मार्निंग वॉक करना स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी है। इस लाभ में तब और वृद्धि हो जाती है जब वॉक के दौरान किसी सुंदर युवती से आपकी टॉक हो जाए। लेकिन यह लाभ तब घाटे का सौदा साबित होता है जब कोई अनचाहा आदमी आपसे टकरा जाए। ऐसे ही आज सुबह वॉक के दौरान हमारे मोहल्ले के शर्माजी हमसे टकरा गए। कुछ बुदबुदाते हुए वे बड़े गुस्से से मेरी तरफ ही आ रहे थे। मैंने लाख प्रयास किया पर बच न पाया। मेरी किस्मत ही खराब है- न मैं महंगाई की मार से बच पाता हूं, न पेट्रोल की वार से। स्कूल में टीचर से बच नहीं पाता था, और अब आफिस में बॉस से। लोग कहते हैं मैं बचने के प्रयास के दौरान अपना १०० प्रतिशत नहीं देता, इसलिए बच नहीं पाता। कोई बात नहीं अगली बार जरूर बचूंगा। खैर अब तो मैं शर्माजी के हत्थे चढ़ ही गया था। मेरे पास आकर वे फिर बुदबुदाने लगे। मैंने कहा शर्माजी- वाइब्रेशन मोड से नार्मल मोड में तो आइए। शर्माजी हांफते हुए बोले- क्या बताउं इतना गुस्सा आ रहा है कि बीपी हाई हो गया है, दिमाग फ्राई हो गया है और गला सूखकर ड्राई हो गया है। मैंने कहा- आराम से बैठिए, पानी पीजिए फिर बताइए क्या हुआ। दो मिनट शांत रहने के बाद शर्माजी फिर रुद्र अवतार में आ गए और बोले- हद हो गई, कलमाड़ी कहता है मैं कुर्सी नहीं छोड़ूंगा, भारतीय ओलंपिक संघ का पद नहीं त्यागूंगा। मैंने कहा- बस इतनी सी बात और आप अपना खून जला रहे हैं। यही तो दिक्कत है आप जैसे आम आदमियों की, कॉमन मैन कहीं के। आप तो ऐसे उतावले हो रहे हैं जैसे कि उनके हटते ही आपको उस कुर्सी पर बिठाने वाले हैं।
चलिए चाय पीते-पीते इस मामले पर चिंतन करते हैं, मैंने शर्माजी को चाय के लिए पूछा और कहा- शर्माजी आप ठहरे आम आदमी, नौकरीपेशा टाईप, जिंदगी भर बस सैलरी उठाई और घर चलाया है। आपको क्या पता कुर्सी की लत क्या होती है। मुझे मालूम है आपका कभी मन नहीं हुआ होगा कि आप अपने आफिस की कुर्सी से चिपके रहें। आप तो बस इसी जुगत में रहते हैं कि कब आफिस बंद हो और आप घर में पैर पसारकर सोएं, कॉमन मैन कहीं के। लेकिन जो कर्मठ लोग होते हैं वो लोग हमेशा कुर्सी से चिपके रहते हैं चाहे दिन हो रात। हमारे कलमाड़ी जी भी इसी श्रेणी के हैं। अपितु मैं क्षमा चाहूंगा कि मैंने इसे कुर्सी की लत कहा, दरअसल ये तो कुर्सी का प्रेम है।
शर्माजी को मेरी बातें समझ नहीं आ रही थीं। मैंने कहा- देखिए शर्माजी मैं इसे विस्तार से समझाता हूं। नेताजी का कुर्सी पर बैठना बिलकुल अरेंज मैरिज जैसा है। अरेंज मैरिज में दो अजनबियों की शादी हो जाती है फिर बड़े आहिस्ता-आहिस्ता उन दोनों में प्रेम पनपता है और कुछ सालों बाद ऐसी हालत हो जाती है कि दोनों एक जिस्म दो जान हो जाते हैं (नोटः ऐसा मामला १०० में से सिर्फ १० खुशनसीबों में पाया जाता है)। उसी तरह जब कोई नेता-अफसर किसी कुर्सी पर बैठता है तो शुरु में उतना मोह नहीं रहता, लेकिन धीरे-धीरे उसे अपनी कुर्सी से प्यार हो जाता है। कलमाड़ी जी के साथ भी ऐसा ही केस है। अरे कलमाड़ी तो १५ सालों से उस कुर्सी पर काबिज हैं, प्यार होना तो लाजिमी था। आप ये क्यों नहीं देखते कि उनके इस व्यवहार से उनका प्रेमपूर्ण व्यक्तित्व की झलक मिलती है। पर शर्माजी आप को क्या पता प्यार का बंधन क्या होता है, आप तो खुद अपनी श्रीमतीजी से भागते फिरते रहते हैं, कॉमन मैन कहीं के।
अबकी बार शर्माजी मुझे टोकते हुए बोले- चलिए मान लिया कलमाड़ी बहुत कर्मठ हैं, प्रेम पुजारी टाईप हैं। पर घोटालों का क्या? अच्छे खासे कॉमनवेल्थ गेम्स को उन्होंने कम ऑन वेल्थ गेम्स बना दिया। वेल्थ की इतनी हेरा-फेरी हुई कि जनता की हेल्थ खराब हो गई। मैं शर्माजी को रोकते हुए बोला- बस फिर कर दी न, आम आदमी वाली बात। अरे जनता को आप बहुत अंडरएस्टीमेट करते हैं। जनता की पाचन क्षमता बहुत जबर्दस्त है वो तो ऐसे घोटाले यूं ही पचा जाती है। और घोटाले करने से एक बात स्पष्ट होती है कि कलमाड़ीजी मेहनती होने के साथ-साथ दिमाग के धनी भी हैं। घोटाला करने बिलकुल दूध में से मक्खन निकालने जैसा मेहनत का काम है। इसमें अतिरिक्त मेहनत भी लगती है, और दिमाग भी। घोटाला यूं ही नहीं हो जाता। कुर्सी से प्रेम सिर्फ वही कर सकता है जो तन, मन और धन से कुर्सी से जुड़ा हो। कुर्सी पर बैठते ही पहले कलमाड़ीजी का तन जुड़ा कुर्सी से, १५ साल में मन तो जुड़ना ही था और कितना धन जुड़ गया ये तो पूरे देश ने देख ही लिया। मेरे भैय्या यही तो है कुर्सीप्रेम। कोई सालों से कुर्सी पर काबिज है, तो कोई कुर्सी छूट जाने के बाद भी कुर्सी के पीछे दीवाना है। इधर येद्दियुरप्पा का सीएम की कुर्सी के लिए लड़ना, उधर उत्तराखंड में बहुगुणा का अपनी कुर्सी बचाने के लिए जुगत लगाना सब कुर्सीप्रेम का ही परिचायक हैं।
इसलिए इन कुर्सीप्रेमियों को मस्त रहने दीजिए। मैं तो कहता हूं शर्माजी इस कुर्सीप्रेम वाले युग में आप भी प्रेम करने के लिए एक कुर्सी ढूंढ लीजिए, वरना आप सिंगल के सिंगल रह जाएंगे। आज जो कुर्सी पर बैठे वो स्पेशल है, जो कुर्सी के सामने खड़े रहे वो कॉमन। शर्माजी मेरी बात बड़ी ध्यान से सुन रहे थे। वे बोले- आपने तो मेरी आंखें खोल दीं, लेकिन एक बात मुझे अच्छी नहीं लगी। आप बार-बार मुझे कॉमन मैन कहीं के क्यों कह रहे थे, आप कौन सा स्पेशल हो गए। मैंने आश्चर्य से उन्हें देखा और बोला- कमाल कर दिया आपने शर्माजी, पूरे मोहल्ले में हल्ला है और आपको पता ही नहीं। मुझे मोहल्ला समिति का अध्य्क्ष बनाया गया और अब कोई कुछ भी करे मैं सालों तक इस कुर्सी को नहीं छोड़ूंगा.....। शर्माजी मुझे अवाक् देखते रह गए और चल दिए...... शायद अब किसी और के पास जाकर मेरे द्वारा कुर्सी न छोड़ने का मामला उठाएंगे।
चलिए चाय पीते-पीते इस मामले पर चिंतन करते हैं, मैंने शर्माजी को चाय के लिए पूछा और कहा- शर्माजी आप ठहरे आम आदमी, नौकरीपेशा टाईप, जिंदगी भर बस सैलरी उठाई और घर चलाया है। आपको क्या पता कुर्सी की लत क्या होती है। मुझे मालूम है आपका कभी मन नहीं हुआ होगा कि आप अपने आफिस की कुर्सी से चिपके रहें। आप तो बस इसी जुगत में रहते हैं कि कब आफिस बंद हो और आप घर में पैर पसारकर सोएं, कॉमन मैन कहीं के। लेकिन जो कर्मठ लोग होते हैं वो लोग हमेशा कुर्सी से चिपके रहते हैं चाहे दिन हो रात। हमारे कलमाड़ी जी भी इसी श्रेणी के हैं। अपितु मैं क्षमा चाहूंगा कि मैंने इसे कुर्सी की लत कहा, दरअसल ये तो कुर्सी का प्रेम है।
शर्माजी को मेरी बातें समझ नहीं आ रही थीं। मैंने कहा- देखिए शर्माजी मैं इसे विस्तार से समझाता हूं। नेताजी का कुर्सी पर बैठना बिलकुल अरेंज मैरिज जैसा है। अरेंज मैरिज में दो अजनबियों की शादी हो जाती है फिर बड़े आहिस्ता-आहिस्ता उन दोनों में प्रेम पनपता है और कुछ सालों बाद ऐसी हालत हो जाती है कि दोनों एक जिस्म दो जान हो जाते हैं (नोटः ऐसा मामला १०० में से सिर्फ १० खुशनसीबों में पाया जाता है)। उसी तरह जब कोई नेता-अफसर किसी कुर्सी पर बैठता है तो शुरु में उतना मोह नहीं रहता, लेकिन धीरे-धीरे उसे अपनी कुर्सी से प्यार हो जाता है। कलमाड़ी जी के साथ भी ऐसा ही केस है। अरे कलमाड़ी तो १५ सालों से उस कुर्सी पर काबिज हैं, प्यार होना तो लाजिमी था। आप ये क्यों नहीं देखते कि उनके इस व्यवहार से उनका प्रेमपूर्ण व्यक्तित्व की झलक मिलती है। पर शर्माजी आप को क्या पता प्यार का बंधन क्या होता है, आप तो खुद अपनी श्रीमतीजी से भागते फिरते रहते हैं, कॉमन मैन कहीं के।
अबकी बार शर्माजी मुझे टोकते हुए बोले- चलिए मान लिया कलमाड़ी बहुत कर्मठ हैं, प्रेम पुजारी टाईप हैं। पर घोटालों का क्या? अच्छे खासे कॉमनवेल्थ गेम्स को उन्होंने कम ऑन वेल्थ गेम्स बना दिया। वेल्थ की इतनी हेरा-फेरी हुई कि जनता की हेल्थ खराब हो गई। मैं शर्माजी को रोकते हुए बोला- बस फिर कर दी न, आम आदमी वाली बात। अरे जनता को आप बहुत अंडरएस्टीमेट करते हैं। जनता की पाचन क्षमता बहुत जबर्दस्त है वो तो ऐसे घोटाले यूं ही पचा जाती है। और घोटाले करने से एक बात स्पष्ट होती है कि कलमाड़ीजी मेहनती होने के साथ-साथ दिमाग के धनी भी हैं। घोटाला करने बिलकुल दूध में से मक्खन निकालने जैसा मेहनत का काम है। इसमें अतिरिक्त मेहनत भी लगती है, और दिमाग भी। घोटाला यूं ही नहीं हो जाता। कुर्सी से प्रेम सिर्फ वही कर सकता है जो तन, मन और धन से कुर्सी से जुड़ा हो। कुर्सी पर बैठते ही पहले कलमाड़ीजी का तन जुड़ा कुर्सी से, १५ साल में मन तो जुड़ना ही था और कितना धन जुड़ गया ये तो पूरे देश ने देख ही लिया। मेरे भैय्या यही तो है कुर्सीप्रेम। कोई सालों से कुर्सी पर काबिज है, तो कोई कुर्सी छूट जाने के बाद भी कुर्सी के पीछे दीवाना है। इधर येद्दियुरप्पा का सीएम की कुर्सी के लिए लड़ना, उधर उत्तराखंड में बहुगुणा का अपनी कुर्सी बचाने के लिए जुगत लगाना सब कुर्सीप्रेम का ही परिचायक हैं।
इसलिए इन कुर्सीप्रेमियों को मस्त रहने दीजिए। मैं तो कहता हूं शर्माजी इस कुर्सीप्रेम वाले युग में आप भी प्रेम करने के लिए एक कुर्सी ढूंढ लीजिए, वरना आप सिंगल के सिंगल रह जाएंगे। आज जो कुर्सी पर बैठे वो स्पेशल है, जो कुर्सी के सामने खड़े रहे वो कॉमन। शर्माजी मेरी बात बड़ी ध्यान से सुन रहे थे। वे बोले- आपने तो मेरी आंखें खोल दीं, लेकिन एक बात मुझे अच्छी नहीं लगी। आप बार-बार मुझे कॉमन मैन कहीं के क्यों कह रहे थे, आप कौन सा स्पेशल हो गए। मैंने आश्चर्य से उन्हें देखा और बोला- कमाल कर दिया आपने शर्माजी, पूरे मोहल्ले में हल्ला है और आपको पता ही नहीं। मुझे मोहल्ला समिति का अध्य्क्ष बनाया गया और अब कोई कुछ भी करे मैं सालों तक इस कुर्सी को नहीं छोड़ूंगा.....। शर्माजी मुझे अवाक् देखते रह गए और चल दिए...... शायद अब किसी और के पास जाकर मेरे द्वारा कुर्सी न छोड़ने का मामला उठाएंगे।
शनिवार, मार्च 24, 2012 |
Category:
व्यंग्य
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