हमारी रायपुर नगर निगम की संवेदनशीलता का मैं कायल हूं। जिस चीज के बारे में सोचता हूं उसे ये बना देती है। मेरी पुरानी रचना (मुहांसे वाली कैटरीना) में मैंने अपने शहर में नित नई बनती सड़कों के बारे में बताया था। मैं शुरू से शहर में रहा, घर के पास ना तालाब था, न गांव की तरह घर के पास बहती नदी। तालाबों में खुद की नाव चलाने की तमन्ना तो बस तमन्ना बनके दिल के किसी कोने में दब गई थी, जैसे सरकारी फाइलें किसी कोने में दबी रहती हैं। घर के पास एक अदद तालाब की आस हमेशा रहती थी। घर में तो मैंने नाव तक बनवाकर रखी थी पर उसे तालाब का इंतजार था। बहरहाल, कुछ सालों पहले नगर निगम ने बरसों से लोकल ट्रेन की स्पीड से बन रहे अंडरब्रिज को पूरा करवाया। अंडरब्रिज बनने की मुझे खुशी तो थी पर घर के पास तालाब न बनने की टीस अब भी मन में थी।
खैर हम तो जनता-जनार्दन हैं हमारा दिल बहुत बड़ा है और सब कुछ दिल में दबाकर हम आगे बढ़ जाते हैं। अरे हम तो इतने घोटाले, भ्रष्टाचार और महंगाई के दर्द को दिल में दबाकर आगे बढ़ लेते हैं फिर तालाब न बनने का दर्द को मामूली था। बरसात का मौसम आ चुका था। कुछ दिनों तक तो हमारे पगार की छोटी राशि की तरह टिप-टिप करके पानी की बौछारें आई। हफ्तेभर बाद किसी बडे़ घोटाले की बड़ी राशि की तरह अचानक भारी बारिश गिरने लगी। अब जैसे कि आप जानते हैं मैं चिंतक हूं। भारी बारिश के बीच मुझे अपने ऑफिस की चिंता सताने लगी कि बारिश के कारण आफिस नहीं गया तो एक दिन का पैसा कट जाएगा। आप ही बताइए एक तो छोटी सी चादर उपर से उसमें छेद हो जाए तो क्या हालत होगी। इसी डर से मैंने झट से रेनकोट पहना, अपनी फटफटी स्टार्ट की और आफिस के लिए निकल पड़े। जैसे ही अंडरब्रिज पहुंचा तो देखा वह तो तालाब बन चुका है, पानी से लबालब बिलकुल वैसा जैसा मैं सपनों में देखा करता था। नगर निगम ने मुझे सरप्राइज गिफ्ट दिया था। मुझे तालाब चाहिए था और निगम ने अंडरब्रिज की शक्ल में मुझे तालाब दे दिया। इससे एक और बात साबित हो गई कि हमारी निगम संवेदनशील होने के साथ सरप्राइजप्रेमी भी है। वह मार्डन निगम है और आज की पीढ़ी के अनुसार सरप्राइज जैसे ट्रिक अपनाते रहती है। रियलिटी शो में आने वाले ट्विस्ट की तर्ज पर वह हमारे जिंदगियों में भी ट्विस्ट लाकर जिंदगी की टीआरपी बढ़ाने में निपुण है। अगर वह हम पर इमोशनल अत्याचार करती है तो हमें बिग बॉस बनाने वाली भी वही है।
अंडरब्रिज में लबालब पानी को देखकर तो लगा कि कहीं से नाव लाऊं और कूद पड़ूं। लेकिन अपनी घरघराती गाड़ी को देखकर सोचने लगा काश इसकी जगह घऱ से नाव लेकर निकला होता। गाड़ी लेकर अंडरब्रिज के पानी में घुसूंगा को बीच में बंद होना का डर है। परंतु अंडरब्रिज पार करना भी जरूरी था क्योंकि कटने वाले वेतन की चिंता हमारे चिंतक मस्तिष्क में बार-बार खटखटा रही थी। बड़ी मुश्किल थी। हमारी हालत उस मजबूर सरकार की तरह हो गई थी जो किसी घोटाले के आरोपी के खिलाफ कार्रवाई करूं या न करूं की पशोपेश में हो। कार्रवाई की तो गठबंधन हल्ला करेगा और नहीं की तो जनता हल्ला करेगी। मगर जिस तरह एक कमजोर सरकार घोटाले होने के बहुत देर बाद ही सही कार्रवाई करने का मन बनाती है उसी तरह मैंने भी आधे घंटे इंतजार करने के बाद तय किया कि अब तो गाड़ी लेकर ही पानी में घुसना पड़ेगा।
बस भगवान का नाम लिया, अपनी फटफटी स्टार्ट की और सीधे घुस गया पानी में। जैसे कि हमारे देश में लोग भेड़चाल के आदी हैं मेरी देखादेखी कुछ और लोग भी मेरे पीछे आ गए। हममें चिंतन के साथ नेतृत्व गुण भी शुरू से ही रहा हैं और अब इन पानी में फंसे लोगों का नेता बनकर हमें बड़ी अच्छी वाली फीलिंग रही थी। पेट्रोल टंकी तक पानी में डूबी हमारी फटफटी किसी गठबंधन सरकार की तरह धक्क-धक्क करके चल रही थी। लगता था बस अब बंद हुई, तब बंद हई। लेकिन सच कहूं तो पानी में डूबी हमारी फटफटी हमें किसी नौका से भी ज्यादा सुंदर अहसास दे रही थी। हमने तो नौका के सपने देखे थे यहां तो ऐसा लग रहा था जैसे हम मोटरसायकिल नहीं वाटरमोटरसायकिल या फिर कहें वाटरबाइक चला रहे हों। अब देखिए निगम ने ७० हजार की फटफटी में हमें ७ लाख वाली वाटरबाइक के मजे दिलवा दिए। मैंने आपको बताया ही था हमारी निगम हमारा कितना ख्याल रखती है। कुछ पल के लिए तो हम खुद को धूम श्रेणी की फिल्मों में वाटरबाइक चलाने वाले छुटके बच्चन की तरह समझ रहे थे। कभी-कभी तो हम हॉलीवुड अभिनेताओं को भी टक्कर देते नजर आ रहे थे।
तभी हमारी फटफटी अचानक बंद हो गई। ऐसा लगा जैसा किसी गठबंधन सरकार से उसके प्रमुख घटक दल ने समर्थन वापस ले लिया हो। हमने फटफटी फिर शुरू करने की कोशिश की पर फटफटी से समर्थन न मिला। वह नाराज घटक दल की तरह अड़ी रही। तभी पीछे आ रही मेरे समर्थकों की गाड़ियां भी बंद हो गई। गाड़ी बंद होते वे मुझे खराब नेता घोषित करने पर तुल गए। मैं समझ गया स्वार्थ की दुनिया है और राजनीति का उसूल है अपनी गलती कभी न मानना। १५ मिनट की नेतागिरी में मुझमें इतनी समझ तो आ चुकी थी। मैंने पैंतरा बदला और कहा- गलती तुम लोग की है। मैं अच्छा भला दूसरे रास्ते से जा रहा था तुम लोगों ने मुझे जबरन इस पानी में धकेल दिया। मुझे दोष मत दो और यहां से फुटो। मेरा ध्यान फिर गाड़ी पर गया मैंने भगवान का नाम लेकर गाड़ी शुरू करना चाहा पर बात नहीं बनी। मैंने गाड़ी से विनती की पर वह न मानी। मैंने उसे उसकी गर्लफ्रैंड्स स्कूटी पेप, प्लेजर और एक्टीवा की कसमें दी पर उसने इन सबसे अपनी ब्रेकअप की बात कहकर मेरी बात काट दी।
अब मेरी समझ में आ चुका था कि आज के भ्रष्ट युग में मेरी फटफटी भी भ्रष्ट हो चुकी है। वह न भगवान के नाम से मानेगी, न ही विनती और कसमो से। उसे तो घूस देना पड़ेगा। मैंने अपनी फटफटी से अबकी बार ताव से कहा- चालू होने का क्या लेगा साफ साफ बता।। फटफटी तपाक से बोला- स्ट्रार्ट होने के बदले मुझे अपने लिए एक पर्सनल कमरा चाहिए जहां मैं आराम से रह सकूं और तुम लोग के घरेलू लड़ाई में न फंसू। पिछली बार तुम लोगों की लड़ाई में मेरे मिरर टूट गए और टंकी चपट गई। मैंने कहा ठीक है मंजूर। इतना बोलते ही फटफटी घन....घन... की मधुर ध्वनि के साथ स्टार्ट हो गई। अंडरब्रिज पार करते ही मुझे एक उपाय सूझा। घर में रखी नांव को पानी में उतारने का वक्त आ गया है। दोस्तों को फोनकर मैंने नांव बुलवाई व इस पार से उस पार ले जाने का १० रुपये किराया रख दिया। उस दिन ऑफिस तो नहीं जा पाया एक दिन की पगार भी कट गई। लेकिन लोगों को इस पार से उस पार करवाकर मैंने उससे कई गुना कमा लिया। उसके बाद तो मैंने दो-तीन आफिस जाना मुनासिब ही नहीं समझा। बस तबसे हर साल मुझे इंतजार रहता है सावन का। बढ़ती महंगाई के कारण मैंने नांव का किराया १५ रुपये कर दिया है। आप ही बताइए रेट ठीक है ना अगर कम लगे तो भी बता दीजिएगा, सावन अभी शुरू ही हुआ है रेट एडजस्ट करने का टाइम है अभी।
सोमवार, जुलाई 25, 2011 |
Category:
व्यंग्य
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