शुद्ध घी खाकर वृद्ध की मौत, शुद्ध घी के सेवन से सैंकड़ों बीमार। चौंक गए क्या। अरे ये मैं नहीं, बल्कि अखबारें बोल रही हैं। सारे अखबार बस इसी तरह के शीर्षकों से अटे पड़े हैं। अब जो अशुद्ध खाने का आदि हो उसे अगर शुद्ध चीज खिला दी जाए तो तबीयत तो खराब होगी ही। अशुद्ध चीजें पचाने की आदि अंतड़ियां शुद्ध चीज कहां से पचा पाएंगी। ये मिलावट का युग है। मिलावट ही सत्य है, मिलावट ही सर्वत्र है। आज मिलावट फैशन है और पैशन भी। जो मिलावटी नहीं वह आउटडेटड है। बदलते जमाने के साथ शुद्ध गंगा नदी ने भी अपने आपको अपडेट कर लिया और अशुद्ध हो गई। आप हाथ में गंगाजल लेकर तर्पण करते हैं, लेकिन हाथ में गंगाजल छोड़कर सब कुछ आ जाता है मसलन, कचरा, तेल, हेयरपिन, बासी फूल, विसर्जित किए गए मूतिर्यों के अवशेष सब कुछ। ऐसा लगता है मानो सारा संसार हाथों में आ गया है। अब सरकार भी मिलावटी बनती हैं मतलब मिली-जुली। साफ-सुथरी सरकार अब चलन के बाहर हो गई हैं, अब तो दागी नेताओं की सरकार है। जनता ने भी इस मिलावट को अब स्वीकार कर लिया है। बिना मिलावट की गई चीजें तो अब हम हमको जमती ही नहीं । जब तक दूध में पानी न हो दूध का मजा नहीं आता। भूसे मिले चायपत्ती के बगैर चाय बेस्वाद लगती है। मिलावटी तेल में सिके हुए पूड़ी और तले हुए पकौड़ों की तो बात ही क्या। बच्चा भी पैदा होते ही अब मां का दूध नहीं पीता बल्कि बोतलबंद सोया दूध पीता है।

इन अशुद्ध चीजों के बीच सबकी जिंदगी मजे से गुजर ही रही थी, पर पता नहीं कहां से मार्केट में शुद्ध घी आ गई। इस शुद्ध घी के अचानक टपकने से लोगों में हाहाकार मच गया। सब को डर सताने लगा कि कहीं शुद्ध घी खाकर वे बिस्तर न पकड़ लें। कुछ खुरापाती किस्म के लोगों ने शुद्ध घी का नायाब इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। बहू अपनी सास को शुद्ध घी से बने पकौड़े खिलाने लगी ताकि वह जल्दी स्वर्ग सिधार जाए। आफिस में एक कर्मचारी अपने विरोधी कर्मचारी को रास्ते से हटाने के लिए उसे शुद्ध घी से बुने लड्डू खिलाने लगा। स्कूल में एक बच्चे ने अपने जन्मदिन पर टीचर को शुद्ध खोवे से बनी मिठाई खिला दी ताकि टीचर ५-६ दिन के लिए बिस्तर पकड़ ले और होमवर्क से मुक्ति मिल जाए।

दिन ब दिन शुद्ध घी से बीमार लोगों की संख्या बढ़ने लगी। हॉस्पीटल हाऊसफुल होने लगे। छुटभैये और झोलाछाप डॉक्टरों की भी निकल पड़ी। एक डॉक्टर अपने मरीज से कहता है- अजी शुक्र है आपने ८० प्रतिशत शुद्ध घी से बना लड्डू खाया था इसलिए बच गए, कहीं १०० प्रतिशत शुद्ध घी वाला लड्डू खाया होता तो स्वर्ग सिधार गए होते। जरा देखकर खाया कीजिए आजकल मार्केट में शुद्ध घी आ गई है। पत्नी अपने पति से बोली- देखा जी, इसलिए कहती हूं दूर रहा करो उस रमेश से, जरूर उसी ने आपको शुद्ध घी का लड्डू खिलाया होगा, वो आपसे जलता जो है। मैं आज ही शुद्ध घी के पकौड़े बनाती हूं आप इसे राजेश को खिलाकर उसको सबक सिखाना।

शुद्ध घी ने इतनी दहशत फैला दी कि लोग दुकानदारों को शक की नजरों से देखने लगे। जो दुकानदार दशकों से अपनी मिलावट कला से लोगों की सेवा करते आए थे, अब शक के दायरे में आने लगे। लोगों को शंका होने लगी कि कहीं ये दुकानदार उन्हें शुद्ध घी न पकड़ा दें। गली-मोहल्ले, चौक-चौराहों पर बस इसी बात के चर्चे थे कि आखिर ये शुद्ध घी अचानक आया कहां से? कुछ ने कहा इसमें अंडरवर्ल्ड का हाथ होगा। कुछ को इसमें पाकिस्तान के साजिश की बू आने लगी। तालिबान को जैसे ही शुद्ध घी के आतंक के बारे में पता चला उसने शुद्ध घी से तबाही मचाने की सोची। आतंकवादियों ने सोचा बंदूक और खून खराबा करके हम ५०-१०० लोगों को मार पाते हैं लेकिन लोगों को शुद्ध घी खिलाकर एक बार में ही ५-१० हजार लोगों का काम तमाम कर देंगे। तालिबान ने तत्काल रामू, भोला, बंसी, दुकालू के यहां की १००० गायें अपहरण कर ली। अब आतंकवादियों ने बंदूक छोड़कर डेयरी खोल ली और गायों का दूध दुहकर शुद्ध घी बनाने लगे। शुद्ध घी के किस्से अमेरिका तक भी पहुंच चुके थे। तब अमेरिका ने अपने नया परमाणु बम बनाने का कार्यक्रम रोककर शुद्ध घी बम बनाने का कार्यक्रम शुरू कर दिया। अमेरिका को इसके लिए गायों की जरूरत थी। जिस तरह तेल के लिए उसने इराक पर हमला कर दिया था उसी तरह अब वह गायों के लिए भारत की तरफ देखने लगा। हमारी कमजोर लड़खड़ाती सरकार न पहले अमेरिका के दबाव के आगे कुछ कहती थी और न अब उसने कुछ कहा।

शुद्ध घी के आतंक से लंबे समय से सुस्त एवं निर्जीव पड़े विपक्ष के नेताओं को एक मुद्दा मिल गया जिसे वे चुनाव में भुना सकते थे। विपक्ष ने संसद में इस मुद्दे को खूब उछाला और सरकार की खूब मिट्टीपलीद की। विपक्ष के एक जोशीले नेता ने ऊंचे स्वर में कहा- शुद्ध घी का बाजार में आना जनता की सेहत के साथ खिलवाड़ है। आज के मिलावटी युग में अगर कोई शुद्ध चीज आ जाएगी तो गड़बड़ तो होगी ही ना। अब हम सारे दागी नेताओं के बीच अगर कोई सच्चा, सज्जन नेता आ जाएगा तो राजनीति प्रदूषित होगी ही ना, पूरा समीकरण बिगड़ जाता है। मुझे तो शुद्ध घी के बाजार में आने के पीछे केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री का हाथ लग रहा है। उन्हीं के संरक्षण में चल रही डेयरियों से शुद्ध घी के सप्लाई की खबरें आ रही हैं। इसकी उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए। केन्द्रीय गृहमंत्री ने इसके लिए समिती बना दी। समिति बनाना सभी मुद्दों का रामबाण इलाज है। कोई मुद्दा हो, बस जांच समिति बना दीजिए, ४-५ महीने या फिर साल फुर्सत। गृहमंत्री ने भी इसी रामबाण इलाज का प्रयोग करते हुए समिती बना दी।

जिस तरह छल, कपट, राग, द्वेष के युग में सत्य, धर्म, निष्ठा अपना स्थान नहीं बना सकती। उसी तरह अशुद्ध माहौल में शुद्ध चीजें कहां से अपना स्थान बना पाती। कुछ समय तक शुद्ध घी ने अपने को समाज बनाए रखने की कोशिश की लेकिन लोगों ने इसका भी तोड़ निकाल लिया और उसे अशुद्ध करने के लिए जुगाड़ जमा ही लिया। कुछ समय तक शुद्ध घी से आतंकित लोग अब फिर अपनी जिंदगी में लौट आए। बाजार में अब शुद्ध घी का नामोनिशान नहीं है। मैंने यह व्यंग्य बिस्तर पर पड़े-पड़े लिखा क्योंकि मेरे हास्य व्यंग्य से जलने वाले मेरे एक मित्र ने मुझे उस समय शुद्ध घी के लड्डू खिलाकर बिस्तर पर पटक दिया था। खैर अब मैं चलता उसी मित्र के पास उसे शुद्ध घी का हलवा खिलाकर उसका हाजमा खराब करने, ये शुद्ध घी मैंने खास उसी के लिए बचाकर रखा था सबक सिखाने के लिए। आप लोग भी बचकर रहिएगा कहीं शुद्ध घी आपके शहर में आतंक न मचाने लग जाए।