सांप एक बहुत ही भोला-भाला, मासूम सा जीव है। अजी, सच कह रहा हूं। अब जो भोलेनाथ के सर की शोभा बढ़ाता है वो भी तो भोला होगा ना। नीतिवचन में कहा गया है कि सीधे वृक्ष काट दिए जाते हैं और टेढ़े-मेढ़े वृक्ष ज्यों के त्यों रहते हैं। ठीक उसी तरह सीधे-सादे सांप का मनुष्य ने बहुत शोषण किया। कभी बिना उसकी इजाजत के उसे मुहावरों में जबरन ठूंस-ठूंसकर उसे खलनायक का दर्जा दे दिया तो कभी फिल्मों में उसे फिट करके पैसे बना लिए और सांपों को रायल्टी तक नहीं दिया। यहां तक तो बेचारे सांप ने किसी तरह बर्दाश्त कर भी लिया मगर हद तो तब हो गई जब इंसानों ने उसके निजी जीवन तक को नहीं छोड़ा। जंगलों में कैमरे लगा दिए। नाग-नागिन रोमांस करने जाएं तो उसकी शूटिंग, बिल से बाहर निकले तो शूटिंग, बिल में छुपे रहे तो भी शूटिंग। इतनी शूटिंग हो गई कि दहशत में कई नागिनों ने तो अंडे देना ही बंद कर दिए। प्रणय के लिए जा रहे एक सांप को एक जीव वैज्ञानिक ने रास्ते में ही उठा लिया और उंगली दिखा-दिखाकर उसकी विशेषताएं बताने लगा। बेबस सा सांप फुफकारते हुए बोला- " मेरी जितनी विशेषताएं बताना है बता ले, लेकिन अगर आज मैं अपनी प्रेमिका से नहीं मिल पाया तो सोच लेना तुझे तेरी सुहागरात नहीं मनाने दूंगा।" इंसानों की आबादी तो बढ़ती रही लेकिन सांपों की आबादी पर अल्पविराम लग गया।
फिर भी सांप सब कुछ रेंगते-रेंगते सहते रहे। सांप के आहार में चूहे, गिलहरी जैसे छोटे जानवर आते हैं लेकिन इंसानी करतूत के कारण इनका आहार भी छिन गया। गिलहरी और मेंढक तो ढूंढे नहीं मिलते हैं फिर भी जिस दिन मिल गए समझो उस दिन सांपों की दिवाली होती थी। इसलिए सांपों ने मजबूरन चूहे को ही अपने मेनू में टॉप पर रखा था पर यहां भी उनका निवाला छिन गया। यूरिया और खाद मिले अनाज खाने वाले चूहे को खाने से कई सांपों के पेट में मरोड़ होने लगा और कई तो मौके पर ही लुढ़क गए। सांपों की ऐसी दुर्गति देखकर सांपों ने प्रकृति के विपरीत जाकर शाकाहारी होने का फैसला किया। ऐसा ही एक शाकाहारी नाग सुबह अपनी प्रेमिका नागिन के लिए भोजन की तलाश में निकला। नागपंचमी के दिन तो दोनों ने दूध में "मिल्क बाथ" लिया लेकिन उसके बाद से उनको कोई पूछने नहीं आया और तब से उपवास ही चल रहा है। सांप सोचने लगा ये नागपंचमी रोज क्यों नहीं आती। सोचते-सोचते वह हनुमान मंदिर के पास पहुंचा। हनुमान जी की मूर्ति के पास भोग में चढ़ने वाला सामान रखा हुआ था। मिठाई, फल, आदि। सांप ने सोचा यहीं फन मारा जाए, मंदिर भी पास ही में है पांच मिनट में काम निपट जाएगा। बेचारा सब बटोर ही रहा था कि उसे किसी ने देख लिया। उसे देखने वाला सनसनी की खोज में निकला टीआरपी की मार से पीड़ित न्यूज चैनल का सनसनाता रिपोर्टर था। सांप को हनुमानजी को चढ़ा भोग खाता देख उसने उसे हनुमानभक्त सांप की पदवी दे दी और फौरन अपने जैसे अन्य सनसनीपिपासु पत्रकारों को वहां मिनटों में खड़ा कर दिया। लोग इकट्ठे होते चले गए, दो आए, चार आए, आठ आए, पलक झपकते ही पूरा मंदिर हाऊसफुल हो गया। कुछ देर बाद तो हनुमानभक्त सांप को देखने टिकट लगने लगा था। कुछ चलताऊ किस्म के टपोरियों ने तो वहां साइड में साइकिल और गाड़ी स्टैंड भी लगा दिया। सायकिल का १० मोटसायकिल का २० और कार का ५० रुपए मात्र। हां प्रेसवालों और वीआईपी लोगों के लिए मुफ्त।
हनुमानभक्त सांप ने अब तक कईयों का बेड़ा पार लगा दिया था। सुबह से दोपहर हो गई वह सांप उसी अवस्था में अपनी कुंडली में मिठाई, फल और भोग का प्रसाद लपेटे हुआ था। वो तो आया था ५ मिनट के लिए लेकिन इन खुरापानी इंसानों ने ५ घंटे रुकवा दिया। इतने में ही किसी पंडित ने घोषणा की कि यह सांप परम हनुमान भक्त है। पिछले जनम में ये परम हनुमान भक्त था और इस जन्म में सर्प रूप में फिर हनुमानजी के चरणों में अपनी भक्ति दिखाने आया है। सांप सोचने लगा- "खाली पेट न होय भक्ति, मैं तो खाना जुगाड़ने आया था या ये लोग मुझसे भक्ति करवाने पर तुले हैं। इस पंडित को अपने इस जन्म का ठीक से पता नहीं और मेरे पिछले जनम की कहानी सुना रहा है।" सभी रिपोर्टर पंडित की इस बात को लाइव दिखाने लगे। पंडित भी खुद को कैमरे के सामने पाकर अपने लुक पर ध्यान देने लगा और बीच-बीच में अपने बाल और धोती भी ठीक करता। इधर सांप बाहर निकलने के लिए जरा सी हलचल क्या करता कि सारे कैमरे और माइक उसी की ओर घूम जाते। सांप की तरह दिख रहे माइक उस हनुमान भक्त सांप को और भयभीत कर रहे थे। मगरमच्छ के मुंह की खुले हुए कैमरे उस हनुमानभक्त सांप को खा जाने को आतुर थे।
इसी बीच थका हुआ सांप जरा देर के लिए सो गया। तभी किसी ने हल्ला कर दिया कि हनुमानभक्त सांप को हनुमानजी के चरणों में अद्भुत शांति का अनुभव मिल रहा है, तभी वो उनके पैरों में सो गया। देखों किस तरह खुद को हनुमानजी के चरणों में खुद को अर्पित कर दिया है। इतना सुनते ही सांप फिर जाग गया। वह भगने के प्रयास में दाएं मुड़ता तो कोई एक नई कहानी के साथ पेश हो जाता है। बाएं मुड़ता तो फिर कोई कहानीकार नई कहानी बना देता। ऐसे लग रहा था मानो देश के सारे कहानीकार यहीं उपस्थित हो गए हैं और सांप के साथ अपना बैर निभा रहे हैं। एक चलते-फिरते भजन गायक ने तो तत्काल हनुमानभक्त सांप के ऊपर आरती बना दी और उसका आरती गायन भी शुरू कर दिया। कुल मिलाकर सबकी अपनी अलग-अलग कहानी थी, पर सबका हीरो एक ही था- "हनुमानभक्त सांप"।
अभी ये सब चल ही रहा था कि हनुमानभक्त सांप को दूध पिलाने लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। कुंवारे-कुंवारियां विशेषकर दूध पिलाने आए क्योंकि पंडितजी ने घोषणा कर दी थी कि इस हनुमानभक्त सांप को दूध पिलाने वाले कुवारे-कुवारियों की शादी महीनेभर के भीतर हो जाएगी। सांप सोचने लगा- "अबे बेवकूफों, तुम लोगों के चक्कर में मेरी खुद की शादी नहीं हुई। बमुश्किल एक नागिन मिली है उसी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में हूं और तुम लोग मुझे दूध पिलाकर अपनी शादी करवाने के जुगाड़ में हो। अरे निर्दयियों अगर मैंने इतना दूध पी लिया तो मेरा रंग तो ऐसे ही काले से गोरा हो जाना है और जात बाहर हो जाऊंगा वो अलग।" फिर भी लोग हनुमानभक्त सांप को दूध पिलाने लड़ते-मरते रहे।
हनुमानभक्त सांप बाहर निकलने का रास्ता तलाशने लगा। इसी जुगत में वह हनुमानजी की मूर्ति के चक्कर लगाने लगा। तो लोग इसका अर्थ निकालने लगे कि सांप भक्तिधुन में नाच रहा है और उसे मोक्ष मिलने वाला है। सांप भी परिक्रमा करते हुए सोचने लगा- "तुम लोगों को जो सोचना है सोचो, एक बार यहां से निकल जाऊं कसम खाता हूं दोबारा नहीं आऊंगा। मेरे लिए तो फिलहाल यहां से निकलना ही मोक्ष समान है।"
शाम से रात हो गई। सांप भी बाहर न जाने के कारण उकता गया था। सबकी नींद उड़ाने वाले रिपोर्टर धीरे-धीरे नींद की गिरफ्त में आ गए। सांप ने मौका देखा और अपनी केंचुली निकालकर वहां से खिसक लिया। नींद खुलने के बाद रिपोर्टरों ने जब सांप को गायब देखा और सिर्फ उसकी केंचुली देखी तो फिर टीवी पर ब्रैकिंग न्यूज फ्लैश करने लगे- हनुमानभक्त सांप हनुमानजी में समा गया। ऐसी अद्भुत भक्ति कभी किसी ने देखी न होगी। सांप अपनी केंचुली यहां छोड़कर हनुमानजी की मूर्ति में समा गया। जय हो हनुमानभक्त सांप की। सब रिपोर्टर फिर से हनुमानजी की मूर्ति और केंचुली की फोटो उतारने में मशगूल हो गए। लोगों द्वारा हनुमानभक्त सांप की आरती गायन और कहानी लेखन का कार्यक्रम फिर से शुरू हो गया। सांप दूर से ही यह सब देखता रहा और वापस चले गया।
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बुधवार, सितंबर 08, 2010 |
Category:
व्यंग्य
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