मध्यम कुमार बेतहाशा दौड़े जा रहे थे, उन्हें इस तरह भागता देख लग रहा था मानो वे फर्राटा धावक का 100 मीटर का रिकार्ड तोड़ देंगे। वैसे तो इस देश में सब भाग ही रहे हैं- नेता अपने वादों से, अधिकारी अपने काम से, जनता अपने कर्तव्यों से, परिवारवाले बेटियों से भाग रहे हैं, कोई घोटाला करके भाग रहा है, तो कोई घोटाला करने के लिए भाग रहा है। इतने भागदौड़ वाला देश भी जब ओलम्पिक दौड़ में मेडल नहीं ला पाता है, तो बड़ा अचरज होता है। खैर यह सब तो चिंतनीय बातें है, लेकिन अभी हम चिंतक नहीं ईष्र्यालु मूड में हैं और मध्यम कुमार हमारी आंखों के सामने दौडऩे का रिकार्ड बना दे, ऐसा कतई नहीं हो सकता। उनके इस दौड़ में व्यवधान उपस्थित करने हम भी उनके पीछे-पीछे दौडऩे लगे। हमने उन्हें आवाज दी। हमारी आवाज सुनकर उन्होंने अपनी स्पीड धीमी की, हमें थोड़ी खुशी मिली। हमने पूछा- कहां भागे जा रहे हो मध्यम कुमार। पर वे हमारी बात को अनसुना कर फिर भागने लगे। पर अपनी ढीठ प्रवृत्ति के अनुरूप हमने भागते हुए फिर पूछा- कहा जा रहे हो। इस बार मध्यम कुमार रुके और बोले- आज हमें मत रोकिए। आज हम अपना कौशल दिखाकर रहेंगे। आज हमारे मोहल्ले में दो पक्षों का विवाद हो गया है। और जब-जब भी ऐसे विवाद होते हैं, तब-तब जरुरत पड़ती है एक मध्यस्थ की, और वो हैं हम।
मैंने आश्चर्य से पूछा- आप और मध्यस्थ? मध्यमकुमार जी मामला साफ करते हुए बोले- आप तो हमेशा हमें नजरअंदाज ही कर देते हैं। अजी, हम तो पैदाइशी मध्सस्थ हैं, एकदम खालिस। एक तो हम मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। तीन भाईयों में हम मंझले हैं। हमारी शादी के समय जब हम लड़की देखने गए तब तीन बहनों में हमें छोटी लड़की पसंद थी. पर परिवार वाले हमारी शादी बड़ी लड़की से कराना चाहते थे। बड़ी विकट घड़ी थी, विवाद की स्थिति भी बन रही थी, लगा जैसे जुड़ता हुआ रिश्ता टूट जाएगा । ऐसा लग रहा था जैसे मारा तो बल्ले से छक्का था, लेकिन बाउंड्री लाइन पर लपक लिए जाएंगे। ऐसे संकटपूर्ण स्थिति में अवतरित हुए मध्यम कुमार यानी कि हम। हमने तय किया कि हम मंझली लड़की से विवाह करें। सब मान गए और हो गया हैप्पी एंडिंग। बस तब से हमने अपने कौशल को भांपते हुए और जनता की मांग पर अपने नाम के आगे मध्यस्थ उपनाम जोड़ लिया और हम हो गए मध्यम कुमार 'मध्यस्थ'। तो ये थी मध्यम कुमार 'मध्यस्थ' के अवतरण की छोटी सी कथा।
हम मध्यम कुमार को टोकते हुए बोले कि जनता ने कब आपसे मांग की कि आप 'मध्यस्थ' उपनाम जोडि़ए। वे समझाते हुए बोले- देखिए सुमितजी, ये सब भावनाओं का खेल है। जनता साफ-साफ कुछ नहीं कहती, बस आपको उसका मन पढऩा आना चाहिए। मौका देख चौका मारिए और खुद को उन पर थोप दीजिए, जनता झेल लेगी। जैसे नेता चुनने का हक हमको नहीं है., बस जो चुनके सामने रख दिए गए हैं उनको वोट देकर जीता दो, यही काम है। देखिए अब कहीं भी झगड़ा होगा तो हम भी अपनी मध्यस्थता थोप देंगे। हम उनकी मध्यस्थता एक्सप्रेस को रोकते हुए बोले- मतलब मध्यस्थ वह होता है जो दूसरे के फटे में जबरन टांग अड़ाए। ध्यमकुमार खीझते हुए बोले- नहीं, नहीं। मध्यस्थ वह होता है जो उस फटे की सिलाई करे, बिलकुल दर्जी की तरह।
मध्यम कुमार आगे बोले- मध्यस्थों का माखौल उड़ाने से पहले सुमितजी, इतिहास उठा कर देख लीजिए। जितनी भी बड़ी लड़ाईयां हुई हैं, वे सब नहीं हुई होती, अगर उस समय हमारी श्रेणी व हमारी क्षमता का कोई मध्यस्थ वहां होता। पर यह तो नसीब का खेल है। ये तो इस युग की खुशकिस्मती है कि हम जैसे आला दर्जे के मध्यस्थ ने इस युग में जन्म लिया है। हमने आगे मध्यम कुमार से पूछा-, हम आपका माखौल नहीं उड़ा रहे लेकिन पिछली बार आप दो लोगों के विवाद में बिना बुलाए पहुंच गए थे मध्यस्थता करने। उस समय दोनों ही पक्षों ने आपको मध्यस्थ बनाने से इंकार कर दिया था, तब क्या आपके आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंच थी। मध्यम कुमार बोले- देखिए, हमें ठेस नहीं पहुंची, बल्कि हमने इसे एक और मौके के रूप में लिया है। क्योंकि अभी इनका विवाद अस्थायी तौर पर निपटा है, अगली बार जब इनका विवाद होगा तब इन्हें हम ही याद आएंगे, और तब हम दिखाएंगे अपना जलवा। हम तो परमानेंट मामला सुलझाने वालों में से है।
मध्यमकुमार आगे बोले- हमें न लडऩा-झगडऩा पसंद है, न हम आपकी तरह तटस्थ रह सकते हैं, हमें तो बस मध्यस्थता करना पसंद है, और इसमे तो हम उस्ताद हैं। ये बीत दीगर है कि हमें कभी अपनी उस्तादी दिखाने का कोई बड़ा मौका नहीं मिला। पर आज मोहल्ले में बड़ा विवाद हुआ है। और इस विवाद को सुलझाने के बाद हमें मध्यस्थ शिरोमणि की उपाधि जरुर मिल जाएगी। धत्त तेरी की, आप जैसे तटस्थ से बात करने के चक्कर में कहीं हम मध्यस्थता करने का मौका न गंवा दें। जल्दी दौडि़ए इससे पहले कि कोई और मध्यस्थ बीच ममें कूदकर मामला सुलझा दे। मध्यम कुमार जी फिर फर्राटा गति से दौड़ लगाकर कर चल दिए। हम भी मजबूर देश के मजबूर नागरिक की तरह उनके पीछे-पीछे चल दिए। विवाद वाली जगह पर पहुंचकर जो नजारा मध्यम कुमार ने देखा, उसके बाद उनको काटो तो खून नहीं। किसी दूसरे मध्यस्थ ने आकर मामला पहले ही सुलझा दिया था। विवादित पक्षों में मिलने-मिलने का कार्यक्रम चल रहा था। मध्यम कुमार की हालत ऐसी हो गई थी, जैसे शादी उनकी हो और दुल्हन से फेरे कोई और ले बैठा।
मध्यम कुमार का चेहरा हताश, निराश और देवदास सरीखा हो गया था। मौके की गमगीनी को देख मैंने तुरंत एक शायरी दे मारी कि-
मोहब्बत का अंजाम देख्र डर रहे हो,
निगाहों में अपनी लहू भर रहे हो,
तेरी प्रेमिका ले उड़ा और कोई
इक तुम हो कि मातम मना रहे हैं
इतना सुनते ही मध्यम कुमार अब दीर्घ होते हुए मेरे पास आए। उनके अंदर का गुस्सा खौल रहा था और वे उबलते हुए बोले- सब तुम्हारे कारण हैं। तुमने हमारा समय खराब किया और हमने मध्यस्थता करने का एक अदद मौका खो दिया। इतना सुन मैंने भी अपने पैने-पैने शब्दबाण उन पर छोड़े। अब हम दोनों में विवाद हो रहा है और हमें जरुरत है एक मध्यस्थ की। हे 'मध्यस्थ' प्रकट भव:।
गुरुवार, अप्रैल 26, 2012 |
Category:
व्यंग्य
|
1 comments