दो हफ्तों से दो लोगों ने मेरा जीना मुहाल कर रखा है। टीवी पर देखो तो शोएब-सानिया, अखबारों में शोएब-सानिया, इंटरनेट पर शोएब सानिया और यहां तक कि एसएमएस में भी इन्हीं के चर्चे। आखिर में तंग आकर मै टीवी, मोबाइल बंद कर खुद को कमरे में बंद कर एकांत तलाशने लगा। किसी तरह मैं इन दोनों से बच तो गया लेकिन १२ अप्रैल को सानिया के निकाह दिन मैंने टीवी चालू कर ही दिया, सोचा कि चलो सानिया भारत से विदा हो रही है, उसे आखिरी बार देख लेता हूं। अभी मैं सानिया को दुल्हन के चमकदार लिबास में निहार ही रहा था कि तभी फोन घनघनाया। दूसरी तरफ से आवाज आई बेटा जल्दी घर आओ, सानिया के निकाह से दुखी बंटी ने आग लगा ली है। मुझे धक्का सा लगा। मुझे यह तो पता था कि सानिया के निकाह के दिन सैंकड़ों दिल टूटेंगे लेकिन इसकी शुरूआत मेरा ही दोस्त बंटी से होगी इसका अंदाजा नहीं था, शायद था भी। बंटी इसके बारे में तो बताया ही नहीं, बंटी मेरा दोस्त और सानिया मिर्जा का धुर प्रशंसक या फैन या फिर कहें कि ए.सी. है। उसके कमरे में सानिया के पोस्टर्स हैं, किताब-कापियों में सानिया है, कपड़ों में भी सानिया है और दिल में भी। कुल मिलाकर ये पूरे सानियामय हो चुका था। जिस दिन से सानिया पहली बार टेनिस खेलती हुई टीवी पर नजर आई, बस उस दिन से बंटी की शामत आई। क्रिकेट का उभरता हुआ खिलाड़ी कब टेनिस की तरफ परावर्तित हो गया, कब मोटे बल्ले की जगह जालीदार रैकेट ने ले ली पता ही नहीं चला। बंटी टेनिस के बारे में कुछ नहीं जानता था। न तो उसे फोरहैंड पता था न बैकहैंड और न ही सर्व अब उसके लिए तो सानिया ही सर्वेसर्वा थी।
अपने परममित्र का ऐसा हाल देखकर दुख तो होता लेकिन साथ ही सानिया को धन्यवाद देने की इच्छा भी होती है कि क्रिकेट के पीछे पागल देश में कोई दूसरा खेल तो लोकप्रिय हुआ। मगर इसमें बंटी जैसे लोगों को भी श्रेय देना चाहिए जिन्होंने दिन-रात टीवी पर टेनिस देखकर डूबते स्पोर्ट्स चैनलों की टीआरपी बढ़ाई है और सूने टेनिस कोर्ट को हरा-भरा किया है।
सुबह १० बजे तक बिना लात खाए नहीं उठने वाला बंटी अब सुबह-सुबह उठकर टेनिस कोर्ट जाने लगा, शायद इस उम्मीद से कि टेनिस प्लेयर बन जाऊं तो सानिया के साथ युगल जोड़ी तो जमा ही लूंगा। ये जोड़ी तो नहीं जम पाई लेकिन पढ़ाई के साथ बंटी की जोड़ी जरूर टूट गई। दो बार १२वीं में बंटी फेल हो गया। फिर भी उसका दीवानापन कम नहीं हुआ। कुछ महीने पहले जब सोहराब-सानिया की सगाई हुई तब तो मानो वो टूट ही गया, हमने सोचा चलो अब तो इस कमबख्त की अक्ल ठिकाने पर आएगी लेकिन जैसी ही सानिया की सगाई टूटी उसके चेहरे पर मुस्कान छा गई, जैसे कोई बल्लेबाज आउट हो जाए लेकिन अम्पायर उसे नॉट आउट करार देकर उसे खेलने का एक और मौका दे दे। बस ऐसा ही मौका मानो बंटी को मिल गया था, सोचने लगा बॉस इस बार तो सानिया को पटा ही लूंगा। अभी वो हसीन ख्वाब बुन ही रहा था कि पता कहां से शोएब मियां ने सानिया के जिंदगी में आ टपके। अब बंटी दुखी है बहुत दुखी साथ ही सोहराब मिर्जा से हमदर्दी भी है, वही सोहराब जिसे कुछ महीने पहले ये महाशय गालियां दे रहे थे।
खैर जब मैं बंटी के घर पहुंचा तो देखा कि बंटी के कमरे से धुआं निकल रहा है, मैं डर गया कहीं बंटी ने खुद को आग तो नहीं लगा ली लेकिन जब देखा तो वह तो सानिया के पोस्टर्स को आग लगा रहा था। मेरी जान में जान आई। चलो कमबख्त अकल के मारे को बुद्धि तो आई। मैने भी गुस्सा उतारते हुए एक-दो पोस्टर जला दिए। मेरा दो्स्त तो बच गया पता नहीं बाकी बंटियों का क्या हाल होगा। कितनो की आह निकली होगी।
मैं खुश था कि बंटी सानियामेनिया से बाहर आ गया था। अगले दिन जब मैं उसके घर गया तो देखा कि दीवारों पर बैडमिंटन सेनसेशन और आजकल सुर्खियों में छाई सायना नेहवाल के पोस्टर्स लगे हैं और टीशर्ट भी सायना वाली। और महाशय टीवी पर बैडमिंटन देख रहे हैं। मैं समझ गया ये सानियामेनिया से निकलकर सायनामेनिया की गिरफ्त में आ गया है। मैं अपने अंदर की खुशी समेटकर मायूस सा बाहर आया और इंतजार करने लगा अपने दोस्त के दिल के एक और बार टूटने का।
शुक्रवार, अप्रैल 16, 2010 |
Category:
व्यंग्य
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comments
Comments (6)
Aisi shaili hai aapki,ke ekhee saans me poora padh gayi!
Bada maza aaya padhake!
badhiya likha hai...
very good article.
shabash Sumit,you have done exceptionally well.You must be appriciated for yr efforts as a writer and a blogger aswell.
Pl keepstudying hard first and then do blogging and keep writing.my best wishes for good writing and fine blogging.
dr.bhoopendra
jeevansandarbh.blogspot.com
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