"बाढ़-बाढ़ देखो, हजार बार देखो कि देखने की चीज है हमारा देश डुबा।" भारत में हर साल आने वाले बाढ़ को देखकर मेरा मन यही कह उठता है। वैसे तो हमारा देश कई तरह के बाढ़ में डूबा हुआ है जैसे- घोटालों की बाढ़, भ्रष्टाचार की बाढ़, महंगाई की बाढ़ लेकिन यहां मैं पानी के बाढ़ के बात कर रहा हूं। अभी कुछ ही हफ्तों पहले गर्मी से तिलमिला रही दिल्ली अचानक पानी में डूब गई। वैसे दिल्ली के यूं अचानक डूब जाने की खबर ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि इसके पीछे किसका हाथ हो सकता है। वैसे भगवान ने जो चीज कम दी है (दिमाग) उसका उपयोग कम ही करना चाहिए लेकिन क्या करें बात ही ऐसी है कि हमें सोचना पड़ गया। सबसे पहला शक तो मुझे कलमाड़ी पर ही हुआ पर वो तो पहले ही कॉमनवेल्थ का बहुत पैसा डकारकर दिल्ली को डुबो चुके हैं और दूसरी बार डुबाने का उनके पास अभी चांस नहीं है इसलिए उनको इसका जिम्मेदार नहीं माना जा सकता था। बहुत दिनो से खबरें आ रही थीं कि स्वर्गलोक में तिकड़म भिड़ाकर कुछ नेता वहां पहुंच गए हैं। पहले तो लगा कि शायद गड़बड़ वहीं से हुई है। लेकिन इन्द्रदेव से संपर्क करने पर पता चला कि अभी तो वहां स्थिति नियंत्रण में है लेकिन कुछेक नेता और आ गए वहां तिकड़म भिड़ाकर तो स्वर्ग को नरक बनते देर नहीं लगेगी। (वो क्या है ना "काले मेघा पानी तो बरसा" व्यंग्य लिखने के बाद से अपनी इंद्रदेव से जमने लगी है इसलिए कभी कभी संपर्क उनसे भी साध लेते हैं।)


अब मैं किसी और को ढूंढने लगा जिस पर शक किया जा सके। तभी शक की सुई मणिशंकर अय्यर के तरफ गई। वह भी उन लोगों में से हैं जो नहीं चाहते कि कामनवेल्थ गेम्स हों। कामनवेल्थ गेम्स के बारे में विवादास्पद बयान के बाद से तो उनके दर्शन ही नहीं हुए। अब लग रहा है शायद वो तपस्या करने चले गए थे ताकि गेम्स न होने की उनकी इच्छा पूरी हो। पर जिस तरह से गेम्स की तैयारियां चल रही हैं गेम्स हो पाएंगे ऐसा लगता तो नहीं। बेवजह ही अय्यरजी तपस्या करने चले गए, खैर अगर भगवान के पास एक्सचेंज ऑफर चल रहा हो तो अय्यरजी अपनी इच्छा को एक्सचेंज करा सकते हैं और उसके बदले कुछ मंत्री-वंत्री पद का इच्छा पूरी करवा सकते हैं। 


बाढ़  से जनजीवन तो अस्तव्यस्त हुआ लेकिन इसने गरीब और अमीर के बीच की खाई को कुछ समय के लिए कम कर दिया। बाढ़ में डूबी कार के कारण अमीरों को भी गरीबों की तरह घुटने तक भरे पानी में अपनी पतलून को मोड़कर घर पहुंचना पड़ा। क्योंकि पैसे से कार तो खरीदा जा सकता है लेकिन बाढ़ का पानी कम नहीं किया जा सकता। 


हर साल आने वाले बाढ़ को देखते हुए कुछ दूरदर्शी लोगों ने मोटरगाड़ी के अलावा नाव भी खरीदकर रख लिया था क्योंकि उन्हें पता था कि जहां दिल्ली डूबी, न तो गाड़ी काम आएगी न सायकिल। बस नाव ही है जो नैया पार लगाएगी। इसलिए जैसे ही दिल्ली डूबी सब अपनी-अपनी नाव लेकर निकल पड़े डूबी हुई सड़क पर सवारियों को पकड़ने। अब अमीर हो या गरीब सब एक नाव पर साथ बैठे हैं, मजबूरी के मारे। दिल्ली में नाव की इतनी उपयोगिता देखते हुए कई बैंकों ने तो अब नाव लोन भी शुरू करने का मन बना लिया है वहीं कुछ बड़े और अपने स्टेटस का ख्याल रखने वाले उद्योगपति तो जहाज लेने की फिराक में है। अरे कोई  इन्हें बताओ अगर जहाज दिल्ली में उतरवा भी लिया तो चलाएंगे कैसे। कहीं तंग गलियों में इनकी जहाज फंस गई तो ५-६ महीने नहीं निकलने वाली और ईद, दशहरा, दिवाली सब इसी जहाज पर मन जाएगा। वैसे मानसून के समय डूबी हुई दिल्ली को देखते हुए मोटरसायकिल कंपनियां भी नाव या मोटरबोट निर्माण में उतरने को आतुर हैं। मगर अभी समय की अल्पता के चलते ट्यूब ऑफर से ही काम चला रही हैं। एक मोटरसायकिल के साथ दो ट्यूब मुफ्त। मियां-बीवी सुबह लांग ड्राइव पर निकलें, शाम तक अगर दिल्ली डूबी हुई मिले तो गाड़ी कोने में टिकाएं और दोनों ट्यूब पहनकर तैर-तैरकर अपने घर पहुंच जाएं।


बाढ़ के कारण लगे जाम में सबकी गाड़ियां फंसी रही। इनमें मंत्रीजी की भी गाड़ी शामिल थी। अब और दिन मंत्री जी की गाड़ी सायरन बजाते, सबको साइड करते निकल जाती थी लेकिन अब बाढ़ का पानी तो सायरन की आवाज से साइड होने से रहा ना इसलिए वे मुंह लटकाए चिंतन करते हुए बैठे रहे। न...न..न... अगले घोटाले का चिंतन नहीं बल्कि गाड़ी से बाहर कैसे निकलें उसका चिंतन। अब बाहर निकले तो घात लगाए बैठे रिपोर्टर सवालों की फायरिंग से मार देंगे। और डूबती हुई कार में कब तक बचा जा सकता है। इसलिए मंत्रीजी ने धीरे से कार का दरवाजा खोला और घुटने तक भरे पानी में मुंह छिपाए धीरे धीरे चलने लगे। लेकिन पानी के अंदर छुपे एक उच्च श्रेणी के चिपकू पत्रकार ने उनका पैर पकड़ लिया। मंत्रीजी को लगा कि किसी जोंक ने पकड़ लिया है, उन्होंने छुड़ाने की कोशिश की लेकिन छुड़ा न पाए क्योंकि पकड़ने वाला जोंक से भी ज्यादा चिपकू किस्म का पत्रकार था। वह पत्रकार माइक और कैमरे जैसे खतरनाक हथियारों से लैस  था। इतने में बाकी रिपोर्टरो ने भी उन्हें घेर लिया। सबने अपनी माइक उनके मुंह के सामने टिका दीं। मंत्रीजी को बचने का कोई रास्ता नहीं दिखा, और उन्होंने मजबूरन  कहा- "अब हमें धर ही लिया है तो पूछिए क्या पूछना है"। 

एक पत्रकार ने पूछा- "मंत्रीजी आप इस बाढ़ के लिए किसको जिम्मेदार मानते हैं।" 

मंत्रीजी- "इस बाढ़ के लिए कामनवेल्थ गेम्स और कलमाड़ी दोषी हैं "

पत्रकारों ने आश्चर्यचकित होकर पूछा- "आप कैसे कामनवेल्थ गेम्स को दोषी ठहरा सकते हैं?"

मंत्रीजी- "अरे सोचना कैसा। आजकल तो सीजन ही चल रहा है कामनवेल्थ गेम्स और कलमाड़ी पर दोष मढ़ने का। जिसे देखो वही अपना दोष उन पर मढ़ दे रहा है। मलेरिया फैल रहा है तो कामनवेल्थ गेम्स दोषी। पीलिया हो गया तो कलमाड़ी दोषी। ट्रैफिक जाम है कामनवेल्थ गेम्स दोषी और अकाल पड़ गया तो भी कामनवेल्थ गेम्स दोषी। अरे भई, सीज़नल ऑफर चल रहा है हमने थोड़ा फायदा उठा लिया तो क्या बुरा किया।"

असंतुष्ट पत्रकार फिर उबल पड़े- "आप इस तरह बच नहीं सकते। आपको बताना ही होगा कि कौन जिम्मेदार है इस बाढ़ के लिए।"

मंत्रीजी- "ठीक है आप इस तरह नहीं मानने वाले। मैं इस बाढ़ के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार मानता हूं।"

पत्रकार फिर चौंक पड़े- "अब पाकिस्तान कैसे इस बाढ़ के लिए जिम्मेदार हो गया?"

मंत्रीजी- "अरे जब पाकिस्तान अपने यहां आई बाढ़ के लिए भारत को जिम्मेदार ठहरा सकता है तो क्या मैं देशभक्त होने के नाते दिल्ली में आई बाढ़ के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता। मैं चुप नहीं रहूंगा। मैं ईंट का जवाब पत्थर से दूंगा।"

पत्रकार फिर चिल्लाए- "आप ईंट का जवाब पत्थर से बाद में देते रहना पहले ये बताइए कि इस बाढ़ से निजात कैसे दिलाएंगे आप?"

मंत्रीजी झल्लाते हुए बोले- "अरे क्या आप लोग इस बाढ़ के पीछे पड़े हुए हैं। ऐसे बाढ़ तो आते-जाते रहते हैं। आप जाइए और भ्रष्टाचार और घोटालों की बाढ़ से देश को बचाइए। मुझे बख्शिइए।"

पत्रकार बोले- "अरे आपको कैसे बख्श दें मंत्रीजी। भ्रष्टाचार और घोटालों की बाढ़ भी तो आप ही लाते हो। अब हमारे बाकी सवालों के जवाब दीजिए।"

(फंसे हुए मंत्रीजी सकपकाए से खड़े रहे और पत्रकारों के सवालों की बाढ़ में डूबते रहे। )