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मनुष्य और मच्छरों का संबंध आदिकाल से रहा है। जब पहली बार मनुष्य सोया बस तब से ही मच्छरों ने मनुष्य के सिर पर भिनभिनाना और खून चूसकर उसकी नींद हराम करना शुरू कर दिया था। मनुष्य ने कई तरीके आजमाए मच्छरों को अपने से दूर करने के लेकिन मच्छरों का मनुष्यों के प्रति प्रेम और प्रगाढ़ होता गया। मनुष्य जंगल छोड़कर शहर आए तो मच्छर भी शहर आ धमके। मनुष्य ने मच्छर अगरबत्ती, कॉइल, स्प्रे से लेकर न जाने क्या-क्या उपाय नहीं किए मच्छरों को अपने से दूर करने के लेकिन मच्छर दुगुनी ताकत के साथ पलटवार करते हुए मनुष्य का खून चूसते रहे। कॉइल, स्प्रे झेल-झेलकर मच्छर इतने ढीठ हो गए कि आखिर में मनुष्य ने हार मान ली और मच्छरों को अपने घर का सदस्य ही मान लिया। कहते हैं कोई भी प्राणी एक-दूसरे के साथ लंबे समय तक जुड़े रहें तो दोनों के बीच गुणों का आदान-प्रदान हो जाता है, तो मनुष्य और मच्छरों में भी गुणों का आदान-प्रदान होना लाजिमी था। मनुष्य ने मच्छरों से चूसने का गुण सीखा और इतने अच्छे से सीखा कि सब एक-दूसरे का खून चूसने में लगे हैं। मालिक नौकर का खून चूस रहा है, अमीर गरीब का, ताकतवर कमजोर का, नेता जनता और लोकतंत्र का खून चूस रहे हैं। जिसे जहां जैसे मौका मिले बस लगा है खून चूसने में। ये तो वो गुण था जो मनुष्य को मच्छरों से मिला,  अब बात करते हैं मच्छरों की। इतने लंबे समय से मनुष्य के साथ रहने से मच्छरों में भी मनुष्य के कुछ गुण (अर्थात अवगुण) तो आए ही होंगे। बस यहीं से मच्छर जगत में हाहाकार मच गया। मच्छरों में मानवीय गुण आते ही मच्छरों की एकता भंग हो गई। कुछ मच्छर बागी नेताओं का खून पीकर आ गए और उनमें भी बागी गुण आ गए। अब वे वापस आकर मच्छरों के पीएम की सरकार गिराने में लग गए। मच्छरों का पीएम समझ गया कि ये बागी नेता का खून पीकर आ गये हैं इसलिए बौरा रहे हैं। उसने उन बागी मच्छरों को डॉ.मच्छर के पास भेज दिया। उस डॉ.मच्छर ने भी भ्रष्ट डॉक्टर का खून पिया था और उसमें वे वैसे ही गुण आ गए थे। वो भी अब इलाज करने के बहाने ज्यादा पैसे ऐंठने लगा और पेट में दर्द होने पर आपरेशन कर किडनी निकालने में माहिर हो गया था। बागी मच्छरों में अब तक नेता के तमाम गुण आ गए थे। उन्होंने डॉ.मच्छऱ को सेट कर उसे मंत्री पद का लालच दिया और पीएम को पागल करार देने को कहा ताकि सरकार गिर जाए। लेकिन मच्छरों के पीएम ने भी पहुंचे हुए जुगाड़ू नेता का खून पीया था, उसने पहले ही उन बागी नेताओं और डॉक्टर को ठिकाने लगा दिया। और अपनी सरकार बचाने के लिए उन मच्छरों से हाथ मिला लिया जिनसे वो कल तक नजरें भी नहीं मिलाना चाहता था। जुगाड़ू नेता का खून चूस-चूसकर वो भी कुर्सी की राजनीति करने में माहिर हो चुका था।

अब महिला मच्छरों का हाल सुनिए। महिला मच्छरों ने सास-बहू सीरियल में काम करने वाले अभिनेत्रियों का खून  चूस लिया बस तब से वे भी साजिशें करने में जुट गई। अब इंसानों का खून चूसना उनका मकसद नहीं रहा अब वे एक दूसरे का खून चूसने का ही मौका तलाशती रहतीं। मच्छर सास मच्छर बहू को नीचा दिखाने में लगी रहती तो मच्छर बहू सास को ऊपर भेजने की साजिश  करती।


मच्छरों में मानवीय गुणों (अवगुणों)  के आते ही मच्छऱ समाज तहस नहस हो गया। उच्च वर्ग के मच्छर निम्न वर्ग के मच्छरों का हक मारने लगे तो निम्न वर्ग के मच्छर भी कम नहीं थे, वे भी आरक्षण के लिए आंदोलन करने में भिड़ गए। पहले मच्छर आजादी के साथ इंसानों का खून पीते थे पर अब खून कोटे से मिलने लगा। भ्रष्ट मच्छरों ने इसमें रिश्वतखोरी करना चालू कर दिया। अब खून पीने के लिए इन भ्रष्ट मच्छरों को रिश्वत देना पड़ता था। मच्छरों में भी जलन, ईर्ष्या की भावना आ गई थी और वे एक-दूसरे का ही खून पीने लगे। कुछ चोर-डकैत और भाई टाईप के मच्छर भी पैदा हो गए जो मच्छरों का ब्लड बैंक, वही बैंक जहां पर मच्छरों ने इतना सालों से इंसान का खून चूस-चूसकर जमा किया था, को लूटने लगे। भाई टाइप के मच्छर आम मच्छरों से हफ्ता वसूलने लगे। वहीं मिलावटखोर दुकानदार मच्छर खून में पानी मिलाकर मच्छरों को बेचने लगा, इससे मच्छरों के स्वास्थ्य में भारी गिरावट आई और पहले के मुकाबले वे कमजोर हो गए। अब वे पहले की तरह फुर्ती से मनुष्यों के सर पर भिनभिनाकर भाग नहीं पाते थे और अब तो कोई मरियल आदमी भी उनको मार देता था। मच्छर भी अब मनु्ष्यों की तरह आरामपरस्त हो गए थे इस कारण जो मच्छऱ बीमारी फैलाने में माहिर थे अब खुद ही बीमारी के शिकार होने लगे। वे अब उड़कर इंसानों का खून पीने के बजाए बोतल से खून पीने लगे। खून पी-पीकर वे मधुमेह के रोगी बन गए। इससे भ्रष्ट डॉक्टर मच्छरों की चांदी हो गई और उनके अस्पताल हरे-भरे हो गए।

युवा मच्छरों की तो बात ही निराली थी। युवा मादा मच्छरों ने जब से करीना कपूर का खून पीया बस तब से वे भी जीरो फिगर की दीवानी हो गई। वे भी बस अब स्लीम ट्रिम होने में जुट गई। युवा नर मच्छरों ने भी सलमान, ऋतिक जैसे हीरो का खून पीया था। बस वे भी लग गए बॉडी बनाने में ताकि मादा मच्छरों को रीझा सकें। एक वृद्ध मच्छर जिसने इंसानों का खून न पीने की कसम खाई थी ताकि उसमें उसके गुण न आए, कोने में चुपचाप बैठे यह सब देख रहा था। मच्छरों के इस हाल से वो क्षुब्ध था। लेकिन आज उसने भी अपने कसम तोड़ दी और ऐसे बुड्ढे का खून पी लिया जिसमें आज भी जवानी कूट-कूटकर नहीं ठूंस-ठूंसकर भरी थी। अब उसे भी इस उम्र में शादी करने का चस्का लग गया और वो निकल पड़ा मेट्रीमोनी साइट्स को सर्च मारने।

मच्छरों का यह हाल देखने के बाद अब कु्त्ते, बिल्लियों, गायों आदि जानवर काफी सहमे हुए थे। वे अब इंसानों के साथ नहीं रहने चाहते थे। उन्होंने इंसानों से यह सोचकर दूरी बना ली कि इंसानों के साथ रहकर मच्छरों का यह हाल हो गया है। अगर हम भी कुछ समय और इंसानों के साथ रहे तो हम में भी इसके गुण आ जाएंगे। इसलिए इंसानों से दूर रहने में ही भलाई है....।
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धोनी की कप्तानी वाली टीम इंडिया टी-20 वर्ल्ड कप क्या नहीं उठा पाई हमारे मित्र मोंटी क्रिकेटिया ने पूरे मोहल्ले को सर पर उठा लिया। अपने घर से पिछले धरने-प्रदर्शन का अधजला पुतला उठाकर और उस पर धोनी का पोस्टर चिपकाकर निकल आए चौक पर धोनी का पुतला जलाने।


मैं दूर खड़ा उसको देख रहा था। जैसे ही वो पुतले में आग लगाने लगा मैंने रोकते हुए कहा, अरे बंधु क्या हुआ? इतने तमतमाए हुए क्यों हो और धोनी के पुतले को लिए हुए कहां फिर रहे हो?

उसने पुतले को एक किनारे पटकते हुए कहा- धोनी अब कप्तान रहने लायक नहीं है, दो बार टीम इंडिया टी-20 विश्व कप से बाहर हो गई है। इसलिए मैं चौक पर धोनी का पुतला जलाकर अपना गुस्सा निकालूंगा।

मैंने टोकते हुए कहा- तुम भी खूब हो। कल तक जिस धोनी के छक्कों पर तुम तालियां पीट रहे थे, आज उसी के तुम छक्के छुड़ा रहे हो। ऐसा कर दिया धोनी ने कि तुम उसके पीछे पड़ गए हो?

मोंटी बोला- मुझे धोनी से नहीं धोनी के सफाई से परेशानी है?

मैं चौंकते हुए बोला- अब भला धोनी की सफाई से तुम्हें क्यों परेशानी होने लगी। बड़े-बुजुर्गों ने भी कहा है साफ-सफाई से रहना चाहिए।तो इसमें परेशानी कैसी?

मोंटी समझाते हुए बोला- अरे नहीं, मैं उस सफाई की बात नहीं कर रहा बल्कि उस सफाई की बात कर रहा हूं जो धोनी हारने के बाद बार-बार सबको दे रहे हैं। चुपचाप अपनी हार क्यों नहीं मान लेता।

मैंने उसे समझाया, देखो धोनी अब एक ब्रांड बन चुका है। कितनी कंपनियों का वह ब्रांड एंबेसडर है। उसने चॉकलेट, पेन, पेंसिकल से लेकर गाड़ी, मोबाइल और कपड़े तक बेचे हैं। हो सकता है उसे किसी डिटर्जेंट कंपनी ने अपना ब्रांड एंबेसडर बना लिया हो और धोनी सफाई देने के बहाने उसी डिटर्जेंट का प्रचार कर रहे हों कि फलां डिटर्जेंट लगाओ और हार के दाग मिटाओ।

मोंटी खीझते हुए बोला- धोनी बहाना बना रहा है कि आईपीएल की नाइट पार्टियों के कारण वर्ल्ड कप में उनकी हार हुई है। किसने बोला था रात-रातभर नाचने-गाने? मुझे तो लगता है कि धोनी को अब सिर्फ आईपीएल में ही दिलचस्पी है वर्ल्ड कप जीतने में उसका अब मन रहीं रहा।

मैंने अपना तर्क रखते हुए कहा- देखो मैं तो धोनी को गलत नहीं मानता। अब धोनी ने एक बार वर्ल्ड कप जीत लिया, हो गया। अब तुम चाहते हो कि वह हर बार जीते। हो सकता है यह धोनी का उसूल हो कि एक बार जो चीज उठा ली उसे दोबारा नहीं उठाएंगे इसलिए पहला टी-20 वर्ल्ड कप जीतने के बाद बाकी दोनों वर्ल्ड कप से वे जल्दी ही बाहर हो गए। वैसे भी टी-20 वर्ल्ड कप तो दो साल में एक बार आता है पर आईपीएल तो हर साल होता है वो भी दो महीने के लिए। कहां वर्ल्ड कप के 3-4 मैच और कहां आईपीएल के 14-15 मैच वो भी एक के बाद एक। सांस लेने तक की फुर्सत नहीं, अब तुम ही बताओ वर्ल्ड कप में ज्यादा मेहनत लगती है कि आईपीएल में। इस साल तो आईपीएल में धोनी की चेन्नई टीम जीत गई। अगले साल फिर नीलामी होगी और धोनी की बोली और बढ़ेगी शायद आसमान छू जाए ऐसे में आईपीएल पर ध्यान देना यादा जरूरी है। वर्ल्ड कप में खेले तो बस मैच फीस मिलनी है लेकिन आईपीएल में तो हर चौके-छक्के और कैच पर पैसा ही पैसा। वर्ल्ड कप में कुछ मेहनत नहीं करना पड़ता वो तो कोई भी जीत जाएगा लेकिन आईपीएल में तो मेहनत ही मेहनत है। पहले ऊंचे दाम पर बोली लगने की मेहनत, फिर ग्यारह देशी-विदेशी खिलाड़ियों के बीच अपनी जगह बनाने की मेहनत, छक्के पे छक्के लगाने की मेहनत ताकि बालीवुड हिरोइनों की नजरों में हीरो बन जाएं और हां मैच जीत गए तो रात को पार्टी में नाचने-गाने की मेहनत। हाय राम इतनी मेहनत। और कहां वर्ल्ड कप जो दो साल में एक बार आता है, गिनती के 4-5 मैच और बस छोटी सी प्राइज मनी। न कोई ग्लैमर न पार्टी। तो ये कोई क्यूं ले वो न ले।

मेरे इस जवाब ने मोंटी को निरुत्तर कर दिया, फिर भी वह कहीं से शब्दों को ढूंढकर लाया और बोला- चलो तुम्हारी बात मान लेता हूं। लेकिन जिस तरह टीम इंडिया का फार्म चल रहा है, मुझे नहीं लगता कि टीम जून में होने वाले एशिया कप को जीत पाएगी।

मैंने समझाते हुए कहा- अमा यार, तुम भी अजीब हो। इतनी सी बात नहीं समझते। तुम एशिया के बाहर निकलो, जरा ग्लोबल बनो। जून में होने वाले एशिया कप को छोड़ो और सितंबर में होने वाले चैंपियंस लीग को पकड़ो। एशिया कप में तो सिर्फ भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका खेलेंगे लेकिन चैंपियंस लीग में तो देश-विदेश की क्लब टीमें और आईपीएल की तीन टीमें भी खेलेंगी जिसमें धोनी की चेन्नई टीम भी शामिल है। एशिया कप मतलब वही 4-5 मैच वही छोटा सा प्राइज मनी और वही हल्की सी ट्राफी लेकिन चैंपियंस लीग मतलब ज्यादा पैसा, ज्यादा ग्लैमर और ज्यादा चीयरलीडर्स। मतलब बल्ले-बल्ले पार्टी-शार्टी।

मोंटी बोला- तुम्हारा मतलब टीम इंडिया एशिया कप भी हारेगी और धोनी फिर सफाई देगा? लेकिन उस बार क्या बोलेगा?

मैंने बात साफ करते हुए कहा- धोनी ने तो एशिया कप में हारने के बाद देने वाली सफाई की लिस्ट भी बना ली है।

इतना सुनते ही शांत मोंटी के अंदर फिर गुस्सा उबल उठा और वह बोला- अब मैं एक नहीं धोनी के दो पुतले जलाउंगा एक एडवांस में क्योंकि जून में एशिया कप में टीम जब हारेगी तब मैं बारिश के कारण पुतला जला नहीं पाउंगा।

मैं मोंटी को उसके प्यारे पुतलों के साथ छोड़कर अपने रास्ते निकल लिया क्योंकि मैं कुछ देर और ठहरता तो मेरी बातें सुनकर उसे कई पुतले जलाने पड़ते।

चलिए बाकी के पुतले मैं उससे सर्दियों में जलवाउंगा, आग तापने के काम तो आएंगे। आपको मेरा यह व्यंग्य कैसा लगा जरुर बताइएगा।


पूरे शहर में सन्नाटा पसरा है। गली-मोहल्ले, नुक्कड़, चौक सब सूने पड़े हैं। न तो इंसानों के कदमों की आवाज सुनाई पड़ रही है और न ही उनके शोर-शराबे की। चारों तरफ सिर्फ कुत्तों के भौंकने की आवाज गूंज रही है। ये नजारा है कुत्तों द्वारा आयोजित भारत बंद का। अखिल भारतीय श्वान संघ ने कुत्ते शब्द के दुरुपयोग और इंसानों द्वारा कुत्तों के मान-सम्मान को ठेस पहुंचाने के विरोध में भारत बंद का आयोजन किया है। अखिल भारतीय श्वान संघ के अध्यक्ष कालू ने आपात बैठक बुलाकर भारत बंद आयोजित करने का प्रस्ताव पारित किया। सब कुत्ते आज राष्ट्रपति के सामने अपनी व्यथा रखने जा रहे हैं। उनके मान-सम्मान पर जो चोट इंसान करता आया है वो अब उनके बर्दाश्त के बाहर हो चुका है। गली-गली से कुत्ते दिल्ली में इकट्ठा होने लगे। पालतू कुत्ते, गली के कुत्ते, काले कुत्ते, गोरे कुत्ते, लंगड़े कुत्ते, मोटल्ले कुत्ते, मरियल कुत्ते और खुजली वाले कुत्ते भी। सब के सब सड़कों पर रैली निकालकर एक स्वर में भौंककर अपना विरोध दर्ज कराना लगे। श्वान संघ ने इंसानों के सख्त हिदायत दे रखी थी कि कोई भी इंसान बंद के दौरान सड़क पर नजर आया तो इतना काटेंगे कि  पेट में १४  नहीं १४०० इंजेक्शन लगेंगे।
इस रैली का चुपके से कवरेज कर रहे फर्राटा चैनल के जुझारू रिपोर्टर ने किसी तरह हिम्मत जुटाकर श्वान संघ के अध्यक्ष का इंटरव्यू लेने की ठानी। वह कुछ कदम आगे बढ़ा ही था कि १०-१२ कुत्तों का झुंड उस पर लपक पड़ा। श्वान संघ के अध्यक्ष कालू ने तब कुत्तों को दूर रहने का आदेश दिया। उस रिपोर्टर को अपने पास यह सोचकर बुलवाया  कि चलो इंटरव्यू दे देता हूं, अपनी भी थोड़ी पब्लिसिटी हो जाएगी। वह रिपोर्टर किसी तरह अपने आपको संभालते हुए अध्यक्ष कालू के पास पहुंचा। जाते ही तपाक से पूछा, आप लोग ये बंद क्यों कर रहे हो। अध्यक्ष का खून खौल गया उसने उस पर अपना प्रश्न रॉकेट की तरह दागते हुए पूछा तुम इंसान इतनी बार भारत बंद करवाओ तो ठीक और हम कुत्तों ने एक बार भारत बंद करवा दिया तो तुम्हारे पेट में दर्द हो रहा है। रिपोर्टर इस प्रश्न के सामने निरुत्तर हो गया। घबराकर वह बोला- म..म...मेरा मतलब है कि आप लोग ये भारत बंद क्यों कर रहे हो? आपकी क्या मांगें हैं? अध्यक्ष बोला- तुम इंसानों ने हम कुत्तों के मान-सम्मान का फालूदा कर दिया है। जब देखों हमारे अपमान करते रहते हो। अपने आपसी लड़ाई में हम कुत्तों के नाम का दुरुपयोग करते हो। लड़ाई तुम करते हो और इज्जत हमारी उछालते हो। रिपोर्टर बोला- आप जरा खुलकर बताएं। बात को साफ कीजिए।

अध्यक्ष बोला- हम कुत्ते हमेशा वफादार रहते हैं, लेकिन तुम इंसानों ने हमेशा बेवफाई की है। सबसे पहले इसकी शुरुआत तुम लोगों के हीरो धर्मेन्द्र ने की। उसकी लड़ाई गब्बर से थी। गब्बर ने जय को मारा, उसी ने बसंती को कैद किया. लेकिन उसे कुत्ते का खून पीना है गब्बर का नहीं। ये कहां का इंसाफ है भई। हमने क्या किया था। गब्बर के चमचे बसंती का नाच देख लें तो ठीक हैं लेकिन हम कुत्तों के सामने बसंती नहीं नाच सकती, क्यों भला? पता है उसके कारण मैं और मेरी पत्नी कभी मिल नहीं पाए। वो रामगढ़ में रहती थी लेकिन मैं कभी उसे मिलने नहीं जा पाया, धर्मेन्द्र के डर से। पता नहीं कबवह  मेरा खून पी जाता। मुझे पर जो इमोशनल अत्याचार हुआ उसका दोषी कौन है?

अध्यक्ष आगे बताता है- तुम इंसान लड़ते समय एक दूसरे को गाली देते हुए कुत्ता कहते हो। कोई भी इंसान ऐसे ही कु्त्ता नहीं बन सकता। कुत्ता बनने के लिए कुत्ते का गुण होना आवश्यक है। कुत्ता होने के लिए वफादार होना जरूरी है और इंसानों में तो वफादारी लुप्त हो चुकी है। तो तुम लोग बिना हमारे परमिशन के किसी को कुत्ते की उपाधि कैसे दे सकते हो। बोलो।

रिपोर्टर को अध्यक्ष की बात में दम लगा। वह सोच में पड़ गया।

अध्यक्ष आगे बढ़ते हुए बोला- अभी थोड़े समय पहले दो फिल्मस्टारों ने आपसी लड़ाई में हमको बेवजह शामिल कर दिया। आमीर खान ने शाहरुख खान को नीचा दिखाने के लिए अपने कुत्ते का नाम शाहरुख रख दिया और ब्लाग में लिख दिया कि शाहरुख मेरे पैर चाट रहा है। जब उसके दिल को ठंडक मिल गई तब बाद में शाहरुख से माफी भी मांग ली। उसे शाहरुख से नहीं हमसे माफी मांगनी चाहिए थी। अरे हमसे बिना पूछे उसने अपने कुत्ते का नाम शाहरुख कैसे रखा. अपनी लड़ाई में हमको शामिल क्यों किया। क्या हम अपनी लड़ाई में इंसानों को शामिल करते हैं।  नहीं ना।

अध्यक्ष के इन तथ्यों ने रिपोर्टर के दिल पर करार वार किया।

अध्यक्ष बोला- एक और किस्सा बताता हूं, हाल ही में नितिन गडकरी ने लालू और मुलायम को भी कुत्ते की उपाधि देते हुए कहा कि वे दोनों कुत्ते की तरह सोनिया गांधी के तलवे चाटते थे। अब बताओ किस आधार पर गडकरी ने लालू-मुलायम को कुत्ता कह दिया। कुत्ते तो प्यार से अपने मालिक के तलवे चाटते हैं क्योंकि उसे भी अपने मालिक से प्यार मिलता है। इसमें उसका कोई स्वार्थ नहीं होता। लेकिन लालू और मुलायम थोड़ी न सोनिया से प्यार या स्नेह करते हैं जो वे उसके तलवे चाटेंगे। उन्हें तो बस सरकार में अपने हिस्से से प्यार था। इंसानों द्वारा इतनी बार कुत्तो के इज्जत की धज्जियां उड़ाने के बाद अब हमें और बर्दाश्त नहीं होता। इसी के विरोध में हमने भारत बंद का आयोजन किया है और अब राज्यपाल के पास जाकर हम अपनी मांगें रखेंगे।
पहली मांग तो यह कि कोई भी इंसान बिना कुत्ते के गुणों को जाने किसी दूसरे इंसान को कुत्ता नहीं कहेगा। दूसरी कि भी अपनी लड़ाई में हम कुत्तों को नहीं घसीटेगा। तीसरा धरम पाजी को अपना डायलाग कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा छोड़ना पड़ेगा, छोड़ो उनकी तो अब पिक्चर भी नहीं आती डायलॉग क्या बोलेंगे, ठीक है तीसरी वाली मांग कैंसल। बाकी की मांगें राज्यपाल को बताएंगे। बस अब इंटरव्यू खत्म,अध्यक्ष बोला। अब हमारा समय बर्बाद मत करो हमे राष्ट्रपति के पास जाना है।

रिपोर्टर अपने घर आया और उसने अपने कुत्ते को खोल दिया जिसे उसने अपने विरोधी के नाम पर रखा था। शायद उसे भी कुत्ते शब्द का असली मतलब पता चल चुका था। उसका पालतू कुत्ता भी दौड़कर बाकी कुत्तों के साथ शामिल होकर चल पड़ा राष्ट्रपति भवन। रैली फिर आगे बढ़ने लगी और भौंकने की आवाज से पूरा शहर फिर गूंजने लगा।