सर्वप्रथम मैं अप्सरा सी सुंदर न... न... साक्षात अप्सरा कैटरीना कैफ जी के फूलों से कोमल-कोमल गालों पर मुहांसों का वर्णन करने के लिए क्षमा चाहता हूं। आशा करता हूं कैटरीना जी के प्रशंसक मेरे पीछे नहा- धोकर नहीं पड़ेंगे। सच कहता हूं जिस दिन कैटरीनाजी के खूबसूरत गालों में एक छोटा सा मुंहासा भी हो गया, मैं पूरे देश में मुंहासे उन्मूलन कार्यक्रम चला दूंगा। परंतु यहां जिस कैटरीना की मैं बात करने जा रहा हूं वो शीला वाली कैटरीना नहीं, वरन हमारी कैटरीना हैं। हमारी कैटरीना जो हमारे आसपास है, जो कदम-कदम पर हमारे साथ है, हमारी काली-कलूटी कैटरीना। दरअसल हमारे शहर की सड़क ही हमारी कैटरीना है।
अब इससे पहले आप पूछें कि हमने सड़क को कैटरीना की उपाधि क्यों दी तो हम याद दिला दें जैसे लालू ने एक जमाने में कहा था कि बिहार की सड़कें हेमा मालिनी के गालों की तरह चिकनी बनेंगी परंतु वो कितनी चिकनी बन पाई ये तो सब जानते हैं। हमारे शहर रायपुर के राजधानी बनने के बाद बाकी के रंग-रोगन कार्य के साथ सड़क निर्माण का कार्य भी जोर-शोर से चहुंओर शुरू हो गया। चिकनी चिकनी सड़क को बनता देख हमारे मन प्रफुल्लित हो उठता कि हो न हो ये सड़क बिलकुल हेमा मालिनी के गालों की तरह चिकना बनेगी पर फिर यह विचार हमने त्याग दिया क्योंकि अब हेमाजी को गुजरे जमाने की अप्सरा हो गई ना।
तो हमने तय किया कि अब हमें हेमाजी नहीं कैटरीना के गालों की तरह ही शहर की सड़कें चाहिए। कैटरीना आज की अफ्सरा हैं। वैसे भी कैटरीना और रायपुर का पुराना नाता है, दोनों में कई समानताएं भी हैं। जी नहीं, कैटरीनाजी कभी रायपुर नहीं आई। लेकिन जब वे सलमान खान के साथ गलबाहे डाले घूमते हुए जब बॉलीवुड में नई-नई आई थीं बस तभी हमारा शहर भी नया-नया राजधानी बना ही था। उस समय दोनों ही गुमनाम से थे। फिर धीरे धीरे दोनों ने सफलता की सीढ़ियां चलना चालू किया। दोनों दिन-प्रतिदिन प्रगति करते रहे। और आज आलम यह है कि कैटरीना कैफ महंगी अभिनेत्रियों में शुमार हैं और रायपुर महंगे शहरों में। कैटरीना तो हमारे पहुंच से दूर थी ही, अब इस महंगे रायपुर में जीने के लिए जरूरी चीजें भी हमसे दूर हो गई हैं।
अब ले चलता हूं आपको अपने शहर के सडकों की तरफ। पिघलता हुआ गरम-गरम डामर और उसे समतल करता रोड रोलर अहा! क्या नजारा रहता था। नई-नई चिकनी सड़क बिलकुल कैटरीना के गालों की तरह चिकनी। हमें तो मानो प्यार हो गया था इससे। उसी समय नई नई गाड़ी ली थी ऊपर से नई नई सड़क, क्या जोड़ी थी। चिकनी सड़कों पर फर्राटा भरती हमारी गाड़ी। बहुत बार मैं इन चिकनी सड़कों पर गिरा भी पर दर्द नहीं हुआ, प्यार में जो था। पर कुछ समय बाद हमारी कैटरीना के चिकने गालों पर मुहांसे हो गए। बहुत सारे मुंहांसे। चिकनी सड़क में इतने गड्ढे हो गए कि गाड़ी पे फर्राटा भरना तो दूर, चलना भी दूभर हो गया। समझ नहीं आता था सड़क पर गड्ढे हैं या गड्ढों पर सड़क। पता नहीं किस कलमुहें ने नजर लगा दिया हमारे शहर की चिकनी सड़क को। किस जलनखोर को हमारे सड़क के सौंदर्य से ईर्ष्या हो गई। इन गड्ढों की वजह से मैं बहुत बार गिरा और इस बार बहुत जोरदार चोटें भी खाईं। जिस चिकनी सड़क पर हम आकर्षित हुआ करते थे अब उनसे डर लगने लगा था। मैंने आखिर में सड़क से ब्रेकअप कर लिया और पैदल चलने की कसम खा ली।
बहुत समय बाद मेकअप वालों अर्थात सड़क निर्माण विभाग को कैटरीना के गालों की चिंता हुई। बस फिर क्या, शुरू हो गया मेकअप से मुहांसों को ढकने का काम। पर इससे भी कुछ खास बात न बनी। पता नहीं कैसा सस्ता मेकअप लगाया था जो कुछ दिनों में ही निकल गया। ये सिलसिला न जाने कितने सालों तक चलता रहा पर हर बार खराब क्वालिटी के मेकअप के कारण मुहांसे फिर उभरने लगते। हमारी कैटरीना के गालों की पहली वाली सुंदरता वापस न आ सकी। पहले तो प्यार में आकर हम गाड़ी से सड़क पर गिर भी जाया करते थे पर अब तो न.. न.. न..। मुहांसे भरी सड़क पर अब हिचकोले खाते हुए गाड़ी चलाने की हमने विवशतावश आदत बना ली थी।
खैर अच्छी बात यह है कि पिछले साल नवंबर में हमारे राज्य के दस वर्ष पूरे हुए। जश्न हुआ, समारोह हुए, योजनाएं भी बनी जिसमें हमारे मुहांसे भरेसड़क को वापस कैटरीना के गालों की तरह चिकना बनाने की योजना भी थी। बस फिर क्या था, पिघलते हुए डामर की खुशबू ने हमारी सांसों में उतरना शुरू कर दिया। रोडरोलर से चिकनी हुई सड़क फिर आकर्षित करने लगी। मेकअप के पश्चात चिकनी और सुंदर हुई सड़क पर हमारा दिल फिर आ ही गया। अब इस बार इसकी खूबसूरती कब तक रहेगी ये तो मेकअप वाले ही जानें पर अभी तो मैं चलता हूं अपना प्यार जताने, चिकनी चिकनी सड़क पर फर्राटा भरने।
अब इससे पहले आप पूछें कि हमने सड़क को कैटरीना की उपाधि क्यों दी तो हम याद दिला दें जैसे लालू ने एक जमाने में कहा था कि बिहार की सड़कें हेमा मालिनी के गालों की तरह चिकनी बनेंगी परंतु वो कितनी चिकनी बन पाई ये तो सब जानते हैं। हमारे शहर रायपुर के राजधानी बनने के बाद बाकी के रंग-रोगन कार्य के साथ सड़क निर्माण का कार्य भी जोर-शोर से चहुंओर शुरू हो गया। चिकनी चिकनी सड़क को बनता देख हमारे मन प्रफुल्लित हो उठता कि हो न हो ये सड़क बिलकुल हेमा मालिनी के गालों की तरह चिकना बनेगी पर फिर यह विचार हमने त्याग दिया क्योंकि अब हेमाजी को गुजरे जमाने की अप्सरा हो गई ना।
तो हमने तय किया कि अब हमें हेमाजी नहीं कैटरीना के गालों की तरह ही शहर की सड़कें चाहिए। कैटरीना आज की अफ्सरा हैं। वैसे भी कैटरीना और रायपुर का पुराना नाता है, दोनों में कई समानताएं भी हैं। जी नहीं, कैटरीनाजी कभी रायपुर नहीं आई। लेकिन जब वे सलमान खान के साथ गलबाहे डाले घूमते हुए जब बॉलीवुड में नई-नई आई थीं बस तभी हमारा शहर भी नया-नया राजधानी बना ही था। उस समय दोनों ही गुमनाम से थे। फिर धीरे धीरे दोनों ने सफलता की सीढ़ियां चलना चालू किया। दोनों दिन-प्रतिदिन प्रगति करते रहे। और आज आलम यह है कि कैटरीना कैफ महंगी अभिनेत्रियों में शुमार हैं और रायपुर महंगे शहरों में। कैटरीना तो हमारे पहुंच से दूर थी ही, अब इस महंगे रायपुर में जीने के लिए जरूरी चीजें भी हमसे दूर हो गई हैं।
अब ले चलता हूं आपको अपने शहर के सडकों की तरफ। पिघलता हुआ गरम-गरम डामर और उसे समतल करता रोड रोलर अहा! क्या नजारा रहता था। नई-नई चिकनी सड़क बिलकुल कैटरीना के गालों की तरह चिकनी। हमें तो मानो प्यार हो गया था इससे। उसी समय नई नई गाड़ी ली थी ऊपर से नई नई सड़क, क्या जोड़ी थी। चिकनी सड़कों पर फर्राटा भरती हमारी गाड़ी। बहुत बार मैं इन चिकनी सड़कों पर गिरा भी पर दर्द नहीं हुआ, प्यार में जो था। पर कुछ समय बाद हमारी कैटरीना के चिकने गालों पर मुहांसे हो गए। बहुत सारे मुंहांसे। चिकनी सड़क में इतने गड्ढे हो गए कि गाड़ी पे फर्राटा भरना तो दूर, चलना भी दूभर हो गया। समझ नहीं आता था सड़क पर गड्ढे हैं या गड्ढों पर सड़क। पता नहीं किस कलमुहें ने नजर लगा दिया हमारे शहर की चिकनी सड़क को। किस जलनखोर को हमारे सड़क के सौंदर्य से ईर्ष्या हो गई। इन गड्ढों की वजह से मैं बहुत बार गिरा और इस बार बहुत जोरदार चोटें भी खाईं। जिस चिकनी सड़क पर हम आकर्षित हुआ करते थे अब उनसे डर लगने लगा था। मैंने आखिर में सड़क से ब्रेकअप कर लिया और पैदल चलने की कसम खा ली।
बहुत समय बाद मेकअप वालों अर्थात सड़क निर्माण विभाग को कैटरीना के गालों की चिंता हुई। बस फिर क्या, शुरू हो गया मेकअप से मुहांसों को ढकने का काम। पर इससे भी कुछ खास बात न बनी। पता नहीं कैसा सस्ता मेकअप लगाया था जो कुछ दिनों में ही निकल गया। ये सिलसिला न जाने कितने सालों तक चलता रहा पर हर बार खराब क्वालिटी के मेकअप के कारण मुहांसे फिर उभरने लगते। हमारी कैटरीना के गालों की पहली वाली सुंदरता वापस न आ सकी। पहले तो प्यार में आकर हम गाड़ी से सड़क पर गिर भी जाया करते थे पर अब तो न.. न.. न..। मुहांसे भरी सड़क पर अब हिचकोले खाते हुए गाड़ी चलाने की हमने विवशतावश आदत बना ली थी।
खैर अच्छी बात यह है कि पिछले साल नवंबर में हमारे राज्य के दस वर्ष पूरे हुए। जश्न हुआ, समारोह हुए, योजनाएं भी बनी जिसमें हमारे मुहांसे भरेसड़क को वापस कैटरीना के गालों की तरह चिकना बनाने की योजना भी थी। बस फिर क्या था, पिघलते हुए डामर की खुशबू ने हमारी सांसों में उतरना शुरू कर दिया। रोडरोलर से चिकनी हुई सड़क फिर आकर्षित करने लगी। मेकअप के पश्चात चिकनी और सुंदर हुई सड़क पर हमारा दिल फिर आ ही गया। अब इस बार इसकी खूबसूरती कब तक रहेगी ये तो मेकअप वाले ही जानें पर अभी तो मैं चलता हूं अपना प्यार जताने, चिकनी चिकनी सड़क पर फर्राटा भरने।
रविवार, जनवरी 30, 2011 |
Category:
व्यंग्य
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