लोग कहते हैं टेक्नॉलाजी ने इंसान के जीवन को सुगम बना दिया है, लेकिन इसने तो मेरी जिंदगी को दुर्गम बना दिया है। खबरें आ रही हैं कि करोड़ों रुपए देकर अब चांद की यात्रा की जा सकती है। बस इसी खबर ने मेरी नींद उड़ा दी है। पहले तो हम अपनी प्रियतमा को बोल बचन दे दिया करते थे कि तूझे चांद पर ले जाऊंगा, मगर ये सिरफिरे वैज्ञानिक तो सचमुच सेंटी हो गए और अब चांद की सैर कराने उतारु हो गए हैं। पिछली बार जब चांद पर जमीन खरीदने की बात आई तो मैंने अपनी प्रियतमा से कह दिया कि सब फर्जी है पर इस बार तो वो चांद पर जाने की अर्जी लेकर बैठ गई है। वैसे ये उसकी अर्जी नहीं असल में मर्जी है और मेरी जीवन का मर्ज। खैर मैंने इस बार फिर से उसे नेताजी की तरह बोल बचन देते हुए कह दिया है कि मंगल पर जाएंगे। आशा है कम से कम १५-२० साल तक मंगल पर जाने का कोई पैकेज नहीं आएगा। वैज्ञानिक शांत रहेंगे और मेरे जीवन में भी शांति कायम रहेगी।
मेरी चिंता तो खत्म हो गई लेकिन जैसा कि आप जानते हैं मैं चिंतक किस्म का हूं। अपनी चिंता खत्म हुई तो क्या पूरे जमाने की चिंता करने का अघोषित ठेका तो मैंने भगवान से लिया हुआ है वो भी बिना टेंडर भरे। सेटिंग है अपनी। बस अब जमाने की चिंता करने में जुटा हूं। वैसे चिंतक गुण के मामले में खुद को अमेरिका की टक्कर का मानता हूं। दूसरे के फटे में टांग घुसाना मेरी प्रमुख खूबियों में एक है। और अगर फटा न तो हम पहले फाड़ते हैं, फिर अपनी टांग घुसाते हैं। चांद पर जाने की खबर क्या निकली चांद के प्यारे चांद पर पहुंचने बेताब हो गए।
इन्हीं चांद के प्यारों में से एक थे हमारे कवि मित्र उन्माद कुमार 'बेताब'। बेताबजी हमें सड़क पर मिले। उनके उन्मादी चेहरे पर चांद पर जाने की बेताबी साफ दिख रही थी। मैंने तपाक से कहा- चांद पर मत जाना चांद के प्यारे। वो बोले- क्यों। मैंने कहा- पहले तो चांद पर पहुंच पाओगे नहीं आप। वो बोले मैं धन का गरीब हूं मगर कलम का अमीर हूं। मेरे अप्रकाशित कविताओं के इतने पन्ने हैं कि अगर क्रमबद्ध तरीके से जमाऊं तो यूं ही चांद तक हाईवे बना दूंगा। आप लोगों ने तो हमें और हमारी कविताओं को हमेशा हल्के में लिया है, इसलिए जा रहे हैं चांद पर पूरी तरह हलके होने। वहां तो वैसे भी हर चीज ८ गुना हल्की हो जाती है। मैंने कहा- बेताबजी, आपने जुगाड़ तो अच्छा बिठाया है लेकिन भूलकर भी चांद पर न जाना, आप क्या मैं तो कहता हूं कोई कवि चांद पर न जाए। गलती से पहुंच भी गये तो चांद आपको वहीं गड्ढे में पाट देगा।
बेताबजी ने अचरज से पूछा- ऐसा क्यों? मैंने कहा- चांद बहुत खफा है आप लोगों से, कोई उसे अप्सरा बता देता है, कोई सुंदरता की मूरत, तो कोई चंदा मामा, तो कोई दागदार बदसूरती। जिसके मन में जो आता चांद को वही बना देता है, बिना पूछे उसका लिंग परिवर्तन कर दिया जाता है। खुद को सुंदरता की मूरत कहलाए जाने पर चांद शरमा ही रहा होता है कि कोई दूसरा कवि उसे मामा पुकारने लगता है। उस पर जो थोप दिया गया, वो उसे भारतीय जनता की तरह चुपचाप सहता गया। लेकिन अब नहीं, अब आंदोलनों की बयार छाई हुई है। इंडिया अगेंस्ट करप्शन और चांद अगेंस्ट इमेजिनेशन। चांद पर इतनी गड्ढे यूं ही नहीं पड़े। ये जो आप कवि महाशय चांद पर अपनी कल्पना के हवाईजहाज छोड़ते हैं, ये क्रैश लैंडिंग होकर वहीं गिरते हैं और गड्ढे बनाते हैं। चांद को तो बेसब्री से इंतजार है कि कोई कवि वहां आए और उसे गड्ढे में गाड़कर वो अपनी गड्ढे पाटे। इतना सुनता था और बेताबजी बेताब होकर अपने घर को भागे।
इधर मुझे बेचारेलाल जी दिखाई दिए दुखी मुद्रा में। मैंने जाते ही पूछा क्या हुआ बेचारेलालजी। अपनी दुखित मुद्रा बरकरार रखते हुए बेचारेलाल जी बोले- महंगाई सातवें आसमान पर हैं, सब चीजें सातवें आसमान पर है चाहे खाने के दाम हो या सोने के। समझ नहीं आता कैसे इनकी हासिल करूं, ये तो मेरी पहुंच से बहुत दूर हो गए हैं। मुझे मौका बिलकुल उपयुक्त लगा अपना वैज्ञानिक ज्ञान दिखाने का, मैंने तुरंत मोटा चश्मा चढ़ाया और कहा- देखिए यहां भौतिकी का नियम लागू होता है- गुरुत्वाकर्षण बल का। पहले आप भी जमीन पर थे और सामानों के दाम भी, सब लेवल में था। आप जमीन पर ही रहे... मगर दाम थोड़ा ऊपर उठी। दाम थोड़ा और उपर उठी.... मगर आप तब भी जमीन पर रहे। अब दाम सातवें आसमान पर है और आप वही के वही जमीन पर। तो बस अब आप कुछ जुगाड़ बिठाइए, गुरुत्वाकर्षण बल के खिलाफ जाइए और पहुंच जाइए चांद पर.... पृथ्वी में आसमान की पांच परतें हैं... ये हो गए पांच आसमान.... दो आसमान और आगे जाइए आ गया सातवां आसमान। यहां आपको महंगाई डायन व आपकी मूलभूत चीजें दिख जाएंगी। मगर आप यहां रुकना मत.. यहां से १० किलोमीटर और आगे जाना और चांद पर उतर जाना। चांद पर आप रहेंगे तो ये सातवें आसमान की चीजें आपके नीचे ही रहेंगी और १५-२० साल बाद अगर महंगाई बढ़ते-बढ़ते चांद तक पहुंच भी गई तो भी ये आपकी पहुंच से बाहर नहीं होंगी। इतना सुनते ही पिछले आधे घंटे से दुखित मुद्रा में दिख रहे बेचारेलाल प्रसन्न हो आगे बढ़ लिए। लोग कहते हैं निंदक नियरे राखिए, मैं तो कहूंगा चिंतक नियरे राखिए... वो भी मुझ जैसा।
खैर अब आगे बढ़ा तो नेताजी दिख गए उदासी में। नेताजी को उदास देखना हमें बिलकुल गवारा न हुआ। भारत में एक इनकी ही तो प्रजाति प्रसन्न मु्द्रा में रहती है, इनको भी किसी ने नजर लगा दी। मैंने पूछा- क्या हुआ नेताजी। नेताजी बिलखते हुए बोले- जिंदगी नीरस हो गई है....। इतने घोटाले किए, इतने भ्रष्टाचार किए...किसी को नहीं छोड़ा। अब तो धरती पर कुछ रहा ही नहीं जिसमें घोटाला कर सकूं, जिंदगी नीरस हो गई है। घोटाला भी करता हूं तो लोग ध्यान नहीं देते.... जैसे घोटाला न हुआ कोई सब्जी-भाजी हो गया। हमारे मेहनत की तो कोई वैल्यू ही नहीं रह गई है। इतना सुनते ही मेरी आंखें भर आई.... मैंने कहा- बस बहुत हो गया... आप सच्चे चांद के प्यारे हैं। आप चांद पर जाइए... वहां जाकर इंधन घोटाला कीजिए। जो भी चांद घूमने आए.. उसकी वापसी का इंधन पी जाइए। चांद के १००-१५० गड्ढों पर अवैध कब्जा कर लीजिए। नेताजी ने मेरी सुझाव लपका और चांद जाने वाली अंतरिक्ष यान लपकने चल दिए।
इतने लोगों को चांद पर लेक्चर देकर हम खुश बहुत थे। पर अब भी दो लोग खुश नहीं थे। एक तो चिंतक गुण में हमारी टक्कर वाला विदेशी 'अमेरिका' व दूसरी हमारी देसी गर्ल.. हमारी प्रियतमा। इतने लोगों को हमने चांद पर जाने के लिए उत्प्रेरित कर दिया तो अमेरिका घबरा गया कि अब तक तो बस ३ अमेरिकी ही चांद पर पहुंच पाए थे... इसके बस चला तो ये तो १० प्रतिशत भारतीयों को वहीं बसा देगा, फिर अमरीकियों का नामलेवा कौन होगा। इसलिए अब अमेरिका हमारे पीछे लग गया है। और दूसरी हमारी प्रियतमा, जो वैसे ही हमारे पीछे लगी रहती है...अब और पीछे पड़ गई है। क्योंकि किसी ने उसको बता दिया कि मंगल पर १५-२० साल तक जाने का कोई चांस नहीं है। और अब वो फिर पीछे पड़ गई है अपनी चांद पर जाने की अपनी अर्जी लेकर... मतलब मर्जी लेकर... मतलब हुक्म लेकर...। अब मुझे जरुरत है एक चिंतक की, एक शुभचिंतक की, एक महाचिंतक की.....कोई है।
मेरी चिंता तो खत्म हो गई लेकिन जैसा कि आप जानते हैं मैं चिंतक किस्म का हूं। अपनी चिंता खत्म हुई तो क्या पूरे जमाने की चिंता करने का अघोषित ठेका तो मैंने भगवान से लिया हुआ है वो भी बिना टेंडर भरे। सेटिंग है अपनी। बस अब जमाने की चिंता करने में जुटा हूं। वैसे चिंतक गुण के मामले में खुद को अमेरिका की टक्कर का मानता हूं। दूसरे के फटे में टांग घुसाना मेरी प्रमुख खूबियों में एक है। और अगर फटा न तो हम पहले फाड़ते हैं, फिर अपनी टांग घुसाते हैं। चांद पर जाने की खबर क्या निकली चांद के प्यारे चांद पर पहुंचने बेताब हो गए।
इन्हीं चांद के प्यारों में से एक थे हमारे कवि मित्र उन्माद कुमार 'बेताब'। बेताबजी हमें सड़क पर मिले। उनके उन्मादी चेहरे पर चांद पर जाने की बेताबी साफ दिख रही थी। मैंने तपाक से कहा- चांद पर मत जाना चांद के प्यारे। वो बोले- क्यों। मैंने कहा- पहले तो चांद पर पहुंच पाओगे नहीं आप। वो बोले मैं धन का गरीब हूं मगर कलम का अमीर हूं। मेरे अप्रकाशित कविताओं के इतने पन्ने हैं कि अगर क्रमबद्ध तरीके से जमाऊं तो यूं ही चांद तक हाईवे बना दूंगा। आप लोगों ने तो हमें और हमारी कविताओं को हमेशा हल्के में लिया है, इसलिए जा रहे हैं चांद पर पूरी तरह हलके होने। वहां तो वैसे भी हर चीज ८ गुना हल्की हो जाती है। मैंने कहा- बेताबजी, आपने जुगाड़ तो अच्छा बिठाया है लेकिन भूलकर भी चांद पर न जाना, आप क्या मैं तो कहता हूं कोई कवि चांद पर न जाए। गलती से पहुंच भी गये तो चांद आपको वहीं गड्ढे में पाट देगा।
बेताबजी ने अचरज से पूछा- ऐसा क्यों? मैंने कहा- चांद बहुत खफा है आप लोगों से, कोई उसे अप्सरा बता देता है, कोई सुंदरता की मूरत, तो कोई चंदा मामा, तो कोई दागदार बदसूरती। जिसके मन में जो आता चांद को वही बना देता है, बिना पूछे उसका लिंग परिवर्तन कर दिया जाता है। खुद को सुंदरता की मूरत कहलाए जाने पर चांद शरमा ही रहा होता है कि कोई दूसरा कवि उसे मामा पुकारने लगता है। उस पर जो थोप दिया गया, वो उसे भारतीय जनता की तरह चुपचाप सहता गया। लेकिन अब नहीं, अब आंदोलनों की बयार छाई हुई है। इंडिया अगेंस्ट करप्शन और चांद अगेंस्ट इमेजिनेशन। चांद पर इतनी गड्ढे यूं ही नहीं पड़े। ये जो आप कवि महाशय चांद पर अपनी कल्पना के हवाईजहाज छोड़ते हैं, ये क्रैश लैंडिंग होकर वहीं गिरते हैं और गड्ढे बनाते हैं। चांद को तो बेसब्री से इंतजार है कि कोई कवि वहां आए और उसे गड्ढे में गाड़कर वो अपनी गड्ढे पाटे। इतना सुनता था और बेताबजी बेताब होकर अपने घर को भागे।
इधर मुझे बेचारेलाल जी दिखाई दिए दुखी मुद्रा में। मैंने जाते ही पूछा क्या हुआ बेचारेलालजी। अपनी दुखित मुद्रा बरकरार रखते हुए बेचारेलाल जी बोले- महंगाई सातवें आसमान पर हैं, सब चीजें सातवें आसमान पर है चाहे खाने के दाम हो या सोने के। समझ नहीं आता कैसे इनकी हासिल करूं, ये तो मेरी पहुंच से बहुत दूर हो गए हैं। मुझे मौका बिलकुल उपयुक्त लगा अपना वैज्ञानिक ज्ञान दिखाने का, मैंने तुरंत मोटा चश्मा चढ़ाया और कहा- देखिए यहां भौतिकी का नियम लागू होता है- गुरुत्वाकर्षण बल का। पहले आप भी जमीन पर थे और सामानों के दाम भी, सब लेवल में था। आप जमीन पर ही रहे... मगर दाम थोड़ा ऊपर उठी। दाम थोड़ा और उपर उठी.... मगर आप तब भी जमीन पर रहे। अब दाम सातवें आसमान पर है और आप वही के वही जमीन पर। तो बस अब आप कुछ जुगाड़ बिठाइए, गुरुत्वाकर्षण बल के खिलाफ जाइए और पहुंच जाइए चांद पर.... पृथ्वी में आसमान की पांच परतें हैं... ये हो गए पांच आसमान.... दो आसमान और आगे जाइए आ गया सातवां आसमान। यहां आपको महंगाई डायन व आपकी मूलभूत चीजें दिख जाएंगी। मगर आप यहां रुकना मत.. यहां से १० किलोमीटर और आगे जाना और चांद पर उतर जाना। चांद पर आप रहेंगे तो ये सातवें आसमान की चीजें आपके नीचे ही रहेंगी और १५-२० साल बाद अगर महंगाई बढ़ते-बढ़ते चांद तक पहुंच भी गई तो भी ये आपकी पहुंच से बाहर नहीं होंगी। इतना सुनते ही पिछले आधे घंटे से दुखित मुद्रा में दिख रहे बेचारेलाल प्रसन्न हो आगे बढ़ लिए। लोग कहते हैं निंदक नियरे राखिए, मैं तो कहूंगा चिंतक नियरे राखिए... वो भी मुझ जैसा।
खैर अब आगे बढ़ा तो नेताजी दिख गए उदासी में। नेताजी को उदास देखना हमें बिलकुल गवारा न हुआ। भारत में एक इनकी ही तो प्रजाति प्रसन्न मु्द्रा में रहती है, इनको भी किसी ने नजर लगा दी। मैंने पूछा- क्या हुआ नेताजी। नेताजी बिलखते हुए बोले- जिंदगी नीरस हो गई है....। इतने घोटाले किए, इतने भ्रष्टाचार किए...किसी को नहीं छोड़ा। अब तो धरती पर कुछ रहा ही नहीं जिसमें घोटाला कर सकूं, जिंदगी नीरस हो गई है। घोटाला भी करता हूं तो लोग ध्यान नहीं देते.... जैसे घोटाला न हुआ कोई सब्जी-भाजी हो गया। हमारे मेहनत की तो कोई वैल्यू ही नहीं रह गई है। इतना सुनते ही मेरी आंखें भर आई.... मैंने कहा- बस बहुत हो गया... आप सच्चे चांद के प्यारे हैं। आप चांद पर जाइए... वहां जाकर इंधन घोटाला कीजिए। जो भी चांद घूमने आए.. उसकी वापसी का इंधन पी जाइए। चांद के १००-१५० गड्ढों पर अवैध कब्जा कर लीजिए। नेताजी ने मेरी सुझाव लपका और चांद जाने वाली अंतरिक्ष यान लपकने चल दिए।
इतने लोगों को चांद पर लेक्चर देकर हम खुश बहुत थे। पर अब भी दो लोग खुश नहीं थे। एक तो चिंतक गुण में हमारी टक्कर वाला विदेशी 'अमेरिका' व दूसरी हमारी देसी गर्ल.. हमारी प्रियतमा। इतने लोगों को हमने चांद पर जाने के लिए उत्प्रेरित कर दिया तो अमेरिका घबरा गया कि अब तक तो बस ३ अमेरिकी ही चांद पर पहुंच पाए थे... इसके बस चला तो ये तो १० प्रतिशत भारतीयों को वहीं बसा देगा, फिर अमरीकियों का नामलेवा कौन होगा। इसलिए अब अमेरिका हमारे पीछे लग गया है। और दूसरी हमारी प्रियतमा, जो वैसे ही हमारे पीछे लगी रहती है...अब और पीछे पड़ गई है। क्योंकि किसी ने उसको बता दिया कि मंगल पर १५-२० साल तक जाने का कोई चांस नहीं है। और अब वो फिर पीछे पड़ गई है अपनी चांद पर जाने की अपनी अर्जी लेकर... मतलब मर्जी लेकर... मतलब हुक्म लेकर...। अब मुझे जरुरत है एक चिंतक की, एक शुभचिंतक की, एक महाचिंतक की.....कोई है।
मंगलवार, जुलाई 10, 2012 |
Category:
व्यंग्य
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