीन था। भावनाओं के समुंदर उमड़ रहे थे। आंखों में आंसू थे और मन में कई सवाल।
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सबको खुश कैसे रखा जा सकता है। पर वॉट नो वन कान्ट, धोनी कैन। लवगुरु धोनी ने २ रन लिए, फिर एक रन लिए, फिर विनय कुमार ने रन लिया, फिर धोनी ने एक रन। इसके बाद २ गेंदों पर ४ रन बनाने थे। धोनी ने विनय कुमार को आउट करा ९वें विकेट का आंकड़ा पूरा किया। अब आखिरी गेंद पर ४ रन बनाने थे। बैट को गदा की तरह धारण करने वाले धोनी स्ट्राइक पर थे। उन्होंने अपनी शक्तिशाली भुजाओं से वेगवान शॉट मारा, गेंद जैसे बाउंड्री लाइन पार ही करने वाली थी। दिल की धड़कन ऊपर-नीचे हो रही थी। गेंदबाज मलिंगा अपने नूडल्स जैसे बालों में चेहरा छुपा रहे थे। फरिश्ते वैसे तो यहां आसमान से टपकते हैं, पर यहां एक फरिश्ता जमीन से निकला और उसने चौका रोक दिया। धोनी ने राहत की सांस ली और तीन रन दौड़ लिए। जयवर्द्धने के चेहरे पर भी मुस्कान थी। मैच टाई हो गया। बराबर रन, बराबर विकेट, बराबर अतिरिक्त रन और बराबर प्यार। दोनों ने एक-दूसरे को वेलेंटाइन डे की शुभकामाएं दी। धोनी ने बतौर तोहफा अब तक प्वाइंट टेबल में शून्य पर रही श्रींलंका को २ अंक दिए। वहीं जयवर्द्धने ने भी बदले में २ अंक दिए। इस प्रेममय माहौल के बीच कई बार अपनी धर्मपत्नी से डांट खा चुके अंपायर ने भी लवगुरु धोनी से इजाजत मांगी। धोनी ने उन्हें नाइट शो के दो सिनेमा टिकट देकर रुखसत किया। अब तक धोनी के लिए जिस अंपायर के मन में नफरत के भाव थे, उन्हें भी लवगुरु धोनी ने अपना मुरीद बना लिया। चहुंओर बस धोनी का ही नाम था। अब तक रोमांचक रहे धोनी...... अब रोमांटिक धोनी हो चुके थे। वेलेंटाइन डे पर हुआ यह मैच रोमांचक.... नहीं रोमांटिक था।</div>
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</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-8350504404321873882012-02-12T21:43:00.000+05:302012-02-14T20:55:50.569+05:30२०७वीं हड्डी (व्यंग्य)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
यूं तो सामान्य आदमी के शरीर में २०६ हड्डी होती है लेकिन बंधुवर सचेत हो जाइए। एक एक्सट्रा हड्डी भी हमारे शरीर में न जाने कबसे चिपकी बैठी है और हमें इसका पता ही नहीं। या फिर पता होने के बाद भी हम इसे अपने शरीर का अंग नहीं मानते। परिस्थिति विकट है। यह पोर्टेबल २०७वीं हड्डी कईयों के शरीर से तो चौबीसों घंटे चिपके रहती है और जिनसे नहीं चिपकी है उनसे भविष्य में चिपक ही जाएगी। ये हड्डी जो पहले मेहमान के तौर पर आई थी तो अब मानो शरीर की परमनेंट मेंबर ही बन गई है। परमनेंट मेंबर बन गई कोई बात नहीं, क्योंकि मेहमान तो भगवान होता है लेकिन इसने तो जैसे राजा की पदवी हासिल कर ली है। शरीर के सभी अंग इसी के सेवा में लगे रहते हैं। आंखें इसे ही ढूंढती हैं, हाथ इसे छूने बेकरार रहते हैं। मुझे ऐसा लगने लगा है कि मैंने इस हड्डी की कुछ ज्यादा ही बुराईयां कर दी है। हे भगवान, ये तो घोर पाप हो गया मुझसे। जिस हड्डी का मैं ५-६ साल से भरपूर दोहन कर रहा हूं, आज उसी की बुराई कर दी। मैं अनजाने ही एहसानफरामोशों की फेहरिस्त में शामिल हो गया।<br />
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खैर गलती की है तो सुधारना भी पड़ेगा। बुराईयां बहुत हुई, पर इसकी खूबियां भी बैं.। प्लास्टिक व मेटल की बनी यह पोर्टेबल हड्डी चपटी, लंबी, स्लाइड, टच आदि विविध रुपों में आती है, बिलकुल पतिव्रता पत्नी की तरह जैसा आप चाहें वैसे ढल जाती है । पर एक बार यह आपसे चिपक गई तो आप लाख जतन कर लें ये हटेगी नहीं। इस हड्डी को मैंने छह साल पहले खुद से चिपकाया पर मुझे इसका अहसास चंद दिनों पहले कराया हमारे मित्र ने। हम दोनों गाड़ी पर सैर करने निकले। मित्र महोदय फरार्टे से गाड़ी चला रहे थे और हम उतने ही फर्राटे से अपने मोबाइल पर मैसेज टिपटिपा रहे थे। हमारा मैसेज टिपटिपाना शायद हमारे मित्र को पसंद नहीं आया और उन्होंने गाड़ी का एक्सीडेंट कर दिया। धड़ाम.... की आवाज के साथ हम दोनों सड़क पर गिरे लेकिन हमारे हाथ से मोबाइल अलग नहीं हुआ। फिर हाथ में मोबाइल पकड़े-पकड़े ही हमने गाड़ी को उठाया। अबकी बार हमारा मित्र चिल्लाते हुए बोला- ये मोबाइल तुम्हारे हाथ से अलग होगा कि नहीं। या ये तेरे शरीर की २०७वीं हड्डी है जो हाथ से अलग ही नहीं होती।<br />
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मैं अपने जिस मित्र के दिमाग को सूख चुकी नदी समझा करता था उसमें से इतने अनमोल मोती जैसे वचन सुनकर मुझे बड़ा अचरज हुआ। सहसा मुझे अपने मित्र में भगवान नजर आने लगे , क्योंकि ऐसा ज्ञान तो भगवान ही दे सकते हैं। मित्र देवो भवः सुना तो था लेकिन तब यकीन भी हो रहा था। मैंने श्रद्धाभाव से अपने मित्र की तरफ देखा और उसके चरणस्पर्श करते हुए उसे धन्यवाद दिया। इसके बाद मैंने २०७वीं हड्डी की पदवी पाने वाली अपनी मोबाइल तरफ देखा। मैं किसी बिछड़े हुए प्रेमी की तरह उसे निहार रहा था, और मेरी मोबाइल मुझे एकतरफा प्रेम करने वाली प्रेमिका की तरह, जिसे विश्वास था कि ५-६ साल बाद उसका बाद उसका प्यार लौटेगा।
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डार्विन के सिद्धांत के अनुसार आने वाले समय में वैसे भी यह इंसान के शरीर की २०७वीं हड्डी बन ही जाएगी इसलिए काल करै सो आज कर की तर्ज पर हमने २४घंटे खुद से चिपके रहनी वाली मोबाइल को २०७वीं हड्डी मान ही लिया। डार्विन महोदय कह गए हैं कि कोई भी जीव माहौल व जरुरत के हिसाब से खुद को ढाल लेता है। समय के साथ अनुपयोगी अंग उसके शरीर से हटते जाते हैं और जिस अंग या चीज की उसे ज्यादा जरुरत होने लगती है वह विकसित होने लग जाते हैं। मनुष्यों के पूर्वजों की के पास लंबी पूंछ थी व दिमाग आकार में कम था वहीं आज के मनुष्य में पूंछ नदारद है और दिमाग जरुरत से ज्यादा तेज हो गया है। इस आधार हम कह सकते हैं कि आने वाले समय में ये हमारे शरीर की स्थायी सदस्य बन ही जाएगी। बंधुवर, हमारी २०७वीं हड्डी तो बढ़िया काम कर रही है, अगर आपकी २०७वीं हड्डी आपको तकलीफ दे तो आप २०७वीं हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. सुमित से संपर्क साध सकते हैं। अब अपने ब्लॉग में अपना ही प्रचार न करो ये अच्छा थोड़ी न लगता है...।<br />
<br /></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-18638654586960048742011-08-04T21:44:00.000+05:302011-08-04T21:44:54.582+05:30मैं तो रामदेव दीवानी (व्यंग्य)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em; text-align: justify;"><a href="http://sumityadav.jagranjunction.com/files/2011/08/ramdev-rakhi-sawant-300x236.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="ramdev-rakhi-sawant" border="0" class="alignleft size-medium wp-image-365" height="236" mce_src="http://sumityadav.jagranjunction.com/files/2011/08/ramdev-rakhi-sawant-300x236.jpg" src="http://sumityadav.jagranjunction.com/files/2011/08/ramdev-rakhi-sawant-300x236.jpg" title="ramdev-rakhi-sawant" width="300" /></a>दुनिया में दो लोग कुछ भी कर सकते हैं- पहले तो जाहिर सी बात है रजनीकांत ही होंगे। लेकिन जो दूसरा नाम है वो है असली धमाका। जी हां, धमाके पे धमाके करने वाली ड्रामा क्वीन राखी सावंत। राखी जब भी कुछ करती हैं लोगों को चौंका कर रख देती हैं, अब क्या करें उनका रेपुटेशन ही ऐसा बन गया है। लेकिन इस बार तो राखी ने सबको हिला दिया जब उन्होंने रामदेव से शादी करने की इच्छा जाहिर की। कहां हमारे बाबा बेचारे ब्रहामचारी और उनके पीछे पड़ गई स्वयंवरवाली। परंतु राखी द्वारा इस प्रेम निवेदन के बहुत दिनों बाद भी जब रामदेव की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई तो हम समझ गए कि ये एकतरफा प्रेम का मामला है। वैसे इसे प्रेम कहना उचित नहीं होगा, ये आकर्षण हो सकता है। वैसे ये प्रेम है या आकर्षण इस पर विस्तृत चर्चा हम अगले साल वेलेंटाइन डे पर जागरण जंक्शन में होने वाले प्रेममय कांटेस्ट के दौरान कर लेगें। पर अभी के लिए तो हम दुखी थे। वो क्या है ना एकतरफा प्यार से हमें बड़ा दुख होता है। हम अपने जमाने के पहंचे हुए एकतरफा प्रेमी रहे हैं। बहुत सारे एकतरफा प्यार के भुक्तभोगी। अब जैसा कि आप जानते हैं हमें दूसरे के फटे मे टांग अड़ाने की बहुत बुरी आदत है। अगर फटा न भी हो तो हम फाड़कर उसमें अपना टांग अड़ाते हैं। बस हमने राखी को एकतरफा प्यार के दर्द से बचाने की ठान ली। बाबा रामदेव और राखी की बात को आगे बढ़ाने का निर्णय किया। वैसे न तो राखी ने बाबा रामदेव से प्रतिक्रिया मांगी थी और न बाबा प्रतिक्रिया देने के किसी मूड में थे, पर हम तो हम हैं, मैच मेकिंग के लिए बिलकुल आमादा।</div><hr style="text-align: justify;" /><div style="text-align: justify;"> हमने झट से जुगाड़शास्त्र द्वारा किसी तरह बाबा रामदेव और राखी सावंत की कुंडलियां जुगाड़ी और चल पड़े अपने प्रिय मित्र पोंगा पंडितजी के पास। मैंने सोचा पहले कुंडिलयां मिला ली जाएं दोनों की वरना मालूम पड़ रहा कि मैंने दोनों की बात बना दी और आखिर में कुंडली ही नहीं मिलीं। पोंगापंडितजी के घर पहुंचने ही मैंने उनको दोनों की कुंडलियां थमा दी और हांफते हुए बोला- बड़ी जल्दी में हूं। बस जल्दी से दोनों की कुंडिलयां देखिए और बताइए कितने गुण मिलते हैं। पंडितजी उस समय किसी दूसरे जोड़े की कुडंलियां जांच रहे थे। वे बोले- क्या हुआ, इतनी जल्दी में क्यूं हों, किसकी कुंडिलयां है ये। मैं उनके सामने पड़ी पुरानी कुंडलिया हटाते हुए बोला- इन्हें हटाइए और लीजिए जल्दी जांचिए बाबा रामेदव और राखी सावंत की कुडंलियां, एकदम फटाफट।</div><br />
<hr style="text-align: justify;" /><div style="text-align: justify;"> बड़े बेमन से उन्होंने कुंडिलयां जांचनी शुरू की लेकिन जांचने के कुछ क्षणों बाद ही वे सुपरफास्ट ट्रैन की तरह पटरी पर दौड़ने लगे। वाह-वाह पहले तो इनके गुण दूर-दूर तक नहीं मिलते थे लेकिन परिस्थितयों ने ऐसा खेल खेला कि ३० गुण मिल रहे हैं। मीडिया में रहने का गुण जो राखी में ऊंचे स्तर तक था और बाबा जो मीडिया से दूरी बनाकर रखते थे, हाल के दिनों में ऐसा छाए कि मीडिया वाले गुण इनमें समा गए। स्वास्थ्य को लेकर सजग दोनो ही रहते हैं। राखी तो शुरू से ही वाचाल रही हैं लेकिन हाल के दिनों में बाबा ने भी बोलना सीख लिया और ऐसा बोला कि सबकी बोलती बंद कर दी। तो भैया सुमित, मेरे तरफ से तो ये रिश्ता एक फिट है। अब बाकी तुम्हारा सिरदर्द है।</div><br />
<hr style="text-align: justify;" /><div style="text-align: justify;"> मैंने धन्यवाद देते हुए कहा- आपने इतना बता दिया बस और क्या चाहिए। बड़ी कृपा आपकी। हम तो पैदाइशी मैचमेकर हैं। जब मेट्रीमोनियल साइट्स का निर्माण भी नहीं हुआ था, हम तो तबसे सक्रिय हैं। हमारा बस चले तो हम तो किसी को कुवारा ही न रहने दें, सबकी शादी करवा दें। खैर, हम निकल पड़े अपने मकसद पे। सबसे पहले राखी से पूछना जरूरी था कि बाबा में उन्होंने ऐसा क्या देखा जो वे उनके प्रति आकर्षित हो गई। घर पहुचने पर पहले तो राखी ने हमको हडकाया पर खुद को मीडियावाला बताने पर अंदर बुलाकर अपने हाथों से जलपान की व्यवस्था की। मैंने पहला समोसा उठाते हुए पहला सवाल दागा- राखीजी, अपने असफल लव अफेयर, असफल स्वयंवर और असफल कैरियर के बाद आप अब ये क्यों मानती हैं कि बाबा में ही आपका भविष्य है। राखी बोली- सबसे पहले तो मेरा अफेयर मेरी गलती थी, नादानी थी। स्वयंवर तो मैंने खास बाबाजी के लिए ही रचवाया था पर बाबा के वहां न पहुंचने से मैं दुखी हुई, इसलिए शादी का ड्रामा करने के बाद मैंने उसे तोड़ दिया। मैं तो शुरू से ही बाबा की दीवानी हूं।</div><br />
<hr style="text-align: justify;" /><div style="text-align: justify;"> तो राखीजी आप खुद को बाबाजी की दीवानी बताती हैं पर ये बताइए बाबा में ऐसा क्या देखा जो आप इंप्रेस हुई। राखी- देखिए मैं तो शुरू से ही उनके योग पर लट्टू हूं। जिस गति से वे अपना पेट घुमाते हैं उसी गति से मेरा डांस भी लोगों का दिल धड़काता है। सलमान, शाहरुख, आमिर ने तो सिक्स पैक बनाएं, लेकिन बाबा के तो नेचुरल फ्लैक्सीबल एब्स हैं। जैसा कि मैंने बताया कि स्वयंवर तो मैंने बाबा के लिए ही करवया था लेकिन वे नहीं आए इसलिए इस बार मैंने खुले आम प्रेम निवेदन किया है और बस बाबा की एक हां की देरी है, मैं चैनल वालों से बोलकर हमारा पर्सनल स्वयंवर करा दूंगी।</div><br />
<hr style="text-align: justify;" /><div style="text-align: justify;"> म..म..मतलब कि आप चाहती हैं बाबा वैसे ही उल-जुलूस कलाबाजियां करें जैसे स्वयंवर के दौरान अन्य प्रतियोगियों ने किए थे, मैंने सवाल दागा। राखी- हां, दरअसल बाबा में ही वो स्टेमिना है कि वे सारे टास्क बखूबी कर सकते हैं। उनकी फिट बॉडी और स्वास्थ्य के प्रति उनकी सजगता की ही तो मैं दीवानी हूं। उनसे शादी करने से मुझे योग ट्रेनर का भी फायदा मिल जाएगा और मैं भी फिट रहूंगी। मुझे पहले बाबा का चुप रहने वाला स्वभाव कुछ खास पसंद नहीं था, लेकिन हाल के दिनों में उनके मुंह से एक के बाद तूफानी बयान निकले हैं कि उन्होंने तो मुझे भी हरा दिया। मैं तो हूं ही बड़बोली, और बाबा द्वारा ऐसे बोलबचन तो मानो सोने पर सुहागा हैं।</div><br />
<hr style="text-align: justify;" /><div style="text-align: justify;"> मेरे हिसाब से बाबा मेरे लिए परफेक्ट वर हैं। इतना बड़ा बिजनेस हैं, पापुलर हैं, फिट हैं, जवान हैं, सफल हैं, मुझे और क्या चाहिए। आपने कहा कि आप हनीमून चांद पर मनाना चाहेंगी, ऐसा क्यूं?? देखिए, लोग तो मुझे पहले ही कहते थे कि मैं इस दुनिया की नहीं हूं, किसी और ही दुनिया में रहती हूं। और बाबा भी मुझे इस दुनिया के नहीं लगते। इसलिए मैं उनके साथ अपना हनीमून इस दुनिया से बाहर चांद पर मनाना चाहती हूं।</div><br />
<hr style="text-align: justify;" /><div style="text-align: justify;"> पर क्या आपको लगता है कि बाबा और आपकी जोड़ी जमेगी?? जमेगी क्यों नहीं, राखीजी तुनकते हुए बोली। जोड़ी जमने के लिए दोनों का एक जैसा होना जरूरी नहीं बल्कि एक-दूसरे का पूरक होना जरूरी है। बाबा बोलते कम हैं और मैं बड़बोली हूं, अगले अनशन के समय वे कुर्सी पर बैठे रहेंगे और मैं बोलती रहूंगी, बोलती रहूंगी और बौलती रहूंगी। आप तो जानते ही हैं जब मैं बोलती हूं सबकी बोलती बंद हो जाती है। और जहां तक बात है रात को पुलिस द्वारा लाठीचार्ज की तो मुझे देखकर किसी की लाटी उठाने की भी हिम्मत नहीं होगी, आप जानते हैं मैं कितनी खतरनाक हूं।</div><br />
<hr style="text-align: justify;" /><div style="text-align: justify;"> पर राखीजी बाबा से पहले आप राहुल गांधी के पीछे पड़ी थी। राखी- देखिए, मैं किसी के पीछे नहीं पड़ती, लोग मेरे पीछे पडते हैं। वैसे भी राहुल का नाम तो मैंने ऐसे ही बाबा को जलाने के लिए लिया था। आप तो जानते ही हैं ना, ज्येलसी फैक्टर। पर, बाबा तो तब जलेंगे न जब उनके मन में आपके लिए कुछ हो, वे तो बह्मचारी हैं। और मुझे नहीं लगता कि उनकी आपसी शादी करके अपना ब्रह्मचर्य तोड़ने में कोई दिलचस्पी है। मेरा द्वारा इतना कहते ही राखीजी बौखला गई और मेरे हाथ का समोसा छीनते हुए बोली, चलो उठो। तो तुम हो असली फसाद। तुम ही हो बाबा को मेरे खिलाफ भड़काने वाले। तुम नहीं चाहते कि मेरी उनसे शादी हो, तुम चाहते हो वे आजीवन ब्रह्मचारी रहें। मैं समझ गई, तुम मुझे पसंद करते हो। अगर मुझे इतना ही पसंद करते हो तो मेरे स्वंयवर में आ जाते। अब जब मैं सेटल होने की सोच रही हूं तो मुझे बाबा के खिलाफ और बाबा को मेरे खिलाफ भड़का रहे हो। तुम नहीं चाहते बाबा और मैं मिले। मैं इन धुआंधार आरोपों से चित हो चुका था। कुछ हिम्मत कर मैं बोला- ये आप क्या कह रही हैं। म..म..मैं आपको पसंद नहीं करता, न मैं आप दोनों के बीच आ रहा हैं। राखीजी बोली- चुप करो तुम। मुझे मत समझाओ। मैं सबको बता दूंगी, प्रेस कांफ्रेंस करवाउंगी। कहां है मीडिया, यहां आओ। मेरे और बाबा के बीच दरार डालने वाला मुझे मिल गया....। पकड़ो इसको।</div><br />
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com3Raipur, Chhattisgarh, India21.2513844 81.629641321.1813874 81.5497998 21.3213814 81.7094828tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-60558838925001350832011-08-04T13:04:00.000+05:302011-08-04T13:04:40.650+05:30सांप हो तुम दूध तो पीना ही पड़ेगा (व्यंग्य)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhwjxv_xhnMtApFCcjAZUVM2hdbDg-7jC7QWVKvHtVBixJtVzg-WWuXQWZD1ZjuGQIlICYuqSsQ4QqoEOBhl_LgTdggH6HEQpXyCOOmHOawGuChVrkRXJcv9SXeoiyoHr_CW2Y4DS4_fTI/s1600/happy-nag-panchami1-300x193.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="205" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhwjxv_xhnMtApFCcjAZUVM2hdbDg-7jC7QWVKvHtVBixJtVzg-WWuXQWZD1ZjuGQIlICYuqSsQ4QqoEOBhl_LgTdggH6HEQpXyCOOmHOawGuChVrkRXJcv9SXeoiyoHr_CW2Y4DS4_fTI/s320/happy-nag-panchami1-300x193.jpg" t$="true" width="320" /></a></div><div style="text-align: justify;"></div><div closure_uid_f0dbm2="140" style="text-align: justify;"></div><div closure_uid_f0dbm2="148" style="text-align: justify;">नाग पंचमी है और सांप को दूध पिलाने का रिवाज है। वैज्ञानिक कहते हैं सांप दूध नहीं पीते, वे दूध पी नहीं सकते पर हमारे घर वालों ने कहा जा सांप को दूध पिला के आ। वैसे भी बहुत सारे पाप किए हैं जीवन में तूने, आज उतारने का दिन है। सांप जितना दूध पीएगा उतना तेरा पाप उतरेगा। मैंने कहा- सांप दूध नहीं पीता, वो चूहा खाता है, कीड़-मकौड़े खाता है। वह तो मांसाहारी है। पर मां की आंख में गुस्सा देख मैं दूध का कटोरा लिए वहां से भागा। पर अब यक्ष प्रश्न यह था कि सांप को कहां ढूंढा जाए।फिर भी मैं गलियां छानते रहा। देखा एक बिल में सांप घुसने की कोशिश कर रहा है। मैंने उसका पूंछ पकड़ा औरउसे बाहर निकाला। सांप फन फैलाकर खड़ा हो गया और बोला- क्या हुआ तुझे। तुम इंसानों के डर से ही तो छुप रहा था। मेरे सारे साथी समय पर छुप गए। उन्होंने मुझे चेताया भी कि छिप जा नहीं तो मनुष्य आ जाएंगे। आज नाग पंचमी है, तुझे जबर्दस्ती दूध पिलवाएंगे। पर मैंने लापरवाही कर दी और तुमने मुझे पकड़ लिया। अब बोलो क्या चाहिए। मैंने कहा- चाहिए कुछ नहीं बस, ये दूध पी लो। सांप मूंह फेरते हुए बोला- नहीं पीता। मैं बोला- सांप हो तुम, दूध तो पीना ही पड़ेगा। सांप बोला- चल इमोशनल अत्याचार मत कर। पी लूंगा, पर पहले मेरी व्यथा सुनी पड़ेगी तुमको। मैंने बोला- बस इतनी सी बात है, लोगों की परेशानियां सुनना और उन्हें सुलझाना तो मेरा प्रिय शगल है। शुरू हो जाओ- नागराज, व्यथपुराण आरंभ किया जाए।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">सांप रोते हुए बोला- तुम मनुष्यों ने हम भोले-भाले सांपों का बहुत शोषण किया है। हमारी इजाजत के बिना हमें मुहावरों में जबरन ठूंस-ठूंसकर खलनायक का दर्जा दे दिया तो कभी फिल्मों में हमें फिट करके पैसे बना लिए और हमें इतने सालों बाद तक रायल्टी तक नहीं मिली है। हमारी सर्प उत्थान समिति इसके खिलाफ सर्पमोर्चा निकालने की सोच रही है। खैर यहां तक तो हमने किसी तरह बर्दाश्त कर भी लिया मगर हद तो तब हो गई जब तुम इंसानों ने हमारे निजी जीवन तक को भी नहीं छोड़ा। जंगलों में कैमरे लगा दिए। नाग-नागिन रोमांस करने जाएं तो उसकी शूटिंग, बिल से बाहर निकले तो शूटिंग, बिल में छुपे रहे तो भी शूटिंग। इतनी शूटिंग हो गई कि दहशत में कई नागिनों ने तो अंडे देना ही बंद कर दिए। पहले मैं बस्तर के घने जंगल में रहता था। एक बार मैं बड़ी मशक्कत के बाद मानी एक नागिन के साथ प्रणय करने जा रहा था कि तभी रास्ते में मुझेएक जीव वैज्ञानिक ने उठा लिया और उंगली दिखा-दिखाकर मेरी विशेषताएं बताने लगा। मैं बेबस सा फुफकारते हुए बोला- " मेरी जितनी विशेषताएं बताना है बता ले, लेकिन अगर आज मैं अपनी प्रेमिका से नहीं मिल पाया तो सोच लेना तुझे तेरी सुहागरात नहीं मनाने दूंगा।" इंसानों की आबादी तो बढ़ती रही लेकिन सांपों की आबादी पर अल्पविराम लग गया।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">फिर भी सांप सब कुछ रेंगते-रेंगते सहते रहे। सांप के आहार में चूहे, गिलहरी जैसे छोटे जानवर आते हैं लेकिन इंसानी करतूत के कारण इनका आहार भी छिन गया। गिलहरी और मेंढक तो ढूंढे नहीं मिलते हैं फिर भी जिस दिन मिल गए समझो उस दिन सांपों की दिवाली होती थी। इसलिए सांपों ने मजबूरन चूहे को ही अपने मेनू में टॉप पर रख लिया। पर यहां भी उनका निवाला छिन गया। चूहों की तलाश में हमने शहरों और गांवों का रुख किया क्योंकि जहां भरपूर अनाज वहां भरपूर मोटे-मोटे चूहे। परंतु यूरिया और खाद मिले अनाज खाने वाले चूहे को खाने से कई सांपों के पेट में मरोड़ होने लगा और कई तो मौके पर ही लुढ़क गए। सांपों की ऐसी दुर्गति देखकर सांपों ने प्रकृति के विपरीत जाकर शाकाहारी होने का फैसला किया, जिनमे मैं भी था। एक सुबह मैं अपनी प्रेमिका नागिन के लिए भोजन की तलाश में निकला। पिछले वर्ष की बात है नागपंचमी के दिन हम दोनों ने दूध में "मिल्क बाथ" लिया उसके बाद सोचा कुछ खाया जाए। पास ही में हनुमानजी का मंदिर था। मैंने हनुमान जी की मूर्ति के पास भोग में चढ़ने वाला सामान मिठाई, फल, आदि देखा। मैंने सोचा क्यों न यहीं फन मारा जाए, मंदिर भी पास ही में है पांच मिनट में काम निपट जाएगा। मैं सब बटोर ही रहा था कि मुझे किसी ने देख लिया। मुझे देखने वाला सनसनी की खोज में निकला टीआरपी की मार से पीड़ित न्यूज चैनल का सनसनाता रिपोर्टर था। मुझे हनुमानजी को चढ़ा भोग खाता देख उसने मुझे हनुमानभक्त सांप की पदवी दे दी और फौरन अपने जैसे अन्य सनसनीपिपासु पत्रकारों को वहां मिनटों में खड़ा कर दिया। लोग इकट्ठे होते चले गए, दो आए, चार आए, आठ आए, पलक झपकते ही पूरा मंदिर हाऊसफुल हो गया। कुछ देर बाद तो मुझ हनुमानभक्त सांप को देखने टिकट लगने लगा था। कुछ चलताऊ किस्म के टपोरियों ने तो वहां साइड में साइकिल और गाड़ी स्टैंड भी लगा दिया। सायकिल का १० मोटसायकिल का २० और कार का ५० रुपए मात्र। हां प्रेसवालों और वीआईपी लोगों के लिए मुफ्त।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjTL40R_Pg42ccJUTD7aSsmNRadyW8X4W5BIavTgVs2bmCb8TkbHxO3jQcc7Zfs-zntptvRTC9wy03vVNZKJZvlF0cQhu2CTzzlU_szbjIyh0q3UxSRwxcEkRvAEnrnuiT8qxS1D20G95Y/s1600/snake2.gif" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjTL40R_Pg42ccJUTD7aSsmNRadyW8X4W5BIavTgVs2bmCb8TkbHxO3jQcc7Zfs-zntptvRTC9wy03vVNZKJZvlF0cQhu2CTzzlU_szbjIyh0q3UxSRwxcEkRvAEnrnuiT8qxS1D20G95Y/s1600/snake2.gif" t$="true" /></a></div><div closure_uid_f0dbm2="138" style="text-align: justify;">मैंने अब तक कईयों का बेड़ा पार लगा दिया था। सुबह से दोपहर हो गई मैं उसी अवस्था में अपनी कुंडली में मिठाई, फल और भोग का प्रसाद लपेटे हुआ था। मैं तो आया था ५ मिनट के लिए लेकिन तुम खुरापाती इंसानों ने ५ घंटे की परेड करवा दि। इतने में ही किसी पंडित ने घोषणा की कि यह सांप परम हनुमान भक्त है। पिछले जनम में ये परम हनुमान भक्त था और इस जन्म में सर्प रूप में फिर हनुमानजी के चरणों में अपनी भक्ति दिखाने आया है। मैं सोचने लगा- "खाली पेट न होय भक्ति, मैं तो खाना जुगाड़ने आया था या ये लोग मुझसे भक्ति करवाने पर तुले हैं। इस पंडित को अपने इस जन्म का ठीक से पता नहीं और मेरे पिछले जनम की कहानी सुना रहा है।" सभी रिपोर्टर पंडित की इस बात को लाइव दिखाने लगे। पंडित भी खुद को कैमरे के सामने पाकर अपने लुक पर ध्यान देने लगा और बीच-बीच में अपने बाल और धोती भी ठीक करता। इधर मैं बाहर निकलने के लिए जरा सी हलचल क्या करता कि सारे कैमरे और माइक मेरी ओर घूम जाते। सांप की तरह दिख रहे वे तार से बंधे माइक मुझे और भयभीत कर रहे थे। मगरमच्छ के मुंह की खुले हुए कैमरे मुझे कथित हनुमानभक्त सांप को खा जाने आतुर प्रतित हो रहे थे।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">इसी बीच थका हुआ मैं जरा देर के लिए सो गया। तभी किसी ने हल्ला कर दिया कि हनुमानभक्त सांप को हनुमानजी के चरणों में अद्भुत शांति का अनुभव मिल रहा है, तभी वो उनके पैरों में सो गया। देखों किस तरह खुद को हनुमानजी के चरणों में खुद को अर्पित कर दिया है। इतना सुनते ही मैं फिर जाग गया। तुम लोग शांति से सोने भी नहीं देते। मैं भागने के प्रयास में दाएं मुड़ने का प्रयास करता तो कोई एक नई कहानी के साथ पेश हो जाता है। बाएं मुड़ता तो फिर कोई कहानीकार नई कहानी बना देता। ऐसे लग रहा था मानो देश के सारे कहानीकार यहीं उपस्थित हो गए हैं और मुझे बेब सांप के साथ अपना बैर निभा रहे हैं। एक चलते-फिरते भजन गायक ने तो तत्काल मेरे ऊपर आरती बना दी और अपना आरती गायन भी शुरू कर दिया। कुल मिलाकर सबकी अपनी अलग-अलग कहानी थी, पर सबका हीरो एक ही था- " मैं हनुमानभक्त सांप"।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">अभी ये सब चल ही रहा था कि मुझे दूध पिलाने लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। कुंवारे-कुंवारियां विशेषकर दूध पिलाने आए क्योंकि पंडितजी ने घोषणा कर दी थी कि इस हनुमानभक्त सांप को दूध पिलाने वाले कुवारे-कुवारियों की शादी महीनेभर के भीतर हो जाएगी। मैं सोचने लगा- "अबे निकम्मों, तुम लोगों के चक्कर में मेरी खुद की शादी नहीं हुई। बमुश्किल एक नागिन मिली है उसी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में हूं और तुम लोग मुझे दूध पिलाकर अपनी शादी करवाने के जुगाड़ में हो। अरे निर्दयियों कुछ तो रहम करो। अगर मैंने इतना सारा दूध पी लिया तो मेरा रंग तो ऐसे ही काले से गोरा हो जाना है काले से गोरे होने कारण जात बाहर हो जाऊंगा वो अलग।" फिर भी लोग मुझे दूध पिलाने लड़ते-मरते रहे।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">मैं अब भागने का प्रयास में हनुमानजी की मूर्ति के चक्कर लगाने लगा। तो लोग इसका अर्थ निकालने लगे कि सांप भक्तिधुन में नाच रहा है और उसे मोक्ष मिलने वाला है। मैं भी सोचने लगा- "तुम लोगों को जो सोचना है सोचो, एक बार यहां से निकल जाऊं कसम खाता हूं दोबारा नहीं आऊंगा। मेरे लिए तो फिलहाल यहां से निकलना ही मोक्ष समान है।"</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div closure_uid_f0dbm2="136" style="text-align: justify;">शाम से रात हो गई। मैं भी बाहर न जाने के कारण उकता गया था। सबकी नींद उड़ाने वाले रिपोर्टर धीरे-धीरे नींद की गिरफ्त में आ गए। मैंने मौका देखा और अपनी केंचुली निकालकर धीरे वहां से खिसक लिया। नींद खुलने के बाद रिपोर्टरों ने जब सांप को गायब देखा और सिर्फ उसकी केंचुली देखी तो फिर टीवी पर ब्रैकिंग न्यूज फ्लैश करने लगे- हनुमानभक्त सांप हनुमानजी में समा गया। ऐसी अद्भुत भक्ति कभी किसी ने देखी न होगी। सांप अपनी केंचुली यहां छोड़कर हनुमानजी की मूर्ति में समा गया। जय हो हनुमानभक्त सांप की। सब रिपोर्टर फिर से हनुमानजी की मूर्ति और केंचुली की फोटो उतारने में मशगूल हो गए। लोगों द्वारा हनुमानभक्त सांप की आरती गायन और कहानी लेखन का कार्यक्रम फिर से शुरू हो गया। मैं ये सब देख अपनी नागिन के साथ भागा जो मेरा इतने देर इंतजार करने के बाद बिल्लू सांप के साथ जाने का मन बना चुकी थी। शुक्र है आखिर मैं से भाग पाया और अपनी नागिन को भी पा लिया। तब से मैंने कसम खाई है नागपंचमी के दिन तो मुझे दिखना ही नहीं है। सांप की ऐसा हृदयविदारक कहानी सुन मेरी आंख भर आई। मैंने कटोरी का दूध खुद पी लिया और बोला, जाओ मेरे भाई, पाय लागूं, भाभी को चरणस्पर्श कहना। भतीजे-भतीजीयों को मेरा प्यार देना। मुझे अश्रुजल बहाता देख वह सरपट भागा। पर पीछे खड़े पोंगापंडितजी सब सुन चुके थे। उन्होंने तुरंत एसएमएस द्वारा द रिटर्न ऑफ हनुभक्त सांप की खबर फैलानी शुरू कर दी। मैं बस आंसू बहाते रहा। जब आंख खोला तो देखा कि पंडितजी मुझे भक्त ऑफ हनुमानभक्त सांप की उपाधि दे चुके थे। और मेरा आस-पास कैमरे की चकाचौंध थी। भागने की जगह भी न थी। मैं चिल्लाया- हे नागराज, मुझे बचाओ............।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a closure_uid_f0dbm2="276" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhEmQB37EMsd5gp5UhAuzEK8Xmtk_l78kp5v-Vwu-aWnME5UFO4dcEbCl-NqXs_u86WAqi-naFmqFj5vmoqATBpGiK_rw_2mS7QHZzR4huUBGCUDqDnb0X9WbO86c93PBlx2yiLH7sfnUY/s1600/panditji.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhEmQB37EMsd5gp5UhAuzEK8Xmtk_l78kp5v-Vwu-aWnME5UFO4dcEbCl-NqXs_u86WAqi-naFmqFj5vmoqATBpGiK_rw_2mS7QHZzR4huUBGCUDqDnb0X9WbO86c93PBlx2yiLH7sfnUY/s200/panditji.jpg" t$="true" width="197" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPjNXgSLFiBqJz1sdM2-cjiD1gq6TF1_ft_k9bhyphenhyphen8m7mBOTHgO_wAj4Ccp53EsVptfcG-OKMa0ikl002dbEAjXuqrjaOxktpbO2iU8txpf78u_OxO9KHf8CKXyynRLwasPBFNg1PWufck/s1600/snake1.gif" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPjNXgSLFiBqJz1sdM2-cjiD1gq6TF1_ft_k9bhyphenhyphen8m7mBOTHgO_wAj4Ccp53EsVptfcG-OKMa0ikl002dbEAjXuqrjaOxktpbO2iU8txpf78u_OxO9KHf8CKXyynRLwasPBFNg1PWufck/s1600/snake1.gif" t$="true" /></a></div><div closure_uid_f0dbm2="137" style="text-align: justify;"><span closure_uid_f0dbm2="226" style="color: red;"><strong>पोंगापंडितजी का बम्पर ऑफर-</strong> अगर आप लोग हनुमानभक्त सांप की आरती को अपना रिगटोन बनाना चाहते हैं तो अपने मोबाइल से saap लिखकर 55555 पर भेज दीजिए। हनुमानभक्त सांप की केंचुली के फोटो और उससे बने ताबीज के लिए आप संपर्क कर सकते हैं बाबा नागराज से। घरपहुंच सेवा उपलब्ध है। घरपहुंच सेवा का अतिरिक्त चार्ज लगेगा क्योंकि हमारे हॉकर कोई नागराज नहीं हैं जो उड़कर आप लोगों के घर टपक जाएंगे, गाड़ी से आना पड़ेगा और पेट्रोल भी महंगा हो गया है। </span></div><div closure_uid_f0dbm2="309" style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"></div></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-28374518354507962092011-07-28T22:06:00.000+05:302011-07-28T22:06:15.191+05:30दुखियारा होने का दुख (व्यंग्य)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial initial; background-repeat: initial initial; font: normal normal normal 13px/19px Georgia, 'Times New Roman', 'Bitstream Charter', Times, serif; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0.6em; padding-left: 0.6em; padding-right: 0.6em; padding-top: 0.6em;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhcAlL9EDL96MIp_7ujCUG94oRiYaVCg1AX4jZ1CuoIDp3c4B-Pp6EBeEHidEaUAdEW7iJJhtQaJIJ7xpfnikrHITGHBmZKHuQ-HR11i3OKeSZMC9Ztz6CRk48Z8X8nEg5qBu_U8kg26tI/s1600/sumit+and+panditji.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="263" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhcAlL9EDL96MIp_7ujCUG94oRiYaVCg1AX4jZ1CuoIDp3c4B-Pp6EBeEHidEaUAdEW7iJJhtQaJIJ7xpfnikrHITGHBmZKHuQ-HR11i3OKeSZMC9Ztz6CRk48Z8X8nEg5qBu_U8kg26tI/s320/sumit+and+panditji.jpg" width="320" /></a></div><div style="text-align: justify;">नेट में कल मैंने एक खबर पढ़ी कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में सबसे ज्यादा दुखी लोग है। यह खबर पढ़ते ही मैं अपना सिर पकड़कर बैठ गया। भारत और डिप्रेस्ड...???? सिर पर अपना हाथ रखा देख मैंने झट उसे हटाया क्योंकि सिर पर हाथ रखकर बैठना तो डिप्रेशन का पोज़ है। मतलब कि मैं भी डिप्रेस्ड हूं। उन दुखियारे भारतीयों में मेरा भी नाम है। हे राम ! जरूर डब्ल्यूएचओ वालों ने मुझे इस डिप्रेस्ड पोज में देख लिया होगा और मुझे भी दुखियारों में शामिल कर लिया होगा। अरे मैं तो हूं ही चिंतक किस्म का। व्यंग्य लिखने के प्रयास के दौरान सोचने के लिए सिर पर हाथ रख लेता हूं। मेरी मां कहती हैं मेरा दिमाग खाली है। बस वही चेक करने के लिए कभी -कभी सिर पर हाथ रख लेता हूं। पर भैया इसका मतलब यह थोड़ी कि हमकों भी दुखियारा घोषित कर दो। अरे दुखियारे हो हमारे मित्र, हमारे दुश्मन, हमारे पाठक, हमारे पड़ोसी पोंगा पंडितजी। हम भला क्यूं दुखियारे होने लगे???</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">खबर में आगे लिखा था कि ३५.९ प्रतिशत मेजर डिप्रेसिव एपिसोड (एमडीई) से ग्रस्त हैं। इन दुखियारे लोगों के डिप्रेशन की बहुत सारी वजह है- मसलन कम तनख्वाह, दूसरी की सफलता से दुखी होना, दूसरों की निंदा करना, हर समय यहां-वहां की चिंता करना, अकेलापन आदि। ये सब लक्षण तो मुझमें भी थे- मेरी तनख्वाह कम है, कलमाड़ी-राजा आदि भ्रष्ट लोगों की सफलता से मैं दुखी हूं, इसलिए ईर्ष्यावश उनके उपर व्यंग्य लिखता हूं उनकी निंदा करता हूं, सबको पता है चिंतन तो मेरा स्वभाव है, यहां वहां की चिंता भी मैं करता हूं, और अपनी प्रियतमा से भी मैं काफी समय से दूर हूं- मतलब फिलहाल अकेला हूं। ये सारे दुखियारे होने के लक्षण तो शत-प्रतिशत मुझसे मैच करते हैं। अब यह तो प्रमाणित हो गया कि मैं दुखियारा हूं। हे राम ये तूने क्या किया?</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">अपने सारे दुखों का इलाज मुझे सिर्फ उस ऊपरवाले के पास ही दिखता है। वो जो परम अल्पज्ञानी है। जो खुद सबसे बड़ी समस्या है- हमारे पोंगापंडित जी जो सामने वाले फ्लैट के सबसे उपरी मंजिल में रहते हैं। मैं दौड़ पड़ा उनके फ्लैट की ओर... दुखों का बोझ अपने ऊपर लिए हुए। लिफ्ट बंद देखकर मैं सीढ़ी के रास्ते गया। ज्यों-ज्यों सीढ़ी चढ़ता गया मेरा दुख सब तरफ से बाहर निकलने लगा। आंख, नाक, माथे, गले सब जगह से दुख बहने लगा। अंत में दुख से नहाया हुआ मैं उनके कमरे तक पहुंचाया। मैं पूरी तरह दुख से नहाया हुआ था। मुझे देख पोंगापंडित जी चौंक पड़े- अरे तुम्हारी ये हालत। कल तक चेहरे पर चस्पी तुम्हारी चिर-परिचित कुटिल मुस्कान कहां गई। आज ये दुखियारा लुक क्यों अपनाए हुए हो? क्या बात है, हम पर रोज व्यंग्यात्मक नजर रखने वाली तुम्हारी आंखें घुसी हुई हैं, बाल बिखरे हुए, चेहरे का तेज तो ऐसे गुल है जैसे फ्यूज्ड बल्ब हो, हम पर रोज व्यंग्य का वार करनी वाली आपकी लंबी जुबान छुपी-छुपी सी है, पसीने से नहाए हुए हो इतनी दुर्गंध आ रही है कि हमारे यहां की मक्खियां बेहोश हो कर गिर रही हैं। अच्छा हुआ आ गए कल ही मक्खी-मच्छर मारने वाली दवा खत्म हुई थी। रात को आए होते तो और बेहतर होता, कम्बख्त मच्छरों ने बड़ा परेशान किया। खैर , अब अंदर आकर अपना दुखड़ा सुनाओ, अपनी चोटी घुमाते हुए पंडितजी ने मुझे निमंत्रित किया।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">मैंने अपना दुखड़ा पुराण शुरू किया। अरे क्या बताऊं पंडितजी- कल तक हम जो दिल में फीलगुड वाला फैक्टर लिए घूमते थे वो सब काफूर हो गया। अरे जिस सुमित को महंगाई डायन नहीं डरा पाई, इतने घोटाले और भ्रष्टाचार नहीं तोड़ पाए। अरे जो रिसेशन की आंधी में भी खुशियों का दीया जलाता रहा उस सुमित को डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट ने दुखियारा घोषित कर दिया। मेरी तनख्वाह कम है, भ्रष्टाचारियों की सफलताओं से मैं जलता हूं, उनकी निंदा करता हूं और अपनी प्रियतमा से पिछले झगड़े के बाद से मैं बिलकुल अकेला हूं- ये सब लक्षण दुखियारा होने की ओर संकेत करते हैं, यानी मैं हूं टोटल दुखियारा। पंडितजी की आंखें भर आईं- शायद मेरा दुख उनके बर्दाश्त नहीं हुआ।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">कुछ देर शांत रहने के बाद फव्वारे की तरह फूटते हुए पंडितजी बोले- बस इतने से दुख हो गया तुमको। तुम्हारी तनख्वाह भले ही कम हो पर है तो सही, हमा्री तो बिलकुल जीरो है, एकदम निठल्ले हैं हम। तुम तो कम से कम कलमाड़ी-राजा जैसे बड़े लोगों की निंदा करते हो, उन पर व्यंग्य कसते हो, हम तो तुम्हारे जैसे छोटे-मोटे लोगों की भी निंदा करते हैं। तुम्हारे लिखे व्यंग्य को अगर एक पाठक भी मिल जाता है तो हम उसे तुम्हारे लेख नहीं पढ़ने देते अपितु उसे दूसरे लेखक की तरफ घुमाने में लग जाते हैं। और रही बात अकेलेपन की तो कम से कम तुम्हारी प्रियतमा तो थी, हमने तो आज तक किसी लड़की से बात तक नहीं की ऊपर से शादी की उम्र भी निकलती जा रही है। उस बाबा रामदेव की राखी सावंत दीवानी है और हमको तो कोई देखती तक नहीं। अरे सुमितजी कम से कम आप थोड़े ऊंचे दर्जे के दुखियारे हैं पर हम तो एकदम निम्न दर्जे के दुखियारे हैं। मैंने जैसे ही सुना- ऊंचे दर्जे का दुखियारा मेरा दुख ३-४ किलो कम हो गया। वो क्या है ना शुरू से ही हमें ऊंचे दर्जे का कहलाना बहुत पसंद रहा है।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">बस फिरथा क्या कुछ देर के बाद हम दोनों ऊंचे एवं निम्न दर्जे के दुखियारे अपने दुखों पर आंसू बहाने लगे। चूंकि मैं पोंगा पंडितजी के अनुसार ऊंचे दर्जे का दुखियारा था इसलिए मैं रौब के साथ एक साफ तौलिया लिए रोने लगा, साथ ही पंडितजी से थोड़ा दूर चला गया ताकि उनके निम्न दर्जे के दखियारे आंसू मुझ पर न पड़े। काफी देर के इस रुदनासन के बाद पंडितजी बोले- अरे सुमितजी आगे और कुछ तो लिखा होगा खबर में वो तो बताइए। मैंने कहा- हां, लिखा है ना। आगे लिखा है कि अगर इस डिप्रेशन का तुरंत इलाज न किया गया तो आगे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। इतना सुनते ही पंडितजी आंसू पोछकर उठ खड़े हुए। वे बोले- बस अब बहुत हुआ रोना, अब निदान की बारी है। हम आज से ही दुखी होने के सारे रास्ते बंद कर देंगे।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">सर्वप्रथम तो अब हम पंडितजी से बाबाजी का रूप धरेंगे। सत्संग कराएंगे, लोगों को ज्ञान बांटेंगे, अपना ट्रस्ट खोलेंगे। लोगों के भक्तिपूर्वक दान से हमारे ट्रस्ट में कई सौ करोड़ रुपए इकट्ठा हो जाएंगे। इस तरह हम कम आय जैसी पीड़ा से सदा के लिए मुक्त हो जाएंगे। रही बात अकेलेपन की तो बाबा बनते ही हमारे आसपास शिष्य-शिष्याओं की भीड़ होगी, अकेलेपन की प्राब्लम भी समाप्त। इतने ऊंचे जीवनस्तर पर पहुंचने के बाद न तो हमें किसी से ईर्ष्या हो सकती है, न हमें किसी प्रकार की चिंता की आवश्यकता होगी। अंत में रही बात जीवनसाथी की तो हमारा इतना क्रेज देखकर बॉलीवुड तो क्या हालीवुड अभिनेत्रियों भी हमारे लिए क्रेजी हो जाएंगी। लो हो गया सभी समस्याओं का हल, अब आप बोलो। </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">जिन पंडितजी को मैने परमअल्पज्ञानी की उपाधि दी थी उनके द्वारा पलभर में इतने सारे समस्याओं का हल बताने पर मैं अवाक् रह गया। उनके मुख से मिसाइल की तरह निकले शब्दों ने एकाएक मेरी नजर में उनका स्थान बहुत ऊपर उठा दिया था। तब उनको साष्टांग दंडवत प्रणाम करते हुए मैं बोला- हे पंडितजी। अपनी समस्याएं तो आपने निपटा ली, अब मेरी समस्याओं का भी हल बताएं। पंडितजी कुछ अकड़कर बोले- हां बालक जरूर। बालक सुनते ही मैं चौंक। पंडितजी आपने मुझे बालक बोला। पंडितजी बोले- बाबा का स्वरूप तो मैंने अभी से ही धर लिया है। अब तुम मेरे लिए सुमितजी नहीं अपितु बालक हो, वत्स हो, मेरे फर्स्ट एंड फोरमोस्ट भक्त हो। मैंने कहा- ठीक है गुरूजी सब मंजूर है। पंडितजी आगे बोले- सबसे पहले तो तुम ये लिखना-विखना बंद करो, कुछ कर्म करो, कर्मप्रधान बनो। कुछ ऐसा करो कि लोग तुम्हारे बारे में लिखें। किसी सरकारी विभाग में घुसे। जहां भी जाओ भ्रष्टाचार की सीमा को पार करते जाओ। अगर चपरासी भी होगे तो उस करोड़पति चपरासी की तरह होना जो हाल ही में उड़ीसा में पकड़ाया था। अगर अधिकारी हुए तो ऐसा अधिकारी होना जिसके यहां इनकम टैक्स वाले छापा मार-मारकर त्रस्त हो जाएं। इन शार्ट बालक! तुम जहां भी रहना भ्रष्टाचार का झंडा बुलंद किए रहना। फिर देखना तुम्हें किसी की सफलता से ईर्ष्या नहीं होंगी अपितु लोग तुमसे ईर्ष्या करेंगे। वैसे भी ईर्ष्या मनुष्य का शत्रु है, इसलिए जलो मत बराबरी करो पुत्र। ऐसा करते ही तुममें विश्व बंधुत्व की भावना आ जाएगी, तुम्हें सभी भ्रष्टाचारी अपने भाई प्रतीत होंगे। रही बात अकेलेपन से ग्रस्त होने की तो वो तो तुम भूल जाओ, तुम्हारे पास इतना धन होगा कि तुम खुद का स्वयंवर रचा सकते हो वो भी टीवी पर। </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">धन्य हो गुरूजी, मैं पंडितजी की जय-जयकार करने लगा। आपने तो चुटकी में मेरे सभी समस्याओं का निदान बता दिया। मैं मूरख न जाने किस मृगतृष्णा में भटक रहा था, किन अंधेरी गलियों में अपना रास्ता तलाश रहा था। मैंने नामसझी में आपको परमअल्पज्ञानी कहा लेकिन आपके मुख से निकले इन चमत्कारी शब्दों ने मेरे ज्ञानचक्षु खोल दिए। मेरे मन में जो बाकी लोगों के प्रति दुर्भावना का मैल था, उसे साफ कर दिया। आप महान है, परमज्ञानी है। आपकी जय हो। प्रसन्न मुद्रा में मैं बाहर निकला। अब शरीर में जहां-तहां से हो रहा दुखों क स्त्राव बंद हो चुका था। दुखों से भीगी मेरी कमीज सूखकर नई हो चुकी थी। पंडितजी के ज्ञान के साबुन ने उसे साफ करते हुए सर्फ एक्सेल, रिन जैसे साबुनों को फेल कर दिया। दुखों के कारण तन से आ रही दुर्गंध मेरे इर्द-गिर्द फैल चुके ज्ञान के आभामंडल के कारण दूर हो चुकी थी और उसकी जगह पंडितजी के ज्ञान की खुशबू आ रही थी जिसका प्रभाव कुछ-कुछ डियोड्रैंट के विज्ञापनों जैसा था। ज्ञान की खुशबू के कारण कल तक हमको एक नजर तक न देखने वाली बबली अब बबलगम चबाते हुए हमें बड़े प्यार से देख रही थी। अंततः अब मैं दुखियारों की श्रेणी से बाहर आ चुका था। पंडितजी की जय हो।</div></div></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-77380320829649326782011-07-25T22:45:00.000+05:302011-07-25T22:45:19.424+05:30तालाब का सरप्राईज (व्यंग्य)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial initial; background-repeat: initial initial; font: normal normal normal 13px/19px Georgia, 'Times New Roman', 'Bitstream Charter', Times, serif; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0.6em; padding-left: 0.6em; padding-right: 0.6em; padding-top: 0.6em;"><div style="text-align: justify;">हमारी रायपुर नगर निगम की संवेदनशीलता का मैं कायल हूं। जिस चीज के बारे में सोचता हूं उसे ये बना देती है। मेरी पुरानी रचना (मुहांसे वाली कैटरीना) में मैंने अपने शहर में नित नई बनती सड़कों के बारे में बताया था। मैं शुरू से शहर में रहा, घर के पास ना तालाब था, न गांव की तरह घर के पास बहती नदी। तालाबों में खुद की नाव चलाने की तमन्ना तो बस तमन्ना बनके दिल के किसी कोने में दब गई थी, जैसे सरकारी फाइलें किसी कोने में दबी रहती हैं। घर के पास एक अदद तालाब की आस हमेशा रहती थी। घर में तो मैंने नाव तक बनवाकर रखी थी पर उसे तालाब का इंतजार था। बहरहाल, कुछ सालों पहले नगर निगम ने बरसों से लोकल ट्रेन की स्पीड से बन रहे अंडरब्रिज को पूरा करवाया। अंडरब्रिज बनने की मुझे खुशी तो थी पर घर के पास तालाब न बनने की टीस अब भी मन में थी। </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><img alt="gudhiyari underbridge" class="alignleft size-medium wp-image-350" height="217" mce_src="http://sumityadav.jagranjunction.com/files/2011/07/gudhiyari-underbridge-300x217.jpg" src="http://sumityadav.jagranjunction.com/files/2011/07/gudhiyari-underbridge-300x217.jpg" style="border-bottom-width: 0px; border-color: initial; border-left-width: 0px; border-right-width: 0px; border-style: initial; border-top-width: 0px; float: left; text-align: justify;" title="gudhiyari underbridge" width="300" /><br />
<div style="text-align: justify;">खैर हम तो जनता-जनार्दन हैं हमारा दिल बहुत बड़ा है और सब कुछ दिल में दबाकर हम आगे बढ़ जाते हैं। अरे हम तो इतने घोटाले, भ्रष्टाचार और महंगाई के दर्द को दिल में दबाकर आगे बढ़ लेते हैं फिर तालाब न बनने का दर्द को मामूली था। बरसात का मौसम आ चुका था। कुछ दिनों तक तो हमारे पगार की छोटी राशि की तरह टिप-टिप करके पानी की बौछारें आई। हफ्तेभर बाद किसी बडे़ घोटाले की बड़ी राशि की तरह अचानक भारी बारिश गिरने लगी। अब जैसे कि आप जानते हैं मैं चिंतक हूं। भारी बारिश के बीच मुझे अपने ऑफिस की चिंता सताने लगी कि बारिश के कारण आफिस नहीं गया तो एक दिन का पैसा कट जाएगा। आप ही बताइए एक तो छोटी सी चादर उपर से उसमें छेद हो जाए तो क्या हालत होगी। इसी डर से मैंने झट से रेनकोट पहना, अपनी फटफटी स्टार्ट की और आफिस के लिए निकल पड़े। जैसे ही अंडरब्रिज पहुंचा तो देखा वह तो तालाब बन चुका है, पानी से लबालब बिलकुल वैसा जैसा मैं सपनों में देखा करता था। नगर निगम ने मुझे सरप्राइज गिफ्ट दिया था। मुझे तालाब चाहिए था और निगम ने अंडरब्रिज की शक्ल में मुझे तालाब दे दिया। इससे एक और बात साबित हो गई कि हमारी निगम संवेदनशील होने के साथ सरप्राइजप्रेमी भी है। वह मार्डन निगम है और आज की पीढ़ी के अनुसार सरप्राइज जैसे ट्रिक अपनाते रहती है। रियलिटी शो में आने वाले ट्विस्ट की तर्ज पर वह हमारे जिंदगियों में भी ट्विस्ट लाकर जिंदगी की टीआरपी बढ़ाने में निपुण है। अगर वह हम पर इमोशनल अत्याचार करती है तो हमें बिग बॉस बनाने वाली भी वही है।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><br />
<div style="text-align: justify;">अंडरब्रिज में लबालब पानी को देखकर तो लगा कि कहीं से नाव लाऊं और कूद पड़ूं। लेकिन अपनी घरघराती गाड़ी को देखकर सोचने लगा काश इसकी जगह घऱ से नाव लेकर निकला होता। गाड़ी लेकर अंडरब्रिज के पानी में घुसूंगा को बीच में बंद होना का डर है। परंतु अंडरब्रिज पार करना भी जरूरी था क्योंकि कटने वाले वेतन की चिंता हमारे चिंतक मस्तिष्क में बार-बार खटखटा रही थी। बड़ी मुश्किल थी। हमारी हालत उस मजबूर सरकार की तरह हो गई थी जो किसी घोटाले के आरोपी के खिलाफ कार्रवाई करूं या न करूं की पशोपेश में हो। कार्रवाई की तो गठबंधन हल्ला करेगा और नहीं की तो जनता हल्ला करेगी। मगर जिस तरह एक कमजोर सरकार घोटाले होने के बहुत देर बाद ही सही कार्रवाई करने का मन बनाती है उसी तरह मैंने भी आधे घंटे इंतजार करने के बाद तय किया कि अब तो गाड़ी लेकर ही पानी में घुसना पड़ेगा।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">बस भगवान का नाम लिया, अपनी फटफटी स्टार्ट की और सीधे घुस गया पानी में। जैसे कि हमारे देश में लोग भेड़चाल के आदी हैं मेरी देखादेखी कुछ और लोग भी मेरे पीछे आ गए। हममें चिंतन के साथ नेतृत्व गुण भी शुरू से ही रहा हैं और अब इन पानी में फंसे लोगों का नेता बनकर हमें बड़ी अच्छी वाली फीलिंग रही थी। पेट्रोल टंकी तक पानी में डूबी हमारी फटफटी किसी गठबंधन सरकार की तरह धक्क-धक्क करके चल रही थी। लगता था बस अब बंद हुई, तब बंद हई। लेकिन सच कहूं तो पानी में डूबी हमारी फटफटी हमें किसी नौका से भी ज्यादा सुंदर अहसास दे रही थी। हमने तो नौका के सपने देखे थे यहां तो ऐसा लग रहा था जैसे हम मोटरसायकिल नहीं वाटरमोटरसायकिल या फिर कहें वाटरबाइक चला रहे हों। अब देखिए निगम ने ७० हजार की फटफटी में हमें ७ लाख वाली वाटरबाइक के मजे दिलवा दिए। मैंने आपको बताया ही था हमारी निगम हमारा कितना ख्याल रखती है। कुछ पल के लिए तो हम खुद को धूम श्रेणी की फिल्मों में वाटरबाइक चलाने वाले छुटके बच्चन की तरह समझ रहे थे। कभी-कभी तो हम हॉलीवुड अभिनेताओं को भी टक्कर देते नजर आ रहे थे। </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">तभी हमारी फटफटी अचानक बंद हो गई। ऐसा लगा जैसा किसी गठबंधन सरकार से उसके प्रमुख घटक दल ने समर्थन वापस ले लिया हो। हमने फटफटी फिर शुरू करने की कोशिश की पर फटफटी से समर्थन न मिला। वह नाराज घटक दल की तरह अड़ी रही। तभी पीछे आ रही मेरे समर्थकों की गाड़ियां भी बंद हो गई। गाड़ी बंद होते वे मुझे खराब नेता घोषित करने पर तुल गए। मैं समझ गया स्वार्थ की दुनिया है और राजनीति का उसूल है अपनी गलती कभी न मानना। १५ मिनट की नेतागिरी में मुझमें इतनी समझ तो आ चुकी थी। मैंने पैंतरा बदला और कहा- गलती तुम लोग की है। मैं अच्छा भला दूसरे रास्ते से जा रहा था तुम लोगों ने मुझे जबरन इस पानी में धकेल दिया। मुझे दोष मत दो और यहां से फुटो। मेरा ध्यान फिर गाड़ी पर गया मैंने भगवान का नाम लेकर गाड़ी शुरू करना चाहा पर बात नहीं बनी। मैंने गाड़ी से विनती की पर वह न मानी। मैंने उसे उसकी गर्लफ्रैंड्स स्कूटी पेप, प्लेजर और एक्टीवा की कसमें दी पर उसने इन सबसे अपनी ब्रेकअप की बात कहकर मेरी बात काट दी। </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">अब मेरी समझ में आ चुका था कि आज के भ्रष्ट युग में मेरी फटफटी भी भ्रष्ट हो चुकी है। वह न भगवान के नाम से मानेगी, न ही विनती और कसमो से। उसे तो घूस देना पड़ेगा। मैंने अपनी फटफटी से अबकी बार ताव से कहा- चालू होने का क्या लेगा साफ साफ बता।। फटफटी तपाक से बोला- स्ट्रार्ट होने के बदले मुझे अपने लिए एक पर्सनल कमरा चाहिए जहां मैं आराम से रह सकूं और तुम लोग के घरेलू लड़ाई में न फंसू। पिछली बार तुम लोगों की लड़ाई में मेरे मिरर टूट गए और टंकी चपट गई। मैंने कहा ठीक है मंजूर। इतना बोलते ही फटफटी घन....घन... की मधुर ध्वनि के साथ स्टार्ट हो गई। अंडरब्रिज पार करते ही मुझे एक उपाय सूझा। घर में रखी नांव को पानी में उतारने का वक्त आ गया है। दोस्तों को फोनकर मैंने नांव बुलवाई व इस पार से उस पार ले जाने का १० रुपये किराया रख दिया। उस दिन ऑफिस तो नहीं जा पाया एक दिन की पगार भी कट गई। लेकिन लोगों को इस पार से उस पार करवाकर मैंने उससे कई गुना कमा लिया। उसके बाद तो मैंने दो-तीन आफिस जाना मुनासिब ही नहीं समझा। बस तबसे हर साल मुझे इंतजार रहता है सावन का। बढ़ती महंगाई के कारण मैंने नांव का किराया १५ रुपये कर दिया है। आप ही बताइए रेट ठीक है ना अगर कम लगे तो भी बता दीजिएगा, सावन अभी शुरू ही हुआ है रेट एडजस्ट करने का टाइम है अभी।</div></div></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-83166411031222145832011-07-18T22:41:00.000+05:302011-07-18T22:52:41.794+05:30दिग्विजय में ओसामा की आत्मा (व्यंग्य)<div style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial initial; background-repeat: initial initial; font: normal normal normal 13px/19px Georgia, 'Times New Roman', 'Bitstream Charter', Times, serif; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0.6em; padding-left: 0.6em; padding-right: 0.6em; padding-top: 0.6em;"><div style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="digvijay-singh_5" class="alignleft size-medium wp-image-346" height="200" mce_src="http://sumityadav.jagranjunction.com/files/2011/07/digvijay-singh_5-250x300.jpg" src="http://sumityadav.jagranjunction.com/files/2011/07/digvijay-singh_5-250x300.jpg" style="border-bottom-width: 0px; border-color: initial; border-left-width: 0px; border-right-width: 0px; border-style: initial; border-top-width: 0px; float: left; text-align: justify;" title="digvijay-singh_5" width="166" /></div><div style="text-align: justify;">दिग्विजय के बयानों से तंग आई भाजपा ने यह कहकर उन्हें चुप कराने की कोशिश की उनमें ओसामा की आत्मा घुस गई है। लेकिन आप ही बताइए जिस तरह दिग्विजयजी के मुंह से धड़ाधड़ बयानों की सुपरसोनिक मिसाइल निकल रही है उस पर फुलस्टाप लग सकता है क्या? फिर भी भाजपा का यह बयान था एक बेहद चुटीला व्यंग्य। पहले तो यह बयान पढ़कर हंसी आई लेकिन जैसे कि आप लोग जानते हैं चिंतन करना मेरे स्वभाव में है और दिन में बिना एक-दो बार चिंतन किए मन तृप्त नहीं होता। बस यह बयान पढ़ते हुए आई हंसी क्षणभर में फुर्र हो गई और चिंतन वाला चेहरा उभरकर आ गया। </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">मन में एक विचार खटका कि कहीं सच में तो दिग्विजयजी के शरीर में.........। न..न..ये नहीं हो सकता। लेकिन हो भी सकता है। मन में विचार कुछ स्पष्ट नहीं आ रहा थे, शायद चिंतन करने वाले मस्तिष्क के हिस्से में बैटरी लो था। हमने तुरंत अपना पावर वाला चश्मा चढ़ाया, हाथों में कलम लिया और एक पूर्ण चिंतक का अवतार धरकर बैठ गए दोबारा चिंतन करने। भारत तो शुरू से भूत-प्रेत, आत्मा की कथाओं वाला देश रहा है। इन कथाओं का ऐसा आकर्षण रहा है कि लोग डरने के बाद भी इन्हें सुनने उत्सुक रहते हैं। भूत-प्रेत के भरोसे तो चैनलवाले भी अपनी टीआरपी बढ़ा लेते हैं, भूत भगाने के नाम पर बाबाओं की रोजी-रोटी क्या छप्पनभोग चल जाती है। हो सकता है यही टीआरपी ओसामा की आत्मा को भारत खींच लाई हो। फिर सोचा नहीं.... देश तो तरक्की कर रहा है। भूत-प्रेत तो गांव-देहात में रहते हैं। फिर याद आया... काहे की तरक्की ७० प्रतिशत आबादी तो अब भी गांव में बसती है। शायद ओसामा की आत्मा पाकिस्तान से निकलकर सरहद पार करते हुए गांवों के रास्ते होते हुए दिग्विजयजी के शरीर में घुस गई हो। अगर दिग्विजयजी के शरीर में ओसामा की आत्मा नहीं है फिर तो कोई प्राब्लम नहीं लेकिन अगर है तो समझ लीजिए टेंशनों की बाढ़ मुंह बाए खड़ी है।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><br />
<div style="text-align: justify;">घर में अकेले चितंन करते करते बोरियत होने लगी ती तो सोचा थोड़ा पड़ोस के परमअल्पज्ञानी पोंडा पंडितजी से चर्चा की जाए। उन्होंने कहा मुझे अपने दिब्य (पंडितजी शुद्ध हिन्दी वाले हैं इसलिए दिव्य को दिब्य कहते हैं) ज्ञान आभास होता है कि ओसामा ने अपनी मौत के चंद मिनटों पूर्व ही तय कर लिया था कि उनकी आत्मा को यहीं पृथ्वीलोक में किसी प्राणी के शरीर में घुसना है। पर इतने अरबों की की जनसंख्या में किसके शरीर में घुसा जाए यह समस्या थी। ओसामा की मौत के बाद दिग्विजयजी ने जैसे ही ओसामा को ओसामाजी कहा, उसी समय ओसामा ने इसे इन्वीटेशन मान लिया होगा। चंद घंटों में ही सही व्यक्ति मिल गया। न ऑनलाइन पोल का झंझट, न वोटिंग ना कोई रिटलिटी शो का ड्रामा क्या किस्मत है ओसामा। या यह भी हो सकता है कि दिग्विजय के निरंतर खुले रहने वाले मुख को उन्होंने खुल जा सिम सिम की तरह अंदर आने का न्यौता समझ लिया होगा और सांस के साथ उनके अंदर चले गए होंगे।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">ओसामा दिग्विजयजी के अंदर कैसे गए ये छोड़िए यहां बात हो रही थी आने वाली परेशानियों की। मैं तो बोलता हूं ज्यादा हल्ला नहीं करना चाहिए। श...श...श...। इस खबर को यहीं दबा देना चाहिए। अगर खुदा ना खास्ता ये खबर ओसामा की मौत के जश्न में डूबे अमरिकियों को लग गई तो समझ लीजिए वो लोग अपना हाथों का जाम फेंककर बंदूक लेकर यहां दौड़ पड़ेंगे। और कहीं पड़ोसी पाकिस्तान में यह खबर फैल गई तो अलकायदा में भी खलबली मच सकती है। ओसामा के जाने के बाद शीर्ष पद का उम्मीदवार सपने टूटने के गम से डिप्रेशन में जा सकता है। और सबसे खतरनाक न्यूज चैनल वाले जो अफवाह को भी खबर की तरह पेश करने में महिर है तुरंत इस खबर पर सीरीज चालू कर देंगे। चैन से सोना है तो जाग जाइए........। ओसामा की आत्मा कहीं से भी आपमें घुस सकती है। अपना मुंह, आंख, कान बंद रखिए। कान में रूई ठूंस लीजिए। आपके कान के पास चल रही जूं में भी ओसामा की आत्मा हो सकती है। चैन से रहना है तो डकार मारना छोड़ दीजिए। आपकी ३० सेकंड की डकार मौका दे सकती है ओसामा की आत्मा को आपके अंदर घुसने का.... वगैरह वगैरह.....। </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">खैर एक अच्छे विपक्ष की तरह भाजपा ने मर्ज तो बताया ही साथ ही इलाज करने का बीड़ा भी अपने सिर पर ले लिया। उन्होंने कहा कि दिग्विजयजी का झाड़-फूंक हम कराएंगे। भाजपा का यह "केयरिंग नेचर" मुझे बहुत पसंद आया। मैं तो यही कहूंगा- "सलामत रहे विपक्षाना तुम्हारा"। पर आखिर में मेरी एक सलाह है कि जिस बाबा-बैगा के पास आप इन्हें लें जाएं वो बुश और ओबामा को "काम्बो पैक" होना चाहिए। अजी, ओसामा की आत्मा को भगाने के लिए बुश-ओबामा के "काम्बो पैक" को १० साल लग गए तो उनसे कम चलेगा ही नहीं। ठीक है पोंगापंडितजी अब चिंतन टाइप समाप्त, बाकी का चिंतन कल अब इजाजत दीजिए । यह कहते हुए मैं पोंगा पंडितजी के यहां से प्रस्थान करना ही उचित समझा।</div></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-79563405969030564532011-07-15T23:01:00.000+05:302011-07-15T23:01:04.389+05:30आखिर क्यूं पटरी पर लौटी मुंबई?<div style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial initial; background-repeat: initial initial; font: normal normal normal 13px/19px Georgia, 'Times New Roman', 'Bitstream Charter', Times, serif; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0.6em; padding-left: 0.6em; padding-right: 0.6em; padding-top: 0.6em;"><img alt="article-2014359-0CFF019100000578-550_634x414" class="alignleft size-medium wp-image-342" height="195" mce_src="http://sumityadav.jagranjunction.com/files/2011/07/article-2014359-0CFF019100000578-550_634x414-300x195.jpg" src="http://sumityadav.jagranjunction.com/files/2011/07/article-2014359-0CFF019100000578-550_634x414-300x195.jpg" style="border-bottom-width: 0px; border-color: initial; border-left-width: 0px; border-right-width: 0px; border-style: initial; border-top-width: 0px; float: left; text-align: justify;" title="article-2014359-0CFF019100000578-550_634x414" width="300" /><br />
<div style="text-align: justify;">बुधवार को हुए श्रृंखलाबद्ध धमाकों से हुई तबाही को गुरूवार की सुबह सुबह अखबारों में देख मन हिल गया। लाशों की तस्वीरें, घायलों के कराहते चेहरे, घटनास्थल पर पड़े चिथड़े दिनभर आंखों के सामने घूमते रहे। नेताओं के रुटीन, खोखले सांत्वना भरे बयानों की तरफ तो नज़र घुमाने की भी इच्छा न हुई। हर धमाके या आतंकी हमले के कुछ दिनों तक यही चलता रहता है। अगले दिन शुक्रवार को अखबारों में पढ़ा- "फिर पटरी पर लौटी जिंदादिल मुंबई", "नए फौसले के साथ काम पर लौटे मुंबईवासी", "आतंक के मुंह पर तमाचा" जैसे शीर्षकों से अखबार सजे हुए थे। पढ़कर अच्छा लगा पर याद आया २००६ के हमलों के अगले दिन भी ऐसी ही खबरें अखबारों में छपी थी। मुंबई हो या कोई अन्य शहर जहां ऐसे हादसे हुए हों, वहां जिंदगी कुछ ही दिनों में पटरी पर आ जाती है। क्योंकि इस आपाधापी भरे जीवन में इंसान चाहकर भी नहीं रुक पाता। हां, लोगों में पीड़ितों के प्रति सहानुभूति है, वे उनका दर्द महसूस करते हैं। हमलावरों के साथ ही अशक्त सरकार के प्रति रोष भी है, कहीं डर भी है और साथ में है साहस आगे बढ़ने का। घायलों की स्थिति उन्हें द्रवित करती हैं। वे रुकना चाहते हैं पर जिंदगी की जिम्मेदारियां उनके कदम आगे ढकेल देती है। परंतु ऐसे हमलों के बाद नागरिकों द्वारा डर को पछाड़ते हुए जिंदादिली से आगे बढ़ना आतंक के मुंह पर तमाचा भी है। जनता अपने इस हौसले भरे कदम के साथ यह जताती है कि हम कमज़ोर नहीं। तुम आतंक फैला सकते हो पर हमारे हौसले के आगे ये बहुत छोटे हैं। इस तरह बुधवार के हमलों के बाद अगले दिन मुंबई का पटरी पर लौटना आतंकियों को करारा जवाब था।</div><div style="text-align: justify;"><br />
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</div><br />
<div style="text-align: justify;">अब प्रश्न उठता है कि सरकार कब इन हिसंक तत्वों के गाल पर तमाचा जडेगी। कब आतंकियों को ये संदेश देगी कि आइंदा हमला करने की योजना भी बनाई तो अपनी खैर मनाना। जरा सोचिए क्या बीत रही होगी १३ जुलाई को हमले में मारे गए उन बेगुनाहों के परिवारवालों पर। उनके लिए तो जिंदगी मानो थम सी गई है। बाहर दुनिया चलायमान है, नेताओं की जुबानें चल रही हैं, आतंकियों की गोलियां चल रही हैं मगर उनके लिए जिंदगी उस एक पल में रुक गई है। जो घायल हुए हैं, उन पर क्या बीतती होगी जब वे टीवी पर घायलों को मुआवजे देने की खबर सुनते होंगे? क्या हमारे जान की कीमत चंद रुपये हैं। क्यों गया मैं उस जगह। काश घर में होता। क्या ऐसी कोई जगह है जहां मैं सुरिक्षत महसूस कर सकता हूं? कहीं इस अस्पताल में भी तो बम नहीं रखा है। ऐसे न जाने कितने प्रकार के सवाल बिस्तर पर लेटे उस घायल में मन में चलते होंगे। पर ये सवाल क्या सरकार चलाने वालों के मन में आते होंगे?</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">शायद नहीं। क्योंकि अगर आते होते तो ५ साल पहले मुंबई में खूनी खेल खेलने वाला कसाब अब तक जिंदा नहीं होता। अफजल गुरू जैसे दहशतगर्द को अब तक सजा मिल गई होती। इन हमलावरों को सजा न देकर सरकार क्या संदेश देना चाहती है कि आइए हमला करिए और चैन से यहां रहिए। पांच साल पहले जब मुंबई हमला हुआ तब कहा गया कि चूक हुई है। चूक होना अलग बात है और उस चूक को न सुधारना दूसरी बात। हमले की वजह चूक थी पर कसाब को तत्काल फांसी देकर ये संदेश दिया जा सकता था कि हम पर हमला करने वाले का यही हश्र होता है। पर कसाब का अब तक जिंदा रहना ही आतंकियों के हौसले को बढ़ाने के लिए काफी है। मुंबई हमले २००६ में मारे गए लोगों के परिजन जब कसाब को जिंदा देखते होंगे, अखबारों में उस पर खर्च होती भारी मात्रा की खबर पढ़ते होंगे तो उनके दिल टूट जाते होंगे। लोकतंत्र और सरकार पर से तो उनका भरोसा उठ जाता होगा। आप ही बताइए क्या यही कसाब ९/११ के हमलों में अमेरिका में पकड़ा गया होता तो क्या वो अब तक जिंदा रहता। बिलकुल नहीं। उसे तो कबकी फांसी मिल चुकी होती।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">फिर आखिर भारत आतंकवाद के मोर्चे पर कोई करारा जवाब देने से क्यों हिचकता है। अमेरिका की तरह पाकिस्तान में घुसकर अपने दुश्मन को मारने की बात छोड़िए। अपने देश में खून की होली खेलने वाले हत्यारों को सजा देकर तो अपनी दृढ़ता दिखाई जा सकती है। अब तो बस आशा ही की जा सकती है कि कोई तो ठोस कदम भारत की तरफ से उठाया जाएगा। आतंकवाद का खात्मा कोई रातों रात या चंद दिनों में नहीं हो सकता। यह भी सत्य है कि कितनी भी चौकस व्यवस्था हो इतने बड़े देश के हर एक गली-मोहल्ले को सुरक्षित नहीं किया जा सकता किंतु आतंकवाद के खिलाफ छोटे-छोटे ठोस कदमों को बढ़ाकर पीड़ित जनता के घावों पर मरहम तो लगाया जा सकता है।</div></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-52029105057349500312011-06-21T22:37:00.000+05:302011-06-21T22:37:02.955+05:30न जाना उस शिविर लाडो (व्यंग्य)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: small;">सुबह की गरमागरम का चाय बिना किसी चटखारे खबर के बेस्वाद लगती है। चाय की चुस्कियां लेते हुए अखबार में किसी मजेदार खबर की तलाश में नजरें इस पन्ने से उस पन्ने घुमाए जा रहे था कि एक खबर पर नजर पड़ी। "कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं व नेताओं से मना किया है कि वे बाबा रामदेव के शिविर में न जाएं"। इस खबर को पढ़ते ही मन में कुछ मज़ेदार पात्र उभरने लगे। आप सब "न आना इस देस लाड़ो" धारावाहिक से वाकिफ तो होंगे और इसकी सबसे चर्चित पात्र अम्माजी से भी। बस इस फरमान को सुनकर ऐसा लगा जैसे मानो कांग्रेस अम्माजी की तरह अपनी लाडो (कार्यकर्ताओं) को समझा रही हो कि "न जाना उस शिविर लाडो"। </span><br />
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<span style="font-size: small;"><a href="http://sumityadav.jagranjunction.com/files/2011/06/naa-aana-iss-des-laado-1-209x300.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="naa-aana-iss-des-laado 1" border="0" class="alignleft size-medium wp-image-333" height="300" src="http://sumityadav.jagranjunction.com/files/2011/06/naa-aana-iss-des-laado-1-209x300.jpg" title="naa-aana-iss-des-laado 1" width="209" /></a>कांग्रेस लोकतंत्र का चोगा ओढ़े और हाथ में अनुशासन का डंडा लिए अपनी लाडो से कहती है- "लाडो, म्हारे को पता है कि तुम लोगों में से बहुत उस बाबा रामदेव के शिविर में जाया करते थे, पर एक बात म्हारी आज से साफ-साफ समझ ले लाडो, आज से उस बाबा के शिविर के बाहर भी तुम में से कोई दिखाई दी, तो म्हारे से बुरा कोई ना होगा। योगा -वोगा जो तुम सबणे करणा है सो यही करो।" </span><br />
<span style="font-size: small;"><br />
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<span style="font-size: small;">कुछ लाडो विद्रोही थीं वे बोल पड़ी- "अम्माजी, योग तो सिर्फ शिविर में होता है, बाबा से जो हमारा नाता है वो क्या आपके एक फरमान से हम तोड़ लें।" ऐसे विद्रोही तेवर अम्मजी को सहन न हुए और वे बोलीं " मतलब लाडो थारे को भी योग का रोग लग गया। म्हारे को पता था एक दिण ऐसा ही होगा। म्हारी लाडो अब म्हारे से जबान चलावेगी। बड़ा बुरा होवे ये योग का रोग। क्यूं लाडो वो बाबा तेरे घर के सामने तांडव करे है, थारी अम्माजी के सिर में दर्द पैदा करे है और तू क्या उस बाबा के शिविर में जाने जिद करे है। पता नहीं उस बाबा ने योग सिखाते सिखाते कौण सी जड़ी-बूटी म्हारी लाडो को पिला दी है कि अब तू म्हारे से बैर पाल रही है। इसीलिए मैं शुरू से ऐसी लाडो (कार्यकर्ताओं) के जन्म खिलाफ थीं जो परिवार का नाम खराब कर सके हैं। अब ध्यान से सुन लाडो म्हारी बात आखिर बार। अगर तन्ने यहां रहना है तो म्हारी बात माननी पड़ेगी वरना आगे जो होगा वो सोच ले।" </span><br />
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<span style="font-size: small;">लाडो बोली "ना, अम्माजी मैं कब बोली मैं आपकी बात ना मानूंगी। पर दिक्कत है ये है अम्माजी कि बाबा ने रोग का ऐसा रोग लगाया है कि जब तक सुबह १ घंटे शरीर को आड़ा-टेढ़ा न करूं शरीर दर्द करता है। " </span><br />
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</span><br />
<span style="font-size: small;"><a href="http://sumityadav.jagranjunction.com/files/2011/06/yoga-150x150.gif" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="yoga" border="0" class="alignleft size-thumbnail wp-image-334" height="150" src="http://sumityadav.jagranjunction.com/files/2011/06/yoga-150x150.gif" title="yoga" width="150" /></a>अम्माजी खुश होते हुए बोली "अरी बांवरी, ये बात थी तो पहले बोलणा था ना, मैं न जाणे क्या क्या समझ रही थी थारे बारे में म्हारी लाडो। योगा सीखणे खातिर किसी को बुलवा ले, अरे योग सिखाणे वालो की कमी है क्या। वो कौन सी लड़की है जो फिलम में आती है, साथ में योगा भी करती है हां- शिल्पा शेट्टी, उससे सीख लो वो कैसी रहेगी। " ना वो ना आ पाएगी अम्माजी, वो तो घर-गृहस्थी और क्रिकेट में ही व्यस्त रहती है, लाडो बोली। </span><br />
<span style="font-size: small;"><br />
</span><br />
<span style="font-size: small;">"ऐसा के, पर उसकी डीवीडी तो आवे है ना बाजार में वो ले आना, सारा परिवार उसे बड़े परदे पर देखकर मिलकर योग करेगा, इतना बड़ा मैदान है म्हारा। वैसे सच बोलूं तो म्हारे भी दिल में योग सीखने की इच्छा बहुत समय से थी, क्या पता कल म्हारे को भी कहीं आमरण अनशन करना पड़ा गया तो उन ९-१० दिन योग करके ही टाइमपास करना पड़ेगा ना। रुक लाडो अभी छोटू से डीवीडी मंगवा लेती हूं, अरे छोटूं... कहां मर गया, जा भई जल्दी शिल्पा शेट्टी की योगा की डीवी ले आ। " </span></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-7232830364588667370.post-85861409765858067092011-06-19T22:59:00.002+05:302011-06-19T22:59:58.682+05:30डैडी मुझसे बोला... (लघुकथा)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">हालांकि आज फादर्स डे है और मैं पिता के पितृत्व, उनके त्याग और प्यार को एक लेख के रूप में प्रस्तुत चाहता था लेकिन ४-५ दिनों पहले आए एक एसएमएस ने मेरे मन को कुछ और लिखने की तरफ आकृष्ट किया। यह था वह एसएमएस-<br />
<b><i>जनरेशन गैप का सबूत-<br />
</i></b><br />
<b><i>१९८८ में आमिर खान गाता है- पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा। </i></b><br />
<b><i>२०११ में इमरान खान गाता है - डैडी मुझसे बोला तू गलती है मेरी। </i></b><br />
उस समय तो इस एसएमंएस तो देख थोड़ी हंसी आई लेकिन इसके भीतर छुपे एक अनकहे अर्थ को मैंने महसूस किया और उसे एक लघुकथा का रूप देकर आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं- <b>" डैडी मुझसे बोला.... (लघुकथा)"</b><br />
<a href="http://sumityadav.jagranjunction.com/files/2011/06/watch-300x282.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="watch" border="0" class="alignleft size-medium wp-image-329" height="188" src="http://sumityadav.jagranjunction.com/files/2011/06/watch-300x282.jpg" title="watch" width="200" /></a>"डैडी मुझसे बोला तू गलती है मेरी..." गुनगुनाते हुए राहुल सीढ़ियों से नीचे उतरा। राहुल को देखते ही राहुल के पापा शर्मा जी मुंह बिचकाते हुए बोले- जब देखो कोई न कोई वाहियात गाना ही जुबान पे रहता है। कभी कुछ पढ़ाई के नोट्स भी गुनगुना लिया करो साहबज़ादे। राहुल उनकी बातों को अनसुना कर जाने लगा। तभी उसे टोकते हुए शर्माजी बोले- क्या ज़माना आ गया है। बाप यहां गला फाड़कर फाड़कर चिल्ला रहा है और बेटे के कान में जूं तक नहीं रेंग रही। एक हम थे जो अपने पिताजी की एक आवाज़ पर उनके सामने हाजिर हो जाया करते थे। तुम्हारे ऐसे लक्ष्ण देखकर तो लगता है तू सचमुच गलती है मेरी। १०० नालायक मरे होंगे तब भगवान ने तुझे मेरे घर भेजा होगा। तेरी उम्र में हम अपने पिताजी के रोज पैर छुआ करते थे। अरे नालायक सालभर तो पैर नहीं छूता कम से कम आज फादर्स डे के दिन ही पैर छू लेता, जब देखो तब बस पैसे मांगते रहता है जैसे मैं पापा नहीं कोई एटीएम हुआ। तभी राहुल आईपॉड को बंद करते हुए बोला- पापा अच्छा याद दिलाया आपने, जरा ५०० रुपए देना। दांत पीसते हुए शर्माजी ने पैसे दिए। राहुल जाते हुए बोला- डैडी टेबल पर आपकी कुछ चीज छूट गई है, याद से ले लेना। शर्माजी टेबल के पास पहुंचे तो देखा वहां एक घड़ी रखी है साथ मैं एक कार्ड था- लव यू डैडी, मैं मन से आपकी बहुत इज्जत करता हूं और मुझे इसे दिखाने की जरूरत नहीं। एक छोटी सी गिफ्ट आपके लिए अपने बचाए हुए पॉकेट मनी से। शर्माजी हाथ में घड़ी और कार्ड लिए मुस्कुरा ही रहे थे कि पीछे से शर्माजी के पिताजी की आवाज आई- बेटा, जरा आज का अखबार तो देना। शर्माजी के चेहरे पर छाई मुस्कान ने १८० डिग्री की करवट ले ली। वे झिड़कते हुए बोले- पिताजी, आपको मैं ही मिलता हूं क्या सुबह से, आपकी बहू से कह दो वो दे देगी।</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/17294420381781891394noreply@blogger.com3