छत्तीसगढ़ में ग्राम सुराज अभियान शुरु हो चुका है और मुझे इस दौरान गांव जाने की बेहद इच्छा थी। यूं तो ग्राम सुराज की खबरें टीवी, अखबारों में आती ही रहती हैं और मैं उनके जरिए भी गांवों की विकासगाथा सुन सकता था, मगर हम थोड़े अलग किस्म के बंदे हैं। हमें हर चीज लाइव देखना पसंद है, जैसे क्रिकेट मैच का मजा तो टीवी पर भी लिया जा सकता है, लेकिन स्टेडियम पर अपनी आंखों के सामने चौके-छक्के बरसते देखने का आनंद ही कुछ और ही है। रसखान ने कहा था कि- ''रसखान कबहु इन आंखिन सो, ब्रज के बन-बाग, तड़ाग निहारौ''। रसखान अपनी आंखों से ब्रज को निहारने लालायित थे। उसी तरह हम भी अपने गांव के खेत-खलिहान, विकास और सुराज को देखने लालायित थे। अपनी इसी पिपासा को शांत करने और ग्राम सुराज लाइव देखने हम अपने गांव धमक पड़े।
गांव में कदम रखते ही मित्र से मुलाकात हो जाए, इससे अच्छी कोई बात हो ही नहीं सकती। अपने मित्र समारू से मिलते ही हमने कहा- मित्र समारू बधाई हो, ग्राम सुराज अभियान शुरु हो चुका है, आज तो सुराज दल तुम्हारे यहां आने वाला है। हमारे मित्र ने पूछा- ग्राम सुराज? ये क्या होता है भई। मैने कहा- वही ग्राम सुराज अभियान, जो सरकार चलाती है और ऑन द स्पॉट सभी समस्याओं का निराकरण करती है। और जो समस्याएं बच जाती हैं उनको भी निपटाने का वो कमिटमेंट करती है। और एक बार जो सरकार ने कमिटमेंट कर दी फिर वो अपने आप की भी नहीं सुनती। समारू कुछ सोचते हुए बोला- अच्छा, सुराज मतलब होता क्या है? मैंने कहा- गांव में रहने का यही प्राब्लम है, हर चीज समझाना पड़ता है। हिंदी की कक्षा में संधि-विच्छेद पड़े हो ना। समारू सिर हिलाते हुए हां, बोला। मैंने कहा- बस, अब देखो सु+राज= सुराज। सुराज का मतलब होता है- अच्छा राज। जहां विकास ही विकास हो।
समारू फिर सकुचाते हुए बोला- ये तो ठीक है, पर विकास का मतलब क्या है। मैंने झुंझलाते हुए उत्तर दिया- विकास मतलब इंग्लिश में डेव्हलपमेंट। इतना सुनते ही समारू जोर से बोला- ऐसे बोलो ना डेव्हलपमेंट, क्या कबसे हिन्दी में विकास-विकास की रट लगा रहे थे। तो तुम्हारा मतलब कि सुराज मतलब, अच्छा राज, जहां विकास हो, समस्याओं का निराकरण हो, खुशहाली आदि। मैं खुश होते हुए बोला- सही समझे समारू। समारू फिर बोला- अच्छा किया भाई, बता दिए। वरना मैं तो इतने समय से सुराज का कुछ और ही मतलब निकाल कर बैठा था। मैंने आश्चर्य से पूछा- ऐसा क्या मतलब निकाला था तुमने। समारू बोला- मैं तो अब तक सोच रहा था कि सुराज = सुर+आज। मतलब आओ आज सुर लगाते हैं। और ग्राम सुराज का मतलब समझ रहा था कि आओ आज गांव पहुंचकर विकास का सुर अलापते हैं। मेरी तो मत मारी गई थी, अच्छा हुआ मित्र जो आज तुमने मुझे इसका मतलब समझाया। पिछली बार तो आम के पेड़ की घनी छांव में चौपाल लगाकर जब विकास का सुर अलापा जा रहा था तो सुराज दल वालों ने मुझे भी कुछ कहने के लिए बोला। मैं समझा मुझे भी गाने के लिए बोल रहे हैं, तो मैंने मना कर दिया। क्योंकि गाने के मामले में तो मैं कौवों को भी फेल कर देता हूं। धत्ते तेरी की, वो मुझसे मेरी समस्याएं पूछ रहे थे, और मैं अभागा क्या समझ बैठा।
मौके की नजाकत को भांप मैंने तुरंत श्री मैथीलीशरण जी की कविता दे मारी- ''नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो''। निराश समारू बोला- क्या काम करूं। मैंने कहा- पिछली बार चूक गए, कोई बात नहीं। इस दफे जब सुराज वाले तुम्हारे गांव आएंगे तो उन्हें अपनी समस्याओं की टोकरी पकड़ा देना। समारू आश्चर्य से पूछा- उससे क्या होगा। मैंने सरकारी मशीनरी, गजब की मशीनरी है। सरकारी मशीनरी में एक सिरे से समस्याओं की टोकरी जाती है और दूसरे सिरे से निराकरित होकर निकलती है। जैसे हम धोबी को गंदे कपड़े धोने देते हैं, तो वो उसी कपड़े को धोकर, चकाचक करके हमें वापस करता है। समारू बोला- लेकिन हमारे यहां का धोबी तो कपड़े के दाग तक नहीं निकाल पाता और कई बार तो कपड़े का गठरी ही गुमा देता है। तो क्या सरकारी मशीनरी भी धोबी की तरह काम करती है। मैं मामला साफ करते हुए बोला- नहीं बंधु, धोबी सरकारी मशीनरी की तरह काम करता है। अब देखो थोड़ी बहुत भूल-चूक तो चलती रहती है न। ये तो आपस की बात है।
समारू आगे बोला- लेकिन हमारे यहां तो सबकी समस्याएं पिछले साल से जस की तस है। मैं अवाक होकर बोला- क्या बात करते हो मित्र। कुछ दिन पहले ही मैंने खबर पढ़ी है कि पिछले साल जितनी शिकायतें मिली थीं उनसे ज्यादा का तो निराकरण हो गया। इससे साफ साबित होता है कि हमारी सरकार दूरदर्शी होने के साथ-साथ हमारी मित्र भी है। क्योकि मित्र वो नहीं होता जो समस्या आने के बाद मदद के लिए आए, बल्कि मित्र वो होता है जो समस्या के पैदा होने के पहले ही उसे हल कर दे। इस तरह सरकार का यह मित्रवत व्यवहार अति उत्तम है। इस मित्रवत व्यवहार के बाद तो मुझे लगता है कि एक ग्राम मित्रता अभियान भी बस शुरू होने को है। समारू मंद-मंद मुस्काते हुए बोला- मित्र पर तुम एक बात भूल गए कि जहां-जहां भी अब तक समस्याओं का हल नहीं हो पाया है, वहां पर सुराज दल के पहुंचते ही पूरे दल को बंधक बना रहे हैं। ऐसा तो कई बार हो चुका है। और जिस तरह इतने देर से तुम विकास का सुर अलाप रहे हो, मुझे शक है तुम भी सुराज दल के लग रहे हो, बल्कि तुम तो उस दल के प्रमुख लग रहे हो। पकड़ लो इसे, समारू चिल्लाया। इतने में तनी हुए भौहों के साथ कुछ लोग वहां उपस्थित हुए और मुझे रस्सी से बांध कर स्कूल में ले गए। स्कूल तो बहुत गया हूं पर ऐसे कभी नहीं। ग्राम सुराज लाइव देखने आया था और बंधक बनके बैठा हूं। बोर भी हो रहा हूं, लेकिन चिंता की बात नहीं ओरिजिनल सुराज दल वाले भी बंधक बनकर आते ही होंगे, फिर होगा अपना एंटरटेनमेंट, वो भी लाइव।
शनिवार, अप्रैल 21, 2012 |
Category:
व्यंग्य
|
1 comments
Comments (1)
व्यंग्य से अपनी बात कहना भी कला है , बधाई