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पहली बार मैंने उसे २००४ में देखा था। वो लहराती, बलखाती केन्द्र में आई थी। मैंने तभी उसे अपना प्रेमपत्र(वोट) दे दिया था। उस समय वो थोड़ी लंगड़ी थी। दरअसल उसका "लेफ्ट" पांव उसे बार-बार दगा दे जाता था। वो जब भी आगे बढ़ना चाहती उसका "लेफ्ट" पैर साथ छोड़ जाता। २००९ में उसने फिर से मुझे पुकारा और मदद मांगी। मैंने तब भी उसे अपना प्रेमपत्र दिया और लड़-भिड़कर दूसरों से भी दिलवाया। मैं इस बार यह पुख्ता करना चाहता था कि मेरी यूपा लंगड़ी नहीं रहेगी। और भगवान ने मेरी सुन ली। मेरी यूपा इस बार अच्छे से चलने-फिरने लायक थी। हालांकि वो अब भी बैसाखियों के सहारे थी लेकिन पहले से स्थिर थी। मैंने मोहल्ले में मिठाई बंटवाई। लोग मुझे पागल कहते थे लेकिन क्या करें दिल तो बच्चा है जी, प्यार दीवाना होता है और हम दिल दे चुके सनम।
जमाना प्यार का दुश्मन होता ही है। हमारे भी दुश्मन कम न थे। लोग हमारे सामने यूपा की बुराई करते तो हमारा खून खौल उठता था। हमारे पिताजी भी यूपा को ताने मारते। पापा तो वैसे भी प्यार-व्यार के खिलाफ होते ही हैं। कल जब मैं दोपहर को सो रहा था तब मैंने लोगों के चिल्लाने की आवाज सुनी। बाहर निकलकर देखा तो लोग पेट्रोल की बढ़ी कीमतों के विरोध में हमारी यूपा का पुतला जलाने और उसका घेराव करने निकले थे। हमारे तन-बदन में आग लगाई। हमारे रहते कोई हमारी यूपा का घेराव करे। हमने एक कार्यकर्ता को बुलाकर पूछा कि ये क्या कर रहे हो। कार्यकर्ता कड़क आवाज में बोला- इस दुनिया के हो कि कहां के हो, दिख नहीं रहा हम सरकार का पुतला जलाने जा रहे हैं। इतना सुनना था कि हमारा पारा चढ़ गया, मैंने मुटठी बांधी एक जोरदार मुक्का उस कार्यकर्ता के मुंह पर जमा दिया। वो कार्यकर्ता वहीं ढेर हो गए। हम बाहें खोलकर अपनी विजय का जश्न मनाने लगे। लेकिन इतने में ही उसके चार-पांच साथी ने आकर हमारी हड्डी-पसली एक दी। हम कराहते पर हुए फिर बिस्तर पर पड़ गए।
हम समझ गए कि ये दुनिया हमारे प्यार को कभी नहीं समझ सकेगी। अरे भाई यूपा हमसे बहुत प्यार करती है और हमारे स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहती है। इसलिए जब हम तोंदियल होने लगे तो उसने हमारी स्वास्थ्य की खातिर अनाजों, सब्जियों, तेल के दाम बढ़ा दिए ताकि हम कम खाए। हम लाख प्रयास के बाद भी जब खुद को कम खाने के लिए प्रेरित न कर सके तो मजबूरी में यूपा को अनाज के दाम बढ़ाने ही पड़ गए। पर लोग ये प्यार कहां समझेंगे। कुछ दिनों से हम कुछ ज्यादा ही आरामपरस्त हो गए थे। हम लाख सोचते कि वॉक पर जाया करेंगे पर नहीं जा पाते। कल-कल करते महीने बीत गए लेकिन हम वॉक पर नहीं गए। ऐसे समय में हमारी यूपा को फिर कड़ा कदम उठाना पड़ा हमारे स्वास्थ्य के लिए। उसने पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ा दिए ताकि अब हमें पैदल चलना पड़े और हम फिर से चुस्त-दुरुस्त हो जाएं और साथ ही रसोई गैस के दाम भी बढ़ा दिए ताकि हम कम खाएं। क्या एक प्रेमिका को अपने प्रेमी का ख्याल रखने का हक नहीं है। वो जब भी हमें प्यार करती है, लोग उसका तिरस्कार करते है, हाहाकार करते हैं। लोगों के इस रवैये ने हमें दुखी कर दिया है। हमारे घरवाले भी यूपा को बुरा-भला कहते रहते हैं।
हाल में जब एंडरसन मुद्दा उठा तो लोगों ने कहा कि यूपा आखिर एंडरसन को वापस क्यूं नहीं लाती। तब हमने कहा कि यूपा संस्कारी और गुणी है। वो अतिथि देवो भवः में विश्वास रखती है। अब एंडरसन बाहर से आया था अर्थात अतिथि था, इसलिए अगर यूपा ने उस अतिथि को सकुशल उसके देश भेज दिया तो क्या बुरा किया। अतिथि देवो भवः का पालन करना पाप है क्या। अब जबकि अफजल और कसाब अब तक फांसी से बचे हुए हैं तो फिर कुछ लोगों ने सवाल उठाना शुरू कर दिया कि यूपा ऐसा क्यों कर रही है, वो उनको फांसी क्यों नहीं देती। मैंने उनको समझाने की कोशिश की और कहा कि मेरी यूपा बहुत सहृदयी है, वह पापी को नहीं पाप को खत्म करने में यकीन रखती है। शायद वो इंतजार कर रही है कि अफजल और कसाब के अंदर के शैतान खत्म हों। तो भी उन लोगों ने मेरी बात नहीं मानी और लगे धरना-प्रदर्शन करने।
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सोमवार, जून 28, 2010 |
Category:
व्यंग्य
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