प्रिय-अप्रिय पेट्रोल,
उपरोक्त संबोधन के लिए क्षमा चाहूंगा लेकिन तुम्हारा व्यवहार प्रिय व अप्रिय दोनों रहा है इसलिए मेरे लिए तय कर पाना मुश्किल हो रहा था कि कौन सा शब्द तुम्हारे लिए उपयुक्त रहेगा। तुम्हारे 3 रुपए सस्ते होने की घोषणा सुनते ही मेरे हाथ पांव फूल गए हैं। पिछले दो महीनों से तुम अप्रत्याशित रूप से सस्ते हो रहे हो। पहले दो रूपए, फिर एक रुपए और अब तुम तीन रुपए और सस्ते हो गए हो। तुम्हारी गिरती राशि ने मेरा राशिफल बिगाड़ दिया है। तुम हमेशा एक खूंखार गेंदबाज रहे हो जो बल्लेबाजों के स्टंप उखाड़ते रहा है, लेकिन तुम्हारे द्वारा फेंकी गईं तीन फुलटॉस गेंदों ने मेरे माथे पर चिंता की पिच बना दी है। मुझे डर है कि इन फुलटास गेंदों के बाद कहीं तुम 10-15 रुपए की यार्कर गेंद डालकर मेरी पारी समाप्त न कर दो। तुम्हारी प्रवृत्ति 5 रुपए महंगा होने के बाद 1 रुपए सस्ती होने की रही है, फिर अचानक अपने व्यवहार में ऐसा बदलाव क्यों?
तुम्हारा और मेरा नाता काफी पुराना रहा है, तुुम मेरे सुख-दुख के सच्चे साथी रहे हो। जब तुम्हारे दाम बढ़ते हुए 75 रुपए हुए तब मैंने अपने मित्रों से जन्मदिन के उपहार के रूप में पेट्रोल की मांग की। मेरी प्रेमिका तक ने मुझे बर्थडे गिफ्ट में पेट्रोल से भरा डिब्बा दिया लेकिन उसने उसके बाद मुझे कभी लिफ्ट नहीं दिया और अपनी जिंदगी से मेरा रोल कट कर दिया। ऐसे तन्हाई के आलम में तुम ही मेरे साथ थे, वो तुम ही थे जो मेरे हृदयविदारक शायरियां इत्मिनान से सुना करते थे। अगर तुम उस वजह से मेरे लिए सस्ते हुए जा रहे हो तो मित्र थम जाओ। तुम मेरे मित्र ही नहीं बल्कि मेरे गुरू भी रहे हो।
तुम्हारे दाम हमेशा बढ़ते रहे हैं। जिंदगी में आगे बढऩे का पाठ तुमने ही मुझे पढ़ाया। उस घटना के बाद मैं भी जिंदगी में आगे बढ़ गया हूं। तुम जिस तरह तरल हो और किसी भी आकार में ढल जाते है मैंने भी इससे प्रेरणा लेकर अपने अंदर वो तरलता विकसित कर ली कि अब मैं कहीं भी फिट हो जाता हूं, क्योंकि जो फिट है वही हिट है। महंगे होने का गुुण भी मैंने तुमसे सीखा है, पेट्र्रोल के बढ़ते दामों की दुहाई देकर मैंने अपनी तनख्वाह अच्छी खासी बढ़वा ली थी और मैं अब आफिस के महंगे कर्मचारियों में शुमार हूं, क्योंकि जो महंगा है वही चंगा है। कुल मिलाकर अपनी जिंदगी बिलकुल सेट थी, लेकिन जैसे ही तुम्हारे दाम दो रुपए घटे बॉस की वक्रदृष्टि मेरी तन्ख्वाह पर पड़ गई और मेरा सालाना वेतनवृद्घि रोक दिया गया। और अब तीन रुपए सस्ते होकर तो तुमने मुझ पर कहर ही ढा दिया, अब तो तनख्वाह कम होने की चिंता सताने लगी है।
तुम्हारे महंगे दाम को देखते हुए मैंने खुद को ढाल लिया था, दाम घटने के बावजूद मैं अब भी पुराने दर पर ही भुगतान कर रहा हूं, ताकि महंगे पेट्रोल की आदत बनी रहे। इसके अतिरिक्त दूरदर्शी सोच दिखाते हुए मैंने तो भविष्य में तुम्हारे शतकीय अभिवादन की तैयारी भी कर ली है। इसलिए तुम रुको नहीं, अविरल नदी की तरह बहते रहो, दाम बढ़ाते रहो। लेकिन यदि तुम्हारे मन में प्रायश्चित की भावना आ गई है और तुम आगे भी इसी तरह सस्ते होते रहना चाहते हो तो मुझे अभी से बता दो, मेरे जीवन में अब भी फेरबदल की काफी गुंजाइश है। लेकिन अंत में तुमसे वादा चाहता हूं कि तुम 10-15 रुपए का अकस्मात् आघात मुझ पर नहीं करोगे। उत्तर की प्रतीक्षा में।
तुम्हारा मित्र
-सुमित
शनिवार, मई 04, 2013 |
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