bihar 2"तीन हॉफ चाय और समोसे देना भैया।" मैंने होटलवाले को चाय का आर्डर दिया। रोज की तरह मैं, विकास और हेमंत राजू होटल में गप्प मारने और साथ ही चाय पीते-पीते अखबार के पन्ने चाटने पहुंच चुके थे। हमारी तिकड़ी का यह अड्डा है टाइमपास का। हम यहां अपना कीमती वक्त बड़े मजे से बर्बाद करते हैं। अपनी बैठक वहां रोज बैठती है और इस बैठक में देश-विदेश से लेकर व्यापार, खेल, फिल्में, पड़ोसी गर्लफ्रैंड तक सभी की बातें होती हैं। कभी-कभी गलती से हम श्रद्धा, भक्ति और आराधना पर भी चर्चा कर लेते हैं। कोई भी अपनी हांकने में कोई कमी नहीं करता। सब एक से बढ़कर एक लपेटु। कुछ ही देर मे हम तीनों की चाय आ गई। तभी चुस्कियां लेते-लेते मेरी नजर अखबार पर पड़ी। वैसे अखबार में हमें खेल और फिल्म पन्ने के सिवाय कुछ नहीं भाता । हमारा बस चले तो हम अखबार के सभी पन्नों को खेल और फिल्म की खबरों से भर दें। मगर उस दिन ऐसी खबर पढ़ी की नजर वहीं अटक गई-"बिहार के सदन में हाथापाई, अध्यक्ष पर फेंकी चप्पल।"


ऐसी चटपटी खबर मिले और उस पर चर्चा न हो, ये तो हो नहीं सकता। तभी विकास तपाक से बोला- "नेताओं ने तो सदन और संसद को अखाड़ा बना दिया है। मेरा भी मन है नेता बनने का लेकिन यह सब पढ़कर मेरा मन नेतागिरी से उचट हो जाता है।" मैं बोला- "जिस चीज के प्रति तुम्हें आसक्त रहना चाहिए उससे तुम विरक्त क्यों हो रहे हो।" राह भटकते विकास को मैंने राह दिखाने की कोशिश की। "अरे तुमने बिलकुल सही क्षेत्र चुना है। राजनीति में भरपूर पैसा है, पहचान है, नाम (बदनाम) है, हर समय आगे-पीछे घूमने वाले पिछलग्गू भी मिलेंगे। अगर तुम अपने अंदर के ईमानदारी वाले गुण को बाहर निकाल  दो और बेइमानी के गुण ठूंस दो तुम्हे परफेक्ट नेता बनते देर नहीं लगेगी।"

विकास सकुचाते हुए बोला- "नेता तो मैं बनना चाहता हूं लेकिन सदन में होने वाले दंगल से मैं डरता हूं इस दंगल में खुद को कैसे बचा पाउंगा ।" मैंने कहा- "तुम भी कमाल करते हो। अरे कल ही तो तुमने जिम ज्वाइन किया है। मैं तो कहता हूं छोड़ दो जिम। खूब खाओ तोंद निकालो। भारत के नेताओं को तोंदूल होना चाहिए। बड़ी सी तोंद यह साबित करती है कि यह नेता बहुत बड़ा खाऊ है और यह डामर, चारा, गिट्टी, तोप, गोले ताबूत से लेकर हर चीज पचा सकता है, इससे तम्हारा गुडविल(बैडविल) बढ़ेगा।"

bihar 1विकास मेरी बात पर सहमति जताने लगा तभी हेमंत बोल पड़ा- "लेकिन तुम्हें नहीं लगता कि आजकल सदन अखाड़ा बन गया है। इस अखाड़े में बात और लात दोनों चलती है। हमारा विकास अगर गलती से सदन पहुंच भी गया तो इसमें कैसे टिक पाएगा। " मैंने कहा- "सदन तो है ही अखाड़ा, बातों का अखाड़ा। यहां वाकयुद्ध होता है। जब बातों से बात नहीं बनती तो लातयुद्ध भी होता है। माइकें तोड़ी जाती हैं, कुर्सी फेंकी जाती है। यहां आरोप लगते हैं, सफाई पेश होती है, हंगामा होता है दंगल होता है। पूरा माहौल जमा रहता है। मैं तो कहना चाहूंगा कि सदन को अखाड़ा शब्द का पर्यायवाची ही माना जाए और इसे बकायदा शब्दकोष में शामिल कर लिया जाए। सदन में हंगामे का इतना मसाला रहता है कि ये टीआरपी में सास-बहु सीरियलों को भी पछाड़ सकती हैं। सबसे बड़ी बात यहां बीच-बीच में वो दुखदायी विज्ञापन भी नहीं आते। आप नॉनस्टाप मजा ले सकते हैं।"

हेमंत फिर कहने लगा- "मगर सभापति पर चप्पल फेंकने वाली बात मुझे हजम नहीं हुई। एक तो ये नेता वैसे ही सदन में बहुत कम आते हैं और जब आते हैं तब हंगामा खड़ा कर देते हैं।" मैंने समझाते हुए कहा-"तुम अभी नादान हो। अभी तुम्हारे पास नेताओं वाला दिमाग नहीं है ना। सबसे पहले तो ये समझ लो कि अगर नेता हर समय सदन में ही घुसे रहेंगे तो बाकी जरूरी काम जैसे घोटाले, भ्रष्टाचार, बवाल कहां से करेंगे। ये सब नेतागिरी के महत्वपूर्ण शब्द हैं। सदन ज्यादा आएंगे तो घोटाले करने का टाइम कैसे मिलेगा और घोटाले नहीं किए तो नेता बिरादरी में नाक न कट जाएगी।

लेकिन तुम्हारी बात से मैं सहमत हूं सभापति को चप्पल से नहीं मारना चाहिए था। इससे यह सिद्ध होता है कि उस नेता ने जरूर तरक्की नहीं की होगी, कोई घोटाला नहीं किया होगा इसलिए अभी तक चप्पलें घिस रहा था। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि उसने नया-ताजा घोटाला किया होगा और अपने पहले घोटाले की खुशी में नए जूते लिए होंगे लेकिन पुराने चप्पल कहां फेंकूं इसी कश्मकश में रहा होगा। अंत में सदन में हुए मारपीट के बीच उसने चुपके से अपनी पुरानी चप्पलें फेंककर नए जूते पहन लिए होंगे। अगर इसकी थोड़ी जांच कराई जाए तो पता चल सकता है कि चप्पलमारू विधायक कौन था।

वैसे इस चप्पल फेंकने वाले प्रकरण से सभापति बहुत क्षुब्ध थे। उनका गुस्सा चप्पल मारने वाले के ऊपर कम और मीडिया पर ज्यादा था। मारने वाले ने तो एक चप्पल मारा मीडिया ने उसे दिखा-दिखाकर 100-200 बार चप्पल खिलवा दिए। इसलिए विकास मैं कहता हूं तुम नेता जरूर बनना लेकिन भूलकर भी सभापति मत बनना वरना किसके जूते-चप्पल खाने पड़ जाएं पता भी नहीं चलेगा और चिल्लाकर गला अलग दर्द करने लगेगा। पार्टी के भीतर तुम्हारे विरोधी तुम्हे सभापति बनाने पर तुले होंगे लेकिन तुम उनका पैंतरा उन्हीं पर आजमाना और सभापति बनने पर उनके मुंह पर एक चप्पल जमा ही देना और वो भी सबको दिखाकर इसी बहाने मीडिया अटेंशन भी मिलेगा। मीडिया को चटपटी खबर मिल जाएगी और तुमको सुर्खियां। दोनों के काम बन जाएंगे। इसलिए बोल रहा हूं तुम भिड़ जाओ नेतागिरी में, कूद पड़ो, देर न करो बहुत हैं लाइन में। "

तभी हेमंत बोला- "सदन में नेता माइक्रोफोन और कुर्सी तोड़ देते हैं ये ठीक नहीं है।" मैंने उत्तर दिया- "हो सकता है कि नेताओं के कुर्सी और माइक्रोफोन खराब होंगे और इस कारण वह सदन में अपने मन की कह नहीं पा रहे होंगे। इसलिए उन्होंने माइक्रोफोन और कुर्सी तोड़कर अपनी भड़ास निकाल दी ताकि इसी बहाने नए कुर्सी और माइक्रोफोन आ जाएंगे। इसलिए विकास तुम जब विधायक बनकर सदन में जाओगे तो अपने माइक्रोफोन के साथ दूसरों के भी माइक्रोफोन तोड़ना ताकि कोई तुम्हारे खिलाफ कुछ कह न पाए। सदन के अखाड़े में धोबीपछाड़ कर तुम ही विजेता बनकर उभरना।"

मेरी प्रेरणास्पद उपदेश से विकास के अंदर का नेता उबाल मारने लगा था। अब उसके नेता बनने की इच्छा इरादे का रूप ले चुकी थी। वह जाने लगा तभी मैंने उसे टोका-"विकास नेता बनने वाला है तो कम से कम होटल में अपना पिछला उधारी तो पटा दे वरना राजू भाई का वोट तुझे कैसे मिलेगा।" विकास आया और होटलवाले को एक हजार रुपए देते हुए बोला, "ये लो पिछला बकाया काट लो और बाकी रख लो। अब मैं चिल्हर वापस नहीं लूंगा। मैं बड़ा नेता हूं।" मैं हेमंत की तरफ देखकर मुस्कुराने लगा और उसे चलने के लिए कहा क्योंकि कल भी तो विकास के साथ इसी होटल पर बैठक जमाना है।

Comments (10)

On 29 जुलाई 2010 को 7:18 pm बजे , kishore ghildiyal ने कहा…

bahut hi rochak

 
On 29 जुलाई 2010 को 8:53 pm बजे , Unknown ने कहा…

व्यंग्य को पसंद करने के लिए धन्यवाद किशोरजी।

 
On 29 जुलाई 2010 को 9:12 pm बजे , मनोज कुमार ने कहा…

यह व्यंग्यात्मक रचना विषय को कलात्‍मक ढंग से प्रस्तुत करती है ।

 
On 30 जुलाई 2010 को 7:25 am बजे , Maadho Doordarshi ने कहा…

Bahut Khub bandhu main maadho doordarshi aapke is uttam vyang ko Moorkhistan pe aapke blog ke pate ke sath prastut kar raha hoon..

 
On 30 जुलाई 2010 को 7:49 am बजे , कडुवासच ने कहा…

...behatreen !!!

 
On 30 जुलाई 2010 को 1:59 pm बजे , Unknown ने कहा…

आपको व्यंग्य अच्छा लगा मेरा प्रयास सफल हुआ। धन्यवाद उदय जी

 
On 30 जुलाई 2010 को 2:00 pm बजे , Unknown ने कहा…

मनोजजी मेरे व्यंग्य की प्रस्तुति की तारीफ करने के लिए धन्यवाद। आगे भी अच्छा लिखने का प्रयास रहेगा।

 
On 30 जुलाई 2010 को 2:02 pm बजे , Unknown ने कहा…

माधोजी, आपका शुक्रिया कि आपने मेरे इस व्यंग्य को पसंद किया और इसे मूर्खिस्तान में प्रस्तुत किया।

 
On 30 जुलाई 2010 को 5:45 pm बजे , The Straight path ने कहा…

आपका व्यंग्य अच्छा लगा...

 
On 30 जुलाई 2010 को 7:16 pm बजे , Unknown ने कहा…

व्यंग्य को पसंद करने के लिए धन्यवाद साजिदजी।