वर्ल्ड कप शुरू होने में दो दिन ही बचे है लेकिन माह भर पूर्व से ही वर्ल्ड कप से जुड़ी अटकलों, बयानबाजी और रायशुमारी का दौर शुरू हो गया था जिसमें दो बातें हर दूसरे खिलाड़ी के मुंह से सुनने मिलीं। पहला कि वर्तमान भारतीय टीम अब तक की सबसे सशक्त भारतीय टीम है और यह वर्ल्ड कप वही जीतेगी। और दूसरी बात कि सचिन का यह आखिरी वर्ल्ड कप है और टीम इंडिया इसे जीतकर सचिन को तोहफा देगी। इसमें दूसरी बात को लेकर चौतरफा कुछ ज्यादा ही हो-हल्ला हो रहा है। हाल ही में भारतीय टीम के अधिकांश युवा खिलाडियों ने यही बात दोहराई वहीं ज्यादातर विदेशी खिलाड़ियों के बयानों में भी इस बात का उल्लेख था। ऐसा माहौल क्यों बनाया जा रहा है जैसे ये सचिन का आखिरी वर्ल्ड कप है और इस बार ये कप हर हाल में उनके हाथों में थमाना ही है। ऐसे बयान टीम इंडिया और साथ ही सचिन पर सिर्फ बेवजह दबाव ही बना रहे हैं। इसका प्रमाण अभ्यास सत्र के दौरान देखा जा सकता है जहां सचिन अब ताबड़तोड़ रन बनाने के लिए भारी बल्ले से अभ्यास कर रहे हैं। टेनिस एल्बो से उबरने के बाद पिछले दो सालों में सचिन अपनी पुरानी रंगत में दिख रहे हैं। पिछला साल तो टेस्ट में रनों के लिहाज से उनका सर्वश्रेष्ट साल था। २०१० में उन्होंने ७८.१० की औसत से १५६२ रन बनाए जिसमें सात शतक शामिल थे। टेनिस एल्बो से उबरने के बाद सचिन ने हल्के बल्ले का इस्तेमाल शुरू किया क्योंकि उनका पुराना भारी बल्ला टेनिस एल्बो की समस्या को फिर से उभार सकता था। लेकिन अभ्यास सत्र में सचिन द्वारा भारी बल्ले का इस्तेमाल साफ दर्शाता है कि सचिन ने अपने उपर कितना दबाव ले रखा है। डर केवल इस बात का है कि कहीं यह दबाव टीम इंडिया पर हावी हो जाए।
वर्ल्ड कप जैसे महासंग्राम को नैसर्गिक खेल के द्वारा ही जीता जा सकता है । लेकिन जैसा माहौल अभी बनाया जा रहा है वह कहीं टीम इंडिया की तैयारियों को प्रभावित न कर दे। जब १९८३ में भारत ने वर्ल्ड कप जीता था तब भारत को कमजोर माना जा रहा था और कहा जा रहा था वह शुरूआती मैचों में ही बाहर हो जाएगी लेकिन भारत ने कपिल देव की अगुवाई में वेस्टइंडीज जैसी दिग्गज टीम को फायनल में हराकर अब तक का एकमात्र विश्व कप दिलाया। २००३ वर्ल्ड कप में शिरकत करने के पूर्व टीम इंडिया न्यूजीलैंड से ५-२ से हारी थी। विशेषज्ञों ने २००३ में टीम इंडिया की संभावनाओं को सिरे से नकार दिया था। सचिन भी अपने फार्म में नहीं थे। जहीर, हरभजन, युवराज, सहवाग आदि खिलाड़ी युवा थे और पहली बार वर्ल्ड कप में हिस्सा ले रहे थे। लेकिन टीम इंडिया ने तमाम अटकलों को झुठलाते हुए फायनल का सफर तय किया। विश्व कप से पूर्व आलोचकों के निशाने पर रहे सचिन-सौरव ने भी शानदार प्रदर्शन किया। जहां सचिन ने सर्वाधिक ६७३ रन बनाए वहीं सौरव ने ४६५ रन बनाए। विश्व कप में अच्छे प्रदर्शन के लिए सशक्त टीम की नहीं सही समय पर सटीक प्रदर्शन करने वाले ११ खिलाड़ियों की जरूरत होती है। अब जब भारत को विश्व कप का दावेदार माना जा रहा है तो ये बेवजह का दबाव टींम इंडिया को बिखेर सकता है। जब भी खिलाड़ी पिच पर उतरेंगे उनके दिमाग में यह बात उतरेगी कि उसे ये विश्वकप हर हाल में सचिन के लिए जीतना है वहीं सचिन भी जब एक-एक गेंद का सामना करेंगे उनके दिमाग में यह बात गूंजती रहेगी कि यह उनका आखिरी विश्वकप है और उन्हें इस बार अपना सब कुछ न्यौछावर करना होगा।
जहां तक सचिन के आखिरी विश्व कप को लेकर बातें हो रही हैं तो सचिन को तो उनके आलोचकों ने ४-५ सालों पहले ही खत्म मान लिया था। २००२ में भी उनके प्रदर्शन पर सवालिया निशान लगे थे लेकिन उन्होंने २००३ विश्व कप में लाजवाब प्रदर्शन किया। उसके बाद ३-४ साल वे खराब फार्म और टेनिस एल्बो की चोट से संघर्ष करते रहे लेकिन २००८ के बाद जैसे फिर युवा होकर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में लौटे। सचिन ने अपनी मानसिक दृढ़ता, समर्पण, समय के साथ खुद में बदलाव लाते हुए अपने कैरियर की उम्र को बढ़ाया है और यह तो वो भी नहीं जानते उनका आखिरी मैच कब होगा। खुद कहा कि उनका सपना है विश्वकप जीतना पर जरूरी नहीं यह उनका आखिरी विश्व कप हो। मुमकिन है वे अगल विश्व कप भी खेलें। और हो सकता है युवराज, रैना और धोनी आदि युवा खिलाड़ी जो सचिन को विश्वकप की ट्राफी तोहफे में देने जैसी बातें कर रहे हैं खुद अगले वर्ल्ड कप में न दिखें। धोनी तो कप्तानी और किस्मत के सहारे अपनी खराब बल्लेबाजी को ढंक रहे हैं वहीं युवराज-रैना जैसे सितारों की चमक फीकी पड़ती जा रही है इसलिए क्या पता ये कब गुम हो जाएं, क्योंकि क्रिकेट में जो दिखता है वही टिकता है। और सचिन ने अपने खेल को हमेशा दिखाया है, आलोचकों को करारा जवाब दिया है। इसलिए जरूरी है कि खिलाड़ी भारतवासियों के लिए यह विश्व कप जीतें न कि सचिन के लिए या किसी और खिलाड़ी के लिए। विश्व कप की ट्राफी हाथ में थामना सचमुच एक अद्भुत अहसास है, चाहे वो सचिन हो या कोई युवा खिलाड़ी हर कोई इसे महसूस करना चाहेगा। इसलिए बस इतना कहूंगा दे घुमा के इंडिया।
वर्ल्ड कप जैसे महासंग्राम को नैसर्गिक खेल के द्वारा ही जीता जा सकता है । लेकिन जैसा माहौल अभी बनाया जा रहा है वह कहीं टीम इंडिया की तैयारियों को प्रभावित न कर दे। जब १९८३ में भारत ने वर्ल्ड कप जीता था तब भारत को कमजोर माना जा रहा था और कहा जा रहा था वह शुरूआती मैचों में ही बाहर हो जाएगी लेकिन भारत ने कपिल देव की अगुवाई में वेस्टइंडीज जैसी दिग्गज टीम को फायनल में हराकर अब तक का एकमात्र विश्व कप दिलाया। २००३ वर्ल्ड कप में शिरकत करने के पूर्व टीम इंडिया न्यूजीलैंड से ५-२ से हारी थी। विशेषज्ञों ने २००३ में टीम इंडिया की संभावनाओं को सिरे से नकार दिया था। सचिन भी अपने फार्म में नहीं थे। जहीर, हरभजन, युवराज, सहवाग आदि खिलाड़ी युवा थे और पहली बार वर्ल्ड कप में हिस्सा ले रहे थे। लेकिन टीम इंडिया ने तमाम अटकलों को झुठलाते हुए फायनल का सफर तय किया। विश्व कप से पूर्व आलोचकों के निशाने पर रहे सचिन-सौरव ने भी शानदार प्रदर्शन किया। जहां सचिन ने सर्वाधिक ६७३ रन बनाए वहीं सौरव ने ४६५ रन बनाए। विश्व कप में अच्छे प्रदर्शन के लिए सशक्त टीम की नहीं सही समय पर सटीक प्रदर्शन करने वाले ११ खिलाड़ियों की जरूरत होती है। अब जब भारत को विश्व कप का दावेदार माना जा रहा है तो ये बेवजह का दबाव टींम इंडिया को बिखेर सकता है। जब भी खिलाड़ी पिच पर उतरेंगे उनके दिमाग में यह बात उतरेगी कि उसे ये विश्वकप हर हाल में सचिन के लिए जीतना है वहीं सचिन भी जब एक-एक गेंद का सामना करेंगे उनके दिमाग में यह बात गूंजती रहेगी कि यह उनका आखिरी विश्वकप है और उन्हें इस बार अपना सब कुछ न्यौछावर करना होगा।
जहां तक सचिन के आखिरी विश्व कप को लेकर बातें हो रही हैं तो सचिन को तो उनके आलोचकों ने ४-५ सालों पहले ही खत्म मान लिया था। २००२ में भी उनके प्रदर्शन पर सवालिया निशान लगे थे लेकिन उन्होंने २००३ विश्व कप में लाजवाब प्रदर्शन किया। उसके बाद ३-४ साल वे खराब फार्म और टेनिस एल्बो की चोट से संघर्ष करते रहे लेकिन २००८ के बाद जैसे फिर युवा होकर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में लौटे। सचिन ने अपनी मानसिक दृढ़ता, समर्पण, समय के साथ खुद में बदलाव लाते हुए अपने कैरियर की उम्र को बढ़ाया है और यह तो वो भी नहीं जानते उनका आखिरी मैच कब होगा। खुद कहा कि उनका सपना है विश्वकप जीतना पर जरूरी नहीं यह उनका आखिरी विश्व कप हो। मुमकिन है वे अगल विश्व कप भी खेलें। और हो सकता है युवराज, रैना और धोनी आदि युवा खिलाड़ी जो सचिन को विश्वकप की ट्राफी तोहफे में देने जैसी बातें कर रहे हैं खुद अगले वर्ल्ड कप में न दिखें। धोनी तो कप्तानी और किस्मत के सहारे अपनी खराब बल्लेबाजी को ढंक रहे हैं वहीं युवराज-रैना जैसे सितारों की चमक फीकी पड़ती जा रही है इसलिए क्या पता ये कब गुम हो जाएं, क्योंकि क्रिकेट में जो दिखता है वही टिकता है। और सचिन ने अपने खेल को हमेशा दिखाया है, आलोचकों को करारा जवाब दिया है। इसलिए जरूरी है कि खिलाड़ी भारतवासियों के लिए यह विश्व कप जीतें न कि सचिन के लिए या किसी और खिलाड़ी के लिए। विश्व कप की ट्राफी हाथ में थामना सचमुच एक अद्भुत अहसास है, चाहे वो सचिन हो या कोई युवा खिलाड़ी हर कोई इसे महसूस करना चाहेगा। इसलिए बस इतना कहूंगा दे घुमा के इंडिया।