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ऐसी चटपटी खबर मिले और उस पर चर्चा न हो, ये तो हो नहीं सकता। तभी विकास तपाक से बोला- "नेताओं ने तो सदन और संसद को अखाड़ा बना दिया है। मेरा भी मन है नेता बनने का लेकिन यह सब पढ़कर मेरा मन नेतागिरी से उचट हो जाता है।" मैं बोला- "जिस चीज के प्रति तुम्हें आसक्त रहना चाहिए उससे तुम विरक्त क्यों हो रहे हो।" राह भटकते विकास को मैंने राह दिखाने की कोशिश की। "अरे तुमने बिलकुल सही क्षेत्र चुना है। राजनीति में भरपूर पैसा है, पहचान है, नाम (बदनाम) है, हर समय आगे-पीछे घूमने वाले पिछलग्गू भी मिलेंगे। अगर तुम अपने अंदर के ईमानदारी वाले गुण को बाहर निकाल दो और बेइमानी के गुण ठूंस दो तुम्हे परफेक्ट नेता बनते देर नहीं लगेगी।"
विकास सकुचाते हुए बोला- "नेता तो मैं बनना चाहता हूं लेकिन सदन में होने वाले दंगल से मैं डरता हूं इस दंगल में खुद को कैसे बचा पाउंगा ।" मैंने कहा- "तुम भी कमाल करते हो। अरे कल ही तो तुमने जिम ज्वाइन किया है। मैं तो कहता हूं छोड़ दो जिम। खूब खाओ तोंद निकालो। भारत के नेताओं को तोंदूल होना चाहिए। बड़ी सी तोंद यह साबित करती है कि यह नेता बहुत बड़ा खाऊ है और यह डामर, चारा, गिट्टी, तोप, गोले ताबूत से लेकर हर चीज पचा सकता है, इससे तम्हारा गुडविल(बैडविल) बढ़ेगा।"
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हेमंत फिर कहने लगा- "मगर सभापति पर चप्पल फेंकने वाली बात मुझे हजम नहीं हुई। एक तो ये नेता वैसे ही सदन में बहुत कम आते हैं और जब आते हैं तब हंगामा खड़ा कर देते हैं।" मैंने समझाते हुए कहा-"तुम अभी नादान हो। अभी तुम्हारे पास नेताओं वाला दिमाग नहीं है ना। सबसे पहले तो ये समझ लो कि अगर नेता हर समय सदन में ही घुसे रहेंगे तो बाकी जरूरी काम जैसे घोटाले, भ्रष्टाचार, बवाल कहां से करेंगे। ये सब नेतागिरी के महत्वपूर्ण शब्द हैं। सदन ज्यादा आएंगे तो घोटाले करने का टाइम कैसे मिलेगा और घोटाले नहीं किए तो नेता बिरादरी में नाक न कट जाएगी।
लेकिन तुम्हारी बात से मैं सहमत हूं सभापति को चप्पल से नहीं मारना चाहिए था। इससे यह सिद्ध होता है कि उस नेता ने जरूर तरक्की नहीं की होगी, कोई घोटाला नहीं किया होगा इसलिए अभी तक चप्पलें घिस रहा था। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि उसने नया-ताजा घोटाला किया होगा और अपने पहले घोटाले की खुशी में नए जूते लिए होंगे लेकिन पुराने चप्पल कहां फेंकूं इसी कश्मकश में रहा होगा। अंत में सदन में हुए मारपीट के बीच उसने चुपके से अपनी पुरानी चप्पलें फेंककर नए जूते पहन लिए होंगे। अगर इसकी थोड़ी जांच कराई जाए तो पता चल सकता है कि चप्पलमारू विधायक कौन था।
वैसे इस चप्पल फेंकने वाले प्रकरण से सभापति बहुत क्षुब्ध थे। उनका गुस्सा चप्पल मारने वाले के ऊपर कम और मीडिया पर ज्यादा था। मारने वाले ने तो एक चप्पल मारा मीडिया ने उसे दिखा-दिखाकर 100-200 बार चप्पल खिलवा दिए। इसलिए विकास मैं कहता हूं तुम नेता जरूर बनना लेकिन भूलकर भी सभापति मत बनना वरना किसके जूते-चप्पल खाने पड़ जाएं पता भी नहीं चलेगा और चिल्लाकर गला अलग दर्द करने लगेगा। पार्टी के भीतर तुम्हारे विरोधी तुम्हे सभापति बनाने पर तुले होंगे लेकिन तुम उनका पैंतरा उन्हीं पर आजमाना और सभापति बनने पर उनके मुंह पर एक चप्पल जमा ही देना और वो भी सबको दिखाकर इसी बहाने मीडिया अटेंशन भी मिलेगा। मीडिया को चटपटी खबर मिल जाएगी और तुमको सुर्खियां। दोनों के काम बन जाएंगे। इसलिए बोल रहा हूं तुम भिड़ जाओ नेतागिरी में, कूद पड़ो, देर न करो बहुत हैं लाइन में। "
तभी हेमंत बोला- "सदन में नेता माइक्रोफोन और कुर्सी तोड़ देते हैं ये ठीक नहीं है।" मैंने उत्तर दिया- "हो सकता है कि नेताओं के कुर्सी और माइक्रोफोन खराब होंगे और इस कारण वह सदन में अपने मन की कह नहीं पा रहे होंगे। इसलिए उन्होंने माइक्रोफोन और कुर्सी तोड़कर अपनी भड़ास निकाल दी ताकि इसी बहाने नए कुर्सी और माइक्रोफोन आ जाएंगे। इसलिए विकास तुम जब विधायक बनकर सदन में जाओगे तो अपने माइक्रोफोन के साथ दूसरों के भी माइक्रोफोन तोड़ना ताकि कोई तुम्हारे खिलाफ कुछ कह न पाए। सदन के अखाड़े में धोबीपछाड़ कर तुम ही विजेता बनकर उभरना।"
मेरी प्रेरणास्पद उपदेश से विकास के अंदर का नेता उबाल मारने लगा था। अब उसके नेता बनने की इच्छा इरादे का रूप ले चुकी थी। वह जाने लगा तभी मैंने उसे टोका-"विकास नेता बनने वाला है तो कम से कम होटल में अपना पिछला उधारी तो पटा दे वरना राजू भाई का वोट तुझे कैसे मिलेगा।" विकास आया और होटलवाले को एक हजार रुपए देते हुए बोला, "ये लो पिछला बकाया काट लो और बाकी रख लो। अब मैं चिल्हर वापस नहीं लूंगा। मैं बड़ा नेता हूं।" मैं हेमंत की तरफ देखकर मुस्कुराने लगा और उसे चलने के लिए कहा क्योंकि कल भी तो विकास के साथ इसी होटल पर बैठक जमाना है।
गुरुवार, जुलाई 29, 2010 |
Category:
व्यंग्य
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