इतने दिनों तक व्यस्तता के चलते इंटरनेट से दूर रहा और इस दरम्यान बहुत से मुद्दों लिखने से छूट गए। सब मुद्दे मेरे नजरों के सामने से गुजरते रहते लेकिन व्यस्तता के चलते किसी को भी पकड़कर कुछ लिखते नहीं बना। अब फुर्सत मिली तो सोचा कि लिख मारता हूं आज एक। इतने दिनों से कामनवेल्थ गेम्स खूब सुर्खियां बटोर रहा है। कॉमनवेल्थ की खबरें पहले पन्ने से हटने का नाम ही नहीं ले रही। रोज कोई न कोई खबर आकर अपनी जगह बना ही लेती है। जितनी खबरें अभी कॉमनवेल्थ गेम्स की छप रही हैं उतनी तो शायद जब गेम्स होंगे तब भी नहीं छपेंगी। खेल पेज को अपनी खबरों से पाट देने वाला क्रिकेट उपेक्षित महसूस कर रहा है। कभी आधे-आधे पन्ने तक छपने वाले क्रिकेटरों के फोटो को अब पासपोर्ट साइज में निपटाया जा रहा है। और ये सब हुआ है घोटाले और भ्रष्टाचार का नया अध्याय रचने वाले श्री सुरेश कालमाड़ी की वजह से। वैसे मुझे किसी के नाम के आगे श्री लगाने बिलकुल अच्छा नहीं लगता। अरे किसी को फ्री फंड में इतनी इज्जत क्यों दें भला। मगर कालमाड़ी जी ने काम ही ऐसा किया कि उनके नाम के आगे श्री तो लगाना ही पड़ेगा। कम आन वेल्थ गेम्स म..म.माफी कीजिएगा कॉमनवेल्थ गेम्स को इतना प्रसिद्ध बना दिया है कि अब पूरी दुनिया को पता चल गया है कि अपने यहां भी कोई गेम-वेम हो रहे हैं नहीं तो पहले तो इतना सन्नाटा पसरा हुआ था कि पता ही नहीं चल रहा था कि अपने यहां कुछ हो भी रहा है। देश-विदेश के मंत्री-अफसर बार-बार हमारे देश में तांक-झांक करने आ रहे हैं। वैसे कॉमनवेल्थ गेम्स को "कम ऑन वेल्थ गेम्स" कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। कॉमनवेल्थ गेम्स ने साबित कर ही दिया कि "कम ऑन, वेल्थ और भी गेम्स में हैं।" सच तो है पैसा तो सब खेलों में कब से दबा पड़ा है बस निकालने वाला परिश्रमी पुरुष चाहिए था। और इस पैसे को अपने अथक परिश्रम से निकालने का पुण्य काम किया है श्री श्री कलमाड़ी जी ने। (माफ कीजिएगा अतिउत्साह में मैंने दो-दो बार श्री लगा दिया लेकिन क्या करूं कलमाड़ीजी ने काम ही ऐसा किया है) कॉमनवेल्थ गेम्स की ऐसी धूम और चर्चा देखकर तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून भी घबरा गए क्योंकि अगले साल उनके यहां होने वाले ओलंपिक को कोई पूछ तक नहीं रहा और इधर कॉमनवेल्थ गेम्स है कि सूर्खियों पर सूर्खियां बटोरे जा रहा है। अखबारों में कॉमनवेल्थ, टीवी में कॉमनवेल्थ, रेडियो में कॉमनवेल्थ, एसएमएस में कॉमनवेल्थ और यहां तक गली-नुक्कड़ में होने वाली गप्पबाजी में भी कॉमनवेल्थ। बस यही देखकर उन्हें भी कोफ्त हो गई और उन्होंने तैयारियों के अभाव के कारण कॉमनवेल्थ गेम्स अपने यहां कराने की पेशकश कर दी। दरअसल वो इस फिराक में थे कि कॉमनवेल्थ गेम्स उनके यहां हो जाएं तो शायद थोड़ी सुर्खियां उन्हें भी मिल जाएं। कैमरून के दर्द को समझा जा सकता है। वैसे मेरी राय है कि उन्हें अगर अपने लंदन ओलंपिक्स को सुर्खियों में लाना ही है तो उन्हें अपने देश में कलमाड़ी टाइप के किसी तारणहार की जरूरत है जो उनका उद्धार कर सके। वरना लंदन ओलंपिक्स हो जाएंगे और किसी को पता भी नहीं चलेगा। मैं तो कहता हूं कलमाड़ी को ही लंदन ओलंपिक्स की समिति का अध्यक्ष बना देना चाहिए फिर देखिए कलमाड़ीजी की करस्तानी से कैसे अखबारों के पन्ने लंदन ओलंपिक्स की खबरों से पटते हैं।
कॉमनवेल्थ गेम्स की खबरें और कलमाड़ी अब देशभर में इतनी चर्चित हो चुकी हैं कि इसने इतने समय से भारत में सीना तानकर कर चलने वाले क्रिकेट को डरा दिया है। क्रिकेट को अपना एकछत्र राज्य डगमगाता हुआ दिखाई दे रहा है। जो क्रिकेट मैच, आईपीएल और मोदी आए दिन सास-बहु सीरियल की तरह बोर करने लगे थे, उनसे छुटकारा दिलाया है एक योद्धा ने- श्री श्री श्री कलमाड़ी ने (माफ कीजिएगा पूर्व की अपेक्षा इस बार अति अति उत्साह में मैंने तीन बार श्री लगा दिया पर क्या करें कलमाड़ी जी ने काम ही ऐसा...)। जब-जब धरती पर क्रिकेट रूपी राक्षस अपने आतंक से टीवी, अखबारों और लोगों के दिमाग में छा जाते हैं तब-तब लोगों को जगाने एक योद्धा अवतरित होता है और ये योद्धा हैं- सही पहचाना..... कलमाड़ीजी। मोदी ने आईपीएल में छोटा सा घोटाला क्या कर दिया बस सबके सिर पर नाचने लग गया था लेकिन कलमाड़ीजी ने बता दिया कि घोटाला किसे कहते हैं और घोटाला किस स्तर का होना चाहिए।
पहले देश में लोग रोया करते थे कि क्रिकेट छोड़ किसी खेल में पैसा नहीं है लेकिन कलमाड़ीजी ने दिखा दिया कि अगर सच्ची मेहनत, लगन व इच्छाशक्ति से कुछ काम किया जाए तो फल अवश्य मिलता है। उन्होंने खुद तो खूब फल खाए ही औरों को भी खूब फल बांटे। जो हजारों के पीछे भागा करते थे उन्हें करोड़ों की सवारी करा दी। वाह कलमाड़ीजी गजब लीला है आपकी। कलमाड़ी को पैसे में तैरता देख शरद पवार भी सोच में पड़ गए कि पता नहीं क्यों वे आईसीसी प्रमुख बन गए उन्हें भी राष्ट्रमंडल खेलों में ट्राई मारना चाहिए था।
अपने अद्भुत पराक्रम से कलमाड़ीजी ने कईयों को एक साथ जवाब दे दिए। जो एक जवाब मांगते थे उनके मुंह पर चार मार दिए। देश में गरीबी और आर्थिक मंदी का रोना रोने वालों को उन्होंने दिखा दिया कि भारत कोई गरीब देश नहीं है और न यहां आर्थिक मंदी है। जहां एक कुर्सी की जरूरत हो वहां हम चार खरीदने की हैसियत रखते हैं। १०० रुपए की चीज १००० में हम यूं ही खरीद लेते हैं। हमें नहीं जरूरत विश्व बैंक और अन्य देशों से खैरात की। इधर एक रिपोर्टर उनसे पूछ बैठा कि- "कामनवेल्थ गेम्स के लिए हो रहे घटिया निर्माण से वे विश्व के सामने भारत की कैसी तस्वीर पेश कर रहे हैं।" इस पर कलमाड़ीजी भड़क उठे और बोले- "देखिए, मैं एक सच्चा आदमी हूं। मैं दुनिया को धोखा नहीं दे सकता। मैं भारत की सच्ची तस्वीर ही दुनिया के सामने रखना चाहता हूं। भारत में घटिया सड़कें बनती हैं, घोटाले होते हैं, मिलावट होती है, ट्रेफिक जाम होता है। जो सच है मैं तो वही दुनिया के सामने पेश कर रहा हूं। मैं आशा करता हूं कि विदेश से यहां आने वाले खिलाड़ी "जैसा देश, वैसा भेष" में विश्वास करते होंगे और यहां आकर हमारे देश के हिसाब से ढल जाएंगे।"
कलमाड़ी जी ने अपने कारनामे से न केवल बहुतों को लाल किया बल्कि लगे हाथ ठल्ले बैठे कई लोगों को काम भी दे दिया मसलन मसाले की तलाश में रहने वाले मीडियावालों को मसाला, अखबारों को चटपटी खबरें और कलमकारों को मुद्दा, बहुत से कार्टूनिस्टों-कामेडियनों की रोजी-रोटी भी कलमाड़ीजी ही चला रहे हैं। इस तरह बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री कलमाड़ी ने अपनी पराक्रम से कॉमनवेल्थ गेम्स को कम ऑन वेल्थ गेम्स बनाकर एक ऐसा उदाहरण पेश किया जिसकी मिसाल आने वाले पीढ़ी के घोटालेबाज देंगे और उनका अनुसरण करेंगे। ऐसे हैं श्री श्री श्री श्री श्री श्री कलमाड़ी जी और ऐसा है उनका कम ऑन वेल्थ गेम्स (माफ कीजिएगा लेख के अंत तक मै इतना उत्साहित हो गया कि ५-६ बार श्री लगा दिया पर क्या करें कलमाड़ीजी ने काम ही ऐसा किया है)
सोमवार, अगस्त 23, 2010 |
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व्यंग्य
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Comments (4)
भैया जी, इनके नाम के आगे श्री श्री १०८ श्री लगायेइए.... हो सके तो टिपण्णी बॉक्स से कूट संकेत हटा दीजिए.
बहुत असरदार लेखन है भाई आपका. मजा आ गया पढ़ के. धन्यवाद.
वाह! गहरा व्यंग्य।
रक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक बधाई एवम् शुभकामनाएँ