ट्रीं..ट्रीं… सुबह ६ बजे अलार्म की घंटी बजती है। रोज ९ बजे उठने वाले शर्मा जी ६ बजे ही उठ गए। नहा-धो कर नाश्ता करके हो गए आफिस के लिए रवाना। दरअसल उस दिन ३१ मई था यानी तम्बाकू निषेध दिवस और शर्मा जी हैं तम्बाकू निषेध समिति के अध्यक्ष। आज तम्बाकू निषेध दिवस पर वार्षिक बैठक बुलाई गई और यह आपाधापी इसीलिए मची हुई है। शर्मा जी आफिस पहुंचते हैं। आफिस का ताला खोलने का प्रयास करते हैं लेकिन वो खुलता नहीं, शायद ताला जाम हो गया था इतने महीने से खुला जो नहीं था। खैर काफी मशक्कत के बाद शर्मा जी ताला खोल ही लेते हैं।
थोड़ी देर बाद चपरासी आता है। शर्माजी चपरासी को डांटते हुए कहते हैं- आज आफिस क्यों नहीं खोला? चपरासी हंसते हुए कहता है- क्या साहब। इतने महीनों से आफिस नहीं खुला ना इसलिए आदत नहीं थी आफिस खोलने की। शर्माजी कहते हैं- ठीक है, चलो जाओ समोसे और कोल्ड्रिंक का इंतजाम करो। बैठक शुरू होने वाली है।
कुछ देर बाद सारे पदाधकारी आफिस आ जाते हैं। शर्माजी उनका स्वागत करते हुए कहते हैं- आइए, आइए वर्माजी, मिश्रा जी आपका ही इंतजार था। आज तम्बाकू निषेध दिवस था इसलिए सोचा इस सूने आफिस को थोड़ा हरा-भरा कर लें। इसलिए आज वार्षिक बैठक आयोजित कर ली। तभी चपरासी समोसा और कोल्ड्रिंक लेकर आता है। सभी उसका लुत्फ उठाते और हुए अपनी हाकंने लगते हैं।
कुछ देर बाद बैठक शुरू होती है। अध्यक्ष शर्मा जी कहते हैं- आज तम्बाकू निषेध दिवस है और इसीलिए आज वार्षिक बैठक आयोजित की गई है। पिछली बैठक में लागू की गई नीतियों, कार्यक्रमों पर और भविष्य के कार्यक्रमों पर चर्चा की जाएगी। सबसे पहले वर्मा जी आप बताइए पिछले साल सरकार द्वारा आबंटित राशि का क्या उपयोग हुआ। वर्माजी कहते हैं- शर्माजी उसका ब्यौरा आप ज्यादा बेहतर दे पाएंगे क्योंकि उसी आबंटित राशि में से तो आप अपने परिवार को विदेश घुमाने ले गए थे। शर्माजी समझाते हुए कहते हैं- घूमने कौन गया था हम तो विदेश में हो रहे तम्बाकू निषेध कार्यक्रमों का अवलोकन करने गए थे। मिश्राजी हंसते हुए कहते हैं- चलिए आप किसे समझा रहे हैं, जैसे हम जानते ही नहीं आप क्या अवलोकन करने गए थे। वर्माजी आगे ब्यौरा देते हुए कहते हैं- उस आबंटित राशि में से कुछ के बैनर-पोस्टर-फ्लैक्स छपे, कुछ विज्ञापन छपवाए, कुछ रैलियां निकाली और बाकी बची राशि तो हम सबने बांट ली थी, क्यूं भूल गए क्या।
शर्मा जी- मतलब अभी समिति कोष ठन ठन गोपाल है। लेकिन चिंता की कोई बात नहीं। इस वर्ष पहले से बड़ी राशि आबंटित होने वाली है तम्बाकू निषेध कार्यक्रमों के लिए। उस राशि से कोई कार्यक्रम हो न हो अपने कार्यक्रम तो हो ही जाएंगे। ( पूरे कमरे मे ठहाके गूंजने लगते हैं।)
(कुछ देर बाद शर्मा जी गुप्ता जी की तरफ रुख करते हुए) तो गुप्ताजी बताइए पिछले साल कितने पोस्टर, फ्लैक्स छपे और कितने विज्ञापन जारी किए।
गुप्ताजी- अध्यक्ष जी। पिछले साल गली-मोहल्लों को पोस्टर-फ्लैक्स से पाट दिया गया। विज्ञापन भी ताबड़तोड़ छपवाए गए। लेकिन न तो इससे तंबाकू सेवन कम हुआ और न ही लोग जागरुक। पूरा पैसा बर्बाद हुआ। इसीलिए इस बार मेरी गुजारिश है कि पोस्टर-फ्लैक्स कम छपवाएं जाएं और छपवाने का ठेका मेरे भतीजे को दिया जाए जिसने अभी अभी नई प्रिंटिंग प्रेस डाला है। और अपने बंदों ने मैगजीन-अखबार खोले हैं बस उनका ख्याल रखते हुए उन्हें थोक के भाव विज्ञापन जारी करना है। शर्मा जी- चलिए ठीक है। जैसी आपकी इच्छा गुप्ताजी। इस बार आपके भतीजे का भी कल्याण कर देंगे।
(अब श्रीमती खरे की बारी थी। वे कहने लगी) – पिछली बार आप लोगों ने मुझे रैलियों में खूब मशक्कत करवाई। धूप में घूम-घूमकर मेरा रंग उतर गया। और तो और अखबारों में मेरी फोटो भी नहीं छपी। अपने पड़ोसियों को तो मैं अच्छे से जला भी नहीं पाई उल्टा खुद ही हंसी की पात्र बन गई। ना बाबा ना, इस बार मैं रैलियों में नहीं जाने वाली।
अध्यक्ष शर्मा जी दिलासा देते हुए- खरे मैडम। अजी, आपको किसने कहा है इतनी रैलियां निकालकर धूप में घूमने के लिए। बस दो-तीन रैलियां निकालिए और खत्म कीजिए। फिर कौन याद रखता है कब था तम्बाकू निषेध दिवस कब था। बाकी की रैलियां अगले साल निकालेंगे। और हां, इस बार आपकी फोटो अखबार में जरूर छपेगी वो भी बड़ी। इसकी ग्यारंटी में लेता हूं।
शर्माजी- अरे चौबेजी आप चुप क्यों बैठे हैं? आपकी भी कोई शिकवा-शिकायत हो तो सुना दीजिए।
चौबेजी- शिकवा-शिकायत तो कुछ नहीं है, बस एक दरख्वास्त है। पिछले साल तम्बाकू निषेध के लिए हुए नाटक की नायिका का फोन नंबर और घर का पता हमें दे दीजिए। नाटक के दौरान उसके द्वारा तम्बाकू छोड़ने की दी गई नसीहत का किसी पर असर पड़ा हो या न हो लेकिन हमारे चेन स्मोकर बेटे पर जरूर पड़ा है। उस नायिका को देखने के बाद उसने सिगरेट तो छोड़ दी लेकिन उस नायिका की याद में अब वह आधा हो रहा है।
शर्माजी- बैठक के बाद आप हमसे नम्बर ले लेना। (फिर चपरासी को बुलाते हुए) रामू जरा फाइल से धूल तो हटा दो और चौबेजी को उस नायिका का नंबर खोज के दे दो। (चपरासी फाइल को उलटने-पलटने लगता है)
(बैठक का आखिरी दौर आ जाता है) अध्यक्ष शर्मा जी- तो साथियों इस वर्ष क्या-क्या नीतियां अपनानी हैं। सबसे पहले तो समिति का फंड बढ़वाना है। और लोगों को जागरुक करने में राशि ज्यादा नहीं खर्च करनी है। चाहे कितना ही कह लो तम्बाकू छोड़ने के लिए न तो जनता तम्बाकू छोड़ेगी न तम्बाकू की बिक्री कम होगी। तो क्यों फिजूल में पोस्टर छपवाकर और रैलियां निकलवाकर पैसे खर्च करना। वो पैसा हमारे काम आ जाएगा। (सब एकसाथ सिर हिलाते हैं)
शर्माजी- चलिए भई अब बैठक खत्म। अब अगले साल मिलेंगे। रामू फाइल छोड़ जरा इधर आना, सामने वाले पान दुकान से ५ पैकेट सिगरेट, ५० गुटखा पाउच. २० पान लेकर आना। आज आफिस खुला ही है तो पैसा ले और पान दुकान का पुराना हिसाब भी चुकता कर दे। तो इस तरह संपन्न हुई तम्बाकू निषेध दिवस की आपात वार्षिक बैठक और आफिस फिर साल भर के लिए सूना हो जाएगा।
थोड़ी देर बाद चपरासी आता है। शर्माजी चपरासी को डांटते हुए कहते हैं- आज आफिस क्यों नहीं खोला? चपरासी हंसते हुए कहता है- क्या साहब। इतने महीनों से आफिस नहीं खुला ना इसलिए आदत नहीं थी आफिस खोलने की। शर्माजी कहते हैं- ठीक है, चलो जाओ समोसे और कोल्ड्रिंक का इंतजाम करो। बैठक शुरू होने वाली है।
कुछ देर बाद सारे पदाधकारी आफिस आ जाते हैं। शर्माजी उनका स्वागत करते हुए कहते हैं- आइए, आइए वर्माजी, मिश्रा जी आपका ही इंतजार था। आज तम्बाकू निषेध दिवस था इसलिए सोचा इस सूने आफिस को थोड़ा हरा-भरा कर लें। इसलिए आज वार्षिक बैठक आयोजित कर ली। तभी चपरासी समोसा और कोल्ड्रिंक लेकर आता है। सभी उसका लुत्फ उठाते और हुए अपनी हाकंने लगते हैं।
कुछ देर बाद बैठक शुरू होती है। अध्यक्ष शर्मा जी कहते हैं- आज तम्बाकू निषेध दिवस है और इसीलिए आज वार्षिक बैठक आयोजित की गई है। पिछली बैठक में लागू की गई नीतियों, कार्यक्रमों पर और भविष्य के कार्यक्रमों पर चर्चा की जाएगी। सबसे पहले वर्मा जी आप बताइए पिछले साल सरकार द्वारा आबंटित राशि का क्या उपयोग हुआ। वर्माजी कहते हैं- शर्माजी उसका ब्यौरा आप ज्यादा बेहतर दे पाएंगे क्योंकि उसी आबंटित राशि में से तो आप अपने परिवार को विदेश घुमाने ले गए थे। शर्माजी समझाते हुए कहते हैं- घूमने कौन गया था हम तो विदेश में हो रहे तम्बाकू निषेध कार्यक्रमों का अवलोकन करने गए थे। मिश्राजी हंसते हुए कहते हैं- चलिए आप किसे समझा रहे हैं, जैसे हम जानते ही नहीं आप क्या अवलोकन करने गए थे। वर्माजी आगे ब्यौरा देते हुए कहते हैं- उस आबंटित राशि में से कुछ के बैनर-पोस्टर-फ्लैक्स छपे, कुछ विज्ञापन छपवाए, कुछ रैलियां निकाली और बाकी बची राशि तो हम सबने बांट ली थी, क्यूं भूल गए क्या।
शर्मा जी- मतलब अभी समिति कोष ठन ठन गोपाल है। लेकिन चिंता की कोई बात नहीं। इस वर्ष पहले से बड़ी राशि आबंटित होने वाली है तम्बाकू निषेध कार्यक्रमों के लिए। उस राशि से कोई कार्यक्रम हो न हो अपने कार्यक्रम तो हो ही जाएंगे। ( पूरे कमरे मे ठहाके गूंजने लगते हैं।)
(कुछ देर बाद शर्मा जी गुप्ता जी की तरफ रुख करते हुए) तो गुप्ताजी बताइए पिछले साल कितने पोस्टर, फ्लैक्स छपे और कितने विज्ञापन जारी किए।
गुप्ताजी- अध्यक्ष जी। पिछले साल गली-मोहल्लों को पोस्टर-फ्लैक्स से पाट दिया गया। विज्ञापन भी ताबड़तोड़ छपवाए गए। लेकिन न तो इससे तंबाकू सेवन कम हुआ और न ही लोग जागरुक। पूरा पैसा बर्बाद हुआ। इसीलिए इस बार मेरी गुजारिश है कि पोस्टर-फ्लैक्स कम छपवाएं जाएं और छपवाने का ठेका मेरे भतीजे को दिया जाए जिसने अभी अभी नई प्रिंटिंग प्रेस डाला है। और अपने बंदों ने मैगजीन-अखबार खोले हैं बस उनका ख्याल रखते हुए उन्हें थोक के भाव विज्ञापन जारी करना है। शर्मा जी- चलिए ठीक है। जैसी आपकी इच्छा गुप्ताजी। इस बार आपके भतीजे का भी कल्याण कर देंगे।
(अब श्रीमती खरे की बारी थी। वे कहने लगी) – पिछली बार आप लोगों ने मुझे रैलियों में खूब मशक्कत करवाई। धूप में घूम-घूमकर मेरा रंग उतर गया। और तो और अखबारों में मेरी फोटो भी नहीं छपी। अपने पड़ोसियों को तो मैं अच्छे से जला भी नहीं पाई उल्टा खुद ही हंसी की पात्र बन गई। ना बाबा ना, इस बार मैं रैलियों में नहीं जाने वाली।
अध्यक्ष शर्मा जी दिलासा देते हुए- खरे मैडम। अजी, आपको किसने कहा है इतनी रैलियां निकालकर धूप में घूमने के लिए। बस दो-तीन रैलियां निकालिए और खत्म कीजिए। फिर कौन याद रखता है कब था तम्बाकू निषेध दिवस कब था। बाकी की रैलियां अगले साल निकालेंगे। और हां, इस बार आपकी फोटो अखबार में जरूर छपेगी वो भी बड़ी। इसकी ग्यारंटी में लेता हूं।
शर्माजी- अरे चौबेजी आप चुप क्यों बैठे हैं? आपकी भी कोई शिकवा-शिकायत हो तो सुना दीजिए।
चौबेजी- शिकवा-शिकायत तो कुछ नहीं है, बस एक दरख्वास्त है। पिछले साल तम्बाकू निषेध के लिए हुए नाटक की नायिका का फोन नंबर और घर का पता हमें दे दीजिए। नाटक के दौरान उसके द्वारा तम्बाकू छोड़ने की दी गई नसीहत का किसी पर असर पड़ा हो या न हो लेकिन हमारे चेन स्मोकर बेटे पर जरूर पड़ा है। उस नायिका को देखने के बाद उसने सिगरेट तो छोड़ दी लेकिन उस नायिका की याद में अब वह आधा हो रहा है।
शर्माजी- बैठक के बाद आप हमसे नम्बर ले लेना। (फिर चपरासी को बुलाते हुए) रामू जरा फाइल से धूल तो हटा दो और चौबेजी को उस नायिका का नंबर खोज के दे दो। (चपरासी फाइल को उलटने-पलटने लगता है)
(बैठक का आखिरी दौर आ जाता है) अध्यक्ष शर्मा जी- तो साथियों इस वर्ष क्या-क्या नीतियां अपनानी हैं। सबसे पहले तो समिति का फंड बढ़वाना है। और लोगों को जागरुक करने में राशि ज्यादा नहीं खर्च करनी है। चाहे कितना ही कह लो तम्बाकू छोड़ने के लिए न तो जनता तम्बाकू छोड़ेगी न तम्बाकू की बिक्री कम होगी। तो क्यों फिजूल में पोस्टर छपवाकर और रैलियां निकलवाकर पैसे खर्च करना। वो पैसा हमारे काम आ जाएगा। (सब एकसाथ सिर हिलाते हैं)
शर्माजी- चलिए भई अब बैठक खत्म। अब अगले साल मिलेंगे। रामू फाइल छोड़ जरा इधर आना, सामने वाले पान दुकान से ५ पैकेट सिगरेट, ५० गुटखा पाउच. २० पान लेकर आना। आज आफिस खुला ही है तो पैसा ले और पान दुकान का पुराना हिसाब भी चुकता कर दे। तो इस तरह संपन्न हुई तम्बाकू निषेध दिवस की आपात वार्षिक बैठक और आफिस फिर साल भर के लिए सूना हो जाएगा।
मंगलवार, जून 08, 2010 |
Category:
व्यंग्य
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