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आखिर में कोई चारा न बचने के बाद मैंने अखबार की ओर नजरें घुमाना ही मुनासिब समझा और चाय की चुस्कियां लेने लगा। खेल के पृष्ठों से गुजरते हुए जैसे ही व्यापार के पृष्ठ से बचने की कोशिश कर रहा था एक खबर पर नजर ठहर गई। वैसे तो आजकल व्यापार पृष्ठ पढ़ने से भी डर लगता है। वही महंगाई, भाव बढ़े, सोना आसमान पर ग्राहक जमीन पर जैसी खबरें पढ़ने से चाय का स्वाद भी कड़वा हो जाता है। लेकिन आज जो खबर पढ़ी वह तो गजब की थी। खबर पढ़ते ही चाय मीठी लगने लगी। शीर्षक था "महंगाई की दर १७.६० से १४.७५ और खाद्य मुद्रास्फीति १६.९० से १२.९२ प्रतिशत हो गई" नीचे उपशीर्षक था- "महंगाई घटी"। अब हम हैं भारत की रट्टाऊ शिक्षा के पढ़े-लिखे होनहार और हर रट्टाऊ पढ़े-लिखे इंसान का यह कर्तव्य होता है कि भले ही उसे किसी शब्द का अर्थ न पता हो, उसे अर्थ पता होना का दिखावा जरूर करना चाहिए। तभी उसे जीनियस समझा जाता है। जैसे जो बैट और बल्ले के बारे में नहीं जानते है वह भी क्रिकेट के बारे में ऐसे विस्तार से बातें करते हैं जैसे बचपन से क्रिकेट खेलते रहे हों। भले ही वो क्रिकेट में बाइचुंग भुटिया को घुसा देंगे, ध्यानचंद को सचिन का कोच बना देंगे लेकिन बोलना नहीं छोड़ेंगे और धुप्पल में ऐसे लोगों को हां में हां मिलाने भी मिल जाते हैं।
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अब मैंने अपने ज्ञान का प्रसार सबको करने की सोची। सामने से शर्मा आंटी आती दिखाई दी। मैंने रसगुल्ला देते हुए कहा,"लीजिए मिठाई खाइए आंटी, महंगाई कम हो गई है।" आंटी ने पूछा- अरे पागल बाजार में आग लगी है, सब्जी-टमाटर पहुंच के बाहर हैं, फलों का नाम लेने पर भी पैसा लग जाता है और तू कह रहा है महंगाई कम हो गई। मैं समझाते हुए बोला- "देखिए, अखबार में लिखा है फूड इन्फ्लेशन रेट कम हो गई मतलब यही हुआ न कि महंगाई कम हो गई।" आंटी चकराकर बोली- "ये फूड इन्फ्लेशन रेट क्या बला है।" मैंने चौंकते हुए पूछा, "आपको फूड इन्फ्लेशन रेट नहीं पता। आज नारी सशक्तिकरण का जमाना है। ग्लोबलाइजेशन है। नारी ज्ञान देने वाली है, पढ़ाई और नौकरियों में नारी ही आगे है और आप पूछ रही हैं फूड इन्फ्लेशन रेट क्या है? आप आधुनिक नारी नहीं हैं, तभी तो इस मोहल्ले में आपकी बखत नहीं है। २ साल पहले ही मोहल्ले में आई सोफिया आंटी आपसे ज्यादा आधुनिक और एजुकेटड हैं।" अब आंटी की "इमेज" का सवाल था। वह बोली- "जानती हूं ना। मैं तो ऐसे ही पूछ रही थी।" मैंने कहा- तो अब आप मानती हैं न कि फूड इन्फ्लेशन रेट १६.९० से १२.९२ पर आ गया, मतलब महंगाई कम हुई ना। तो फिर जाइए जश्न मनाइए। पकवान बनाइए, दोपहर के खाने के लिए मुझे आमंत्रित कीजिए क्योंकि मैंने ही आपको ये खुशखबरी दी है और आधुनिकता का पाठ भी पढ़ाया है।
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उन पियक्कड़ों से किसी तरह पीछा छुड़ाया। मैंने तय कर लिया आइंदा किसी बेवड़े को छेडऩे की हिम्मत नहीं करूंगा। उनकी साधना में मैं विघ्न नहीं डालूंगा वरना अपनी साधना में ये लोग मुझे भी जबर्दस्ती शामिल कर लेंगे। इतनी भागदौड़ के बाद मुझे घर की याद आई। घर जा ही रहा था कि सामने से साक्षी आते दिखी। मुझे देखते ही बोली- "क्या बात है, आज बहुत रसगुल्ला बांट रहे हो। अब महंगाई कम हुई ही है तो चलो फिल्म चलते हैं। तुम ही तो मोहल्लेभर में ढिढोरा पीटते फिर रहे हो कि महंगाई कम हो गई और अब फिल्म का नाम लिया तो शक्लें बना रहे हो।" मैंने सोचा फिल्म मतलब केवल फिल्म ही नहीं साथ में रेस्टारेंट में जेब कटवाना आदि-इत्यादि और अगर साथ में लगेज(सहेली) भी हुई तो डबल खर्चा। जेब में हाथ डाला तो जेब ठंडा था। फिर याद आया परसो ही तो पापा की दी पॉकेट मनी साक्षी पर उड़ा दी थी। सब्जी लाने के लिए दिए गए पैसों से गोलगप्पे खाए थे। अब अगर और पैसा मांगा तो घर में उल्टा टांग दिया जाऊंगा। जिस तरह अफसर जनता के लिए आबंटित पैसों को अपने ऊपर उड़ाते हैं उसी भ्रष्टाचार धर्म का पालन करते हुए मैंने भी अपने घर के सब्जी, किताबें, पंखे, कपड़े, राशन आदि के लिए आबंटित पैसों को साक्षी पर उड़ाया था। पिछले ही महीने मेरे इस भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ हुआ था इसलिए मैं इन्वेस्टीगेशन आफिसर (पापा) की नजर में था। और पैसे मांगने की हिम्मत नहीं थी। मैंने जेब में फिर हाथ डाला तो कुछ गर्माहट का अहसास हुआ शायद ५०-१०० रुपए थे। मैंने किसी तरह उसे घर रवाना कर अपने जेब कटने से बचाया। उसे क्या पता महंगाई कम होने का जश्न मना रहा मैं खुद महंगाई से पीड़ित हूं। खैर उस दिन इन आंकड़ों ने अपनी जादूगरी दिखा ही दी और मेरे मोहल्ले मे महंगाई कम हो गई। सरकार ने तो आंकड़ों में महंगाई की थी लेकिन मैंने अपनी विलक्षण दिमागखाऊ प्रतिभा से असलियत में कर दिया। अपने मोहल्लेवालों का दिमाग खाकर मैं ऊब चुका हूं, मुझे बदलाव चाहिए। बचके रहिएगा, मैं आपका भी दिमाग खा सकता हूं और महंगाई कम हुई का नारा लगाते हुए आपके शहर में धमक सकता हूं।
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बुधवार, जुलाई 07, 2010 |
Category:
व्यंग्य
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